"बेशर्म सांसद, शर्मसार लोकतंत्र!" / अर्पण जैन 'अविचल'
" गर चिरागो की हिफ़ाज़त फिर इन्हे सौपी गई,
रोशनी के शहर में बस अँधेरा ही रह जाएगा। "
आज लाल किले के आँगन में फिर शर्म की बयार चली, वाक़या राष्ट्र के सबसे गरिमामय मंदिर, लोकतंत्र के देवता की स्तुति गान की बाग देने वाले देश की संसद में मिर्च और हथियार निकल आए और इस अस्मिता को सरे आम नीलाम करने वाले और कोई नहीं "विजयवाड़ा के कांग्रेस के सांसद राजा गोपाल" थे।
एक तरफ तो राष्ट्र कई और संकटो और मुद्दो के बोझ के तले अपनी अस्मिता की रक्षा कर पाने में भी सक्षम नहीं हो पा रहा है और दूसरी और संसद की गरिमा के पुरोधा वतन की आबरू को नीलाम करने पर उतारू है, वतन की कोख ने कैसे लाल पैदा करे अब यह भी चिंतनीय विषय है।
जनता ने किन्हे चुन कर लोकतंत्र के मंदिर में भेजा उस चुनाव पर भी संशय होने लगा है। मुद्दा यह नहीं कि सांसद ने मिर्च स्प्रे और चाकू नुमा माइक का इस्तेमाल किया, बल्कि मुद्दा यह है कि आख़िर ये सामान अंदर पहुंचा कैसे और इसी उत्पात के बीच "तेलंगाना बिल" पेश कैसे हो पाया?
२२ जुलाई २००८ का "नोट के बदले वोट" कांड ने शुरुआत की थी लोकतंत्र का सर झुकाने, पर उसे परंपरा बना कर देश और दुनिया को १३ फ़रवरी २०१४ को फिर नया चेहरा दिखा दिया लोकतंत्र के मंदिर का।
मिर्च की जलन से जहां एक और अन्य सांसद और नागरिकगण ही आहत नहीं हुए बल्कि इसे राष्ट्रीय शर्म मान कर राष्ट्र की अस्मिता को तार-तार कर देने वाले इन स्तरहीन सांसदो को देश द्रोही करार कर देश निकाला देना चाहिए.
एक और तो राहुल गाँधी विकास और देश के युवा जोश की बात करते है और दूसरी और उन्ही की पार्टी के बेशर्म सांसद संसद में मिर्ची झोक कर बिल पेश करवा जाते है तब भी पार्टी मौन रहती है, ये राष्ट्र शर्म का विषय है, आख़िर हमने कैसे बेशर्मो को चुन कर भेजा है संसद में ...
जिन पर ज़िम्मेदारी है सविधान के अनुरूप राष्ट्र की गरिमा को बनाए रखे वह ही आबरू को लूटने के लिए तैयार बैठे हो तो कौन रखवाला राष्ट्र का?
वो कहते है ना जब बाग का माली ही चोरी में लिप्त हो जाए तो बाग की रखवाली तो भगवान भरोसे ही है ... एक और राष्ट्र की प्रगति और उन्नति का ढिढ़ोरा पीटने वाली सं प्र ग सरकार अपने ही सिपाहियो को संभाल नहीं पा रही है। राष्ट्र धर्म का बखान करने तो छोड़िए पर गौरव की बात अधूरी है।
इन बेशर्म सांसदो की करतूतो की सज़ा तो वही होनी चाहिए तो एक राष्ट्र द्रोही की सज़ा होती है फिर भी असली सज़ा लोकतंत्र की अधिनायक जनता इन्हे बेहतर सज़ा दे पाएगी गर जनता भी मिर्च की जलन से आहत है तो...