"ब्रेथलेस" उखड़ती सांसों में बिखरती जिंदगी / राकेश मित्तल

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"ब्रेथलेस" उखड़ती सांसों में बिखरती जिंदगी
प्रकाशन तिथि : 05 अक्टूबर 2013


फ्रांस के नव-उदारवादी सिनेमा के शिखर पुरुष के रूप में ज्यां लुक गोदार्द का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी आक्रामक और प्रभावशाली निर्देशकीय शैली ने विश्व के फिल्म समीक्षकों को चमत्कृत कर दिया था। मात्र 20 वर्ष की आयु में उनके द्वारा निर्मित लघु फिल्मों को उनकी विशिष्ट फिल्मांकन शैली के लिए सर्वत्र सराहा गया। वर्ष 1960 में आई ‘ब्रेथलेस’ उनकी पहली फीचर फिल्म थी। प्रदर्शित होते ही यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बन गई थी। हॉलीवुड की परंपरागत ढांचे वाली फिल्मों के विपरीत यह प्रयोगधर्मिता का एक नायाब नमूना थी।

इस फिल्म ने गोदार्द को विश्व सिनेमा के सर्वाधिक चर्चित और प्रभावशाली निर्देशकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। फ्रांस के न्यू वेव सिनेमा में इसे मील का पत्थर माना जाता है। इसकी कहानी में कोई विशेष बात नहीं थी किंतु गोदार्द ने अपने प्रस्तुतिकरण और अद्भुत सिनेमाई कौशल से इसे लाजवाब बना दिया। इस फिल्म के जरिए उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि सिनेमा माध्यम में दृश्य का महत्व कथ्य से ज्यादा होता है।

फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जो अखबार में समाचार के रूप में प्रकाशित हुई थी। मिशेल पोकार्ड (ज्यां पाल वेलमोण्डो) एक चोर है, जो पेरिस जाने के लिए एक कार चुराता है। एक पुलिसवाला मोटरसाइकल पर उसका पीछा करता है, जिसकी मिेशल गोली मारकर हत्या कर देता है। भागता-छिपता हुआ वह अपनी अमेरिकी प्रेमिका पेट्रीशिया (ज्यां सेबर्ग) के घर में शरण लेता है। पेट्रीशिया पेरिस की सड़कों पर न्यूयॉर्क हेराल्ड ट्रिब्यून अखबार बेचती है। वह पत्रकार बनना चाहती है। मिशेल के साथ अपने संबंधों के प्रति वह बहुत आश्वस्त नहीं है। मिशेल उसे लेकर इटली चले जाना चाहता है किंतु वह ऐसा नहीं चाहती। दोनों के बीच लंबी बातचीत होती है और अंततः पेट्रीशिया उसके साथ जाने को तैयार हो जाती है किंतु ऐन वक्त पर वह उसे धोखा देकर पुलिस के सामने कर देती है।

वास्तविक जीवन में यह मिशेल पोर्टेल नामक फ्रैंच युवक और उसकी अमेरिकी प्रेमिका बेवरली लिनेट की कहानी है, जिसका गोदार्द ने कुछ काल्पनिक घटनाक्रम डालकर फिल्मी रूपांतरण किया है। नवंबर 1952 में पोर्टेल ने अपनी बीमार मां से मिलने जाने के लिए एक कार चुराई थी और पीछा कर रहे मोटरसाइकल सवार पुलिस अफसर की हत्या कर दी थी। यह समाचार स्थानीय अखबारों में प्रमुखता से छपा, जिस पर गोदार्द के मित्र और समकालीन मशहूर फिल्मकार फ्रांसुआ त्रूफा की नजर पड़ी। त्रूफा ने ही गोदार्द को इस घटना पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।

गोदार्द ने पूरी फिल्म की शूटिंग प्राकृतिक रोशनी में हाथ के कैमरे से की और अधिकांश भाग स्टूडियो के बाहर वास्तविक लोकेशंस पर फिल्माया। इस कारण आसपास के वातावरण का शोर भी दृश्यों में समाहित हो गया। इसके चलते पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान पूरी फिल्म को फिर से डब करना पड़ा। फिल्म के संवाद और आगे के दृश्य गोदार्द वहीं सेट पर लिखा करते थे। कई बार वे लगातार दो-तीन घंटे शूट करने के बाद भी मनमाफिक दृश्य नहीं मिलने पर पूरी शूटिंग रद्द कर देते थे। इसके बावजूद मात्र 23 दिनों में उन्होंने पूरी फिल्म को शूट कर लिया। फिल्म का सबसे रोचक हिस्सा पेट्रीशिया के शयनकक्ष में मिशेल और पेट्रीशिया की बातचीत है, जिसे गोदार्द ने एक पुरानी होटल के कमरे में प्राकृतिक रोशनी में शूट किया था। वह दृश्य लगभग आधे घंटे तक लगातार चलता है, जिसमें वे दोनो निरूद्देश्य, अलग-अलग विषयों पर बाचतीत करते हुए एक-दूसरे की थाह लेने की कोशिश करते हैं।

इस फिल्म के लिए गोदार्द को बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया। हाल ही में ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट के प्रतिष्ठित वार्षिक ‘साइट एंड साउंड क्रिटिक्स पोल-2012’ में ‘ब्रेथलेस’ को विश्व सिनेमा के इतिहास की श्रेष्ठतम फिल्मों की सूची में तेरहवां स्थान मिला है। प्रायोगवादी सिनेमा की श्रेष्ठ कलाकृति के रूप में इस फिल्म को अवश्य देखा जाना चाहिए।