"द वर्जिन स्प्रिंग" ईश्वरीय सत्ता को शैतान की चुनौती / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2013
स्वीडन के इंगमार बर्गमन को विश्व सिनेमा के सार्वकालिक महान निर्देशकों में गिना जाता है। स्वीडिश सिनेमा को उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दी है। उनकी फिल्मों में स्त्री पात्रों का चित्रण बहुत प्रखर और विशिष्ट होता है। सिनेमा माध्यम के विद्यार्थियों को उनकी फिल्में मिसाल के तौर पर दिखाई जाती हैं। उनकी लगभग सभी फिल्में किसी-न-किसी रूप में पुरस्कृत हुई हैं। 1960 में आईं उनकी फिल्म ‘द वर्जिन स्प्रिंग’ सिनेमाई कला का अप्रतिम उदाहरण है। इसे बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म का ऑस्कर और गोल्डन ग्लोब पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
इस फिल्म की कहानी मध्ययुगीन स्वीडन की पृष्ठभूमि में रची गई है। उन दिनों ईसाई धर्म तेजी से योरप में पांव पसार चुका था। इसमें एक संपन्न ईसाई परिवार की इकलौती बेटी कैरिन (ब्रिंगिटा पेटरसन) को चर्च में मोमबत्ती ले जाने की जिम्मेदारी दी जाती है। चर्च का रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उसकी गर्भवती नौकरानी इंगरी (गलन लिंडब्लोम) भी उसके साथ जाती है। रास्ते में केरिन को तीन चरवाहे (दो पुरुष और एक बालक) मिलते हैं। केरिन अपने भोलेपन के कारण उनकी कुटिल इच्छाओं को समझ नहीं पाती और उनके साथ खाना खाने बैठ जाती है। बाद में दोनों पुरुष उसके साथ बलात्कार करते हैं और फिर उसकी हत्या कर देते हैं। इसके बाद दोनों उसके सारे कपड़े नोंचकर खींच लेते हैं और उसे निर्वस्त्र अवस्था में छोड़कर भाग जाते हैं। इंगरी दूर से छिपकर यह सारा दृश्य देखती है परंतु डर के मारे पास नहीं आती।
वे तीनों भागकर अनजाने में केरिन के ही घर में शरण लेते हैं, वे केरिन की माता को केरिन के शरीर से खींचे हुए कपड़े बेचने की कोशिश करते हैं। वह समझ जाती है कि इन लोगों ने केरिन का खून कर दिया है। वह तीनों को चालाकी से एक कमरे में बंद करके अपने पति को वे कपड़े ले जाकर देती है। कपड़े देखकर केरिन का पिता स्तब्ध हो जाता है। उसे समझ नहीं आता कि ईश्वर ने उन्हें किस बात की सजा दी है। इतने भक्तिभाव एवं मनोयोग से धर्म पालन के बावजूद उसके परिवार के साथ ऐसा क्यों हुआ। उस 15 साल की मासूम का क्या गुनाह था, जिस कारण उसे यह दर्द भोगना पड़ा, उसका चित्त क्रोध, पश्चाताप और हताशा की संयुक्त वेदना में अत्यंत विचलित हो जाता है। पूरी रात वेदना की आग में जलने के बाद सुबह वह निर्ममता से उन तीनों की हत्या कर देता है।
तत्पश्चात् वह इंगरी और अन्य साथियों को लेकर केरिन को ढूंढने निकलता है। जंगल में उसे केरिन का अस्त-व्यस्त शव मिलता है। जैसे ही वह मृत केरिन का सर उठाता है, उस जगह पानी का एक सोता फूट पड़ता है। इसे ईश्वर का इशारा मानकर वह शपथ लेता है कि जिस जगह केरिन की हत्या हुई है, वहां एक चर्च का निर्माण किया जाएगा।
यह फिल्म कई सवाल उठाती है। फिल्म के माध्यम से बर्गमेन ने ईश्वर की सत्ता को एक विराट मौन के रूप में परिभाषित करते हुए सिनेमा संबंधी गंभीर बहस की रूपरेखा तैयार की है। धार्मिक आस्थाएं, न्याय-अन्याय, पाप-पुण्य जैसे अनेक विषयों को उठाते हुए निर्देशक ने अंतिम फैसला दर्शकों पर छोड़ा है। इस फिल्म के हर दृश्य की विभिन्न तरीकों से व्याख्याएं की जा सकती हैं। प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहने में बर्गमन सिद्धहस्त रहे हैं। इस फिल्म में उनकी यह प्रतिभा चरम पर है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है। कैमरे के माध्यम से श्वेत-श्याम तस्वीरों को किस तरह प्रभावी बनाया जा सकता है, यह देखने लायक है। कैमरे के सांकेतिक इस्तेमाल में बर्गमन का जवाब नहीं। अंधेरे और रोशनी के विलक्षण सामंजस्य से चेहरों के भाव अद्भुत तरीके से उभरकर आते हैं। धार्मिक आस्थाओं और रूपकों से इतर इस फिल्म को बर्गमन के सिनेमाई कौशल के लिए देखा जाना चाहिए।