"द सेक्रीफाइस" अध्यात्म के सुरों में मृत्यु का गान / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2013
सोवियत सिनेमा जिन फिल्मकारों की वजह से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा अर्जित कर सका, उनमें आंद्रेई तारकोवस्की का नाम सबसे ऊपर है। उनकी फिल्में जहाँ चाक्षुष सौंदर्य के लिए सराही गईं, वहीं उनका गहन वैचारिक आधार विवाद और बहस का विषय भी रहा। निर्देशन के अलावा पटकथा लेखन में भी सिद्धहस्त होने के कारण वे अपनी फिल्मों का कथ्य और प्रस्तुतिकरण समान रूप से प्रभावशाली बनाने में सफल रहे।
वर्ष 1986 में प्रदर्शित ‘द सेक्रीफाइस’ उनकी अंतिम फिल्म थी। तकनीकी विकास के संभावित खतरों के प्रति आगाह करने वाली यह फिल्म एक दुर्गम ग्रामीण स्थल में आणविक विभीषिका के प्रभाव का विचारोत्तेजक चित्रण करती है। इस फिल्म में तारकोवस्की ने दस मिनट की अवधि का एक दृश्य अनवरत, बगैर संपादित किए डाला था। यह बिल्कुल अलग तरह की दार्शनिक अंदाज में बनी फिल्म है, जिसमें जटिल प्रतीकों के माध्यम से गूढ़ बातें कही गई हैं। अपनी सिनेमाई गुणवत्ता, रचनात्मकता और मौलिक काल्पनिकता के कारण इसकी गणना विश्व की महानतम फिल्मों में की जाती है। सिनेमा के विद्यार्थियों को यह किसी धर्मग्रंथ की तरह पढ़ाई जाती है।
यह फिल्म स्वीडन के एक सुदूर एकाकी ग्रामीण इलाके में समुद्र के किनारे बने खूबसूरत मकान में बैठे आठ व्यक्तियों के जीवन में गुजरे चौबीस घंटों का वर्णन करती है। इस दौरान यह अनेक आध्यात्मिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञाानिक विषयों पर बहस को जन्म देती है। फिल्म का नायक एलेक्जेंडर (एरनाल्ड जोसफसन) एक बुजुर्ग प्रोफेसर, पत्रकार, लेखक और बीते जमाने का प्रसिद्ध अभिनेता है। उसके मित्र और परिवार के सदस्य उसका जन्मदिन मनाने इकट्ठा हुए हैं। उत्सव के बीच में टीवी पर प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा की जाती है कि तृतीय विश्व युद्ध छिड़ गया है, जोकि एक परमाणु युद्ध है और जिसके कारण बहुत जल्द इस दुनिया का अंत हो जाएगा। वहां बैठे हर व्यक्ति की इस सूचना पर अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है किंतु सबसे नाटकीय प्रतिक्रिया एलेक्जेंडर की होती है। वह ईश्वर से वादा करता है कि वह अपनी सारी संपत्ति का, अपने आप का और अपने छः वर्षीय पुत्र का बलिदान कर देगा, यदि युद्ध टल जाए।
स्वप्न, मतिभ्रम और वास्तविक घटनाओं के चक्रव्यूह से गुजरती यह फिल्म अनक प्रतीकों, उपमाओं और दृश्यवलियों के माध्यम से मनुष्य के आध्यात्मिक अन्वेषण, आधुनिक समाज में विलुप्त होते मानव मूल्यों और तकनीकी विकास के समानांतर घटती संवेदना का खेदजनक परिदृश्य चित्रित करती है।
इस फिल्म पर स्वीडन के महान फिल्कार इंगमार वर्गमैन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। फिल्म के कैमरामैन स्वेन निकविस्ट बर्गमैन के स्थायी कैमरामैन रहे हैं और नायक एरनाल्ड जोसेफसन ने भी बर्गमैन की लगभग सभी फिल्मों में काम किया हैं लेकिन इस प्रभाव के बावजूद यह पूरी तरह से तारकोवस्की शैली की फिल्म है। बर्गमैन की मनोवैज्ञानिक विश्लेषणात्मकता और तारकोवसकी के आध्यात्मिक सूफीवाद के मिश्रण से फिल्म अद्भुत प्रभाव पैदा करती है। जिन दिनों तारकोवस्की यह फिल्म बना रहे थे, वे ब्रेन ट्यूमर की अंतिम अवस्था से गुजर रहे थे। फिल्म पूरी होने के कुछ ही दिनों बाद उनका देहांत हो गया।
फिल्म में कई लांग शॉट्स हैं, लंबी अवधि के भी और लंबी दूरी से लिए हुए थी। ये दृश्य फिल्म के समग्र प्रभाव में वृद्धि करते हैं। फ्लैशबैक और स्वप्न दृश्य श्वेत-श्याम स्वरूप में फिल्माए गए हैं, जो एक अनूठा प्रभाव उत्पन्न करते हैं। फिल्म का मूल भाव विषाद और उदासी है। मानो फिल्मकार स्वयं की आसन्न मृत्यु को पर्दे पर परिलक्षित कर रहा हो।
'द सेक्रीफाइस’ को कान फिल्म समारोह में सर्वेश्रेष्ठ फिल्म का जूरी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा बाफ्टा एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में भी इसे पुरस्कृत किया गया।