"बैंग-बैंग" में तनाव रहित दिन की कल्पना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 अक्टूबर 2014
फॉक्स स्टार के मुंबई दफ्तर ने अपनी कंपनी की ही हॉलीवुड मूवी "नाइट एंड डे' का हिंदुस्तानी संस्करण बैंग-बैंग के नाम से बनाया है। रितिक रोशन और केटरीना कैफ की फिल्म लंबे समय बाद आई है। यह सितारों की डिजाइनर फिल्म है परंतु सिंघम और किक से अलग ढंग की लार्जर दैन लाइफ फिल्म है। सिंघम और किक अपने सितारों के प्रशंसकों के लिए उनके अंदाज में बनाई गई थी। बैंग-बैंग रितिक के प्रशंसकों के लिए गढ़ी गई है। इसमें पाश्चात्य फिल्मों की तरह टंग इन चीक हास्य है
अर्थात संकेत के माध्यम से हंसाया है। इसी तरह मारधाड़ के दृश्यों में भी तकनीक से जन्मा अजूबा रचा गया है। अंतर वहीं है जैसा मॉल से खरीदे माल और सड़क पर हॉकर द्वारा बेचे गए माल में होता है। दोनों अलग-अलग ब्रांड हैं परंतु मार्केट समान ही है। इस फिल्म के नायक की सटकती नहीं है और वह कूल रहकर दुश्मनों को मारता रहता है। इन फिल्मों में जितने लोग मारे जाते हैं, उनका कोई पश्चाताप नहीं है केवल इस सब से अनजान बैंक में काम करने वाली नायिका अफसोस जाहिर करती है।
हर फिल्म में अच्छाई बनाम बुराई युद्ध का एक कारण होता है और इस फिल्म में कारण यह चुना गया है कि अातंक के आरोपियों को बिना किसी कानूनी बाधा के एक देश से दूसरे देश लाया जा सके। अपराधी इस अंतरराष्ट्रीय समझौते को रोकना चाहते हैं ताकि एक्ट्रेडिशन कानून की आड़ में छुप सकें। सरकार चाहती है नियम पास हो। अत: इस एक्शन फिल्म में युद्ध का कारण भी थोड़ा सोफिस्टकेशन लिए है और पूरी प्रस्तुति में यह अतिआधुनिकता है जो कुछ वितरण क्षेत्रों में बाधा तो कुछ में सहायक होता है। फिल्म का मूल उद्देश्य रितिक को अपने चुस्त दुरुस्त अंदाज में प्रस्तुत करना है। वह फिल्म में ताजगी के साथ प्रस्तुत हुआ है। तथा उसके सुते हुए शरीर से मांस की मछलियों के बाहर जाने के भाव नहीं है। प्राय: नायकों के शरीर की नदी से मछलियां बाहर कूदती सी लगती हैं। रितिक इस क्षेत्र में सबसे अधिक चुस्त दुरुस्त हैं और हमें कैमरामैन को धन्यवाद देना चाहिए कि उसका कैमरा लार टपकाता हुआ जिस्म पर लाेलुप दृष्टि नहीं डालता।
केटरीना कैफ हमेशा की तरह सुंदर दिख रही है और संवाद की अदायगी में नया आत्म विश्वास नजर रहा है। इस फिल्म में धूम-3 से अधिक अवसर उन्हें मिला है। एक छोटे शहर की नौकरीपेशा लड़की का चरित्रचित्रण राहत देता है कि वह महानगरीय तेज तर्रार मिर्च नहीं है। परंतु उसके नमक से आप अछूते भी नहीं रह पाते। नायिका की यह मध्यमवर्गीय इच्छा कि उसके जीवन में कभी एक दिन आएगा जब वह अपनी इच्छा के अनुरूप विदेश घूम सकेगी। वह एक तनाव रहित चिंतामुक्त दिन की तलबगार है और सच तो यह है कि इस तरह का दिन कई लोगों का सपना हो सकता है। आज तनाव मुक्त क्षण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बहरहाल इस नायिका को इत्तेफाक से ऐसा एक दिन मिलता है जो उसके रोजमर्रा के जीवन से अलग है। वह महसूस करती है कि उसके सपनों में बसे आदर्श दिन में बेहद गंभीर तनाव है। खतरे हैं और विश्वास का संकट है।
इस तरह कि फिल्म में लिखने वालों के अनचाहे ही एक कमाल की बात गई है कि तनावरहित एवं चिंतामुक्त दिन एक सपना है जो असंभव है। बहरहाल डिजाइन फिल्म में मनोरंजन के अतिरिक्त कुछ भी खोजना व्यर्थ है और अगर मिलता है सो उसे बोनस मानना चाहिए। फिल्म को भी पांच दिन की छुट्टी का बोनस मिल रहा है।
नसीरुद्दीन शाह ने कविता से प्रवाह वाला विशुद्ध अंग्रेजी ग्रंथ रचा है आैर सही अंग्रेजी बांचने के मोह के लिए भी दोबारा पढ़ी जा सकती है। यह किताब मानवीय कमजोरियों का एपिक है आैर 'लार्जर देन लाइफ' पात्रों के अभ्यस्त देखें कि हकीकत कितनी भव्य हो सकती है।