"मेमोरीज ऑफ मर्डर" अनसुलझी गुत्थियों की दास्तान / राकेश मित्तल

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"मेमोरीज ऑफ मर्डर" अनसुलझी गुत्थियों की दास्तान
प्रकाशन तिथि : 14 सितम्बर 2013


वर्ष 2003 में प्रदर्शित लेखक-निर्देशक बोंग जून हो की फिल्म ‘मेमोरीज ऑफ मर्डर’ दक्षिण कोरिया के इतिहास की सबसे आश्चर्यजनक एवं चुनौतीपूर्ण मर्डर मिस्ट्री की कहानी है। यह एक वास्तविक घटना का चित्रण है। वर्ष 1986 से 1991 के बीच दक्षिण कोरिया के खासोंग नामक छोटे-से शहर में एक के बाद एक दस श्रृंखलाबद्ध हत्याएं हुई, जिनका कातिल आजतक पकड़ा नहीं गया। इनमें बीस से पच्चीस वर्ष के बीच की युवतियों को निशाना बनाते हुए बलात्कार के बाद उनकी नृशंस हत्या कर दी गई। इस दरमियान लगभग तीन लाख पुलिसकर्मी किसी-न-किसी स्तर पर इस केस की पड़ताल में शामिल रहे तथा तीन हजार से अधिक संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार कर उनसे गहन पूछताछ की गई। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस इस केस को सुलझाने में नाकाम रही।

बोंग के कसे हुए निर्देशन और अत्यंत रोचक पटकथा ने इस फिल्म को अविस्मरणीय बना दिया है। फिल्म यह दिखती है कि केस के पीछे पड़े और इससे जुड़े लोगों की जिंदगियां कैसे बदल जाती हैं। आम तौर पर सभी थ्रिलर या सस्पेंस फिल्में किसी गुत्थी को लेकर आगे बढ़ती हैं और अंत में उस गुत्थी को सुलझाते हुए नायक विजयी मुद्रा में दर्शकों से रूबरू होता है। लेकिन असल जिंदगी में क्या सभी गुत्थियां सुलझ पाती हैं? हममें से हर एक की जिंदगी में कोई मौका आता है जब पूरी ताकत लगाने के बाद भी आप कहीं नहीं पहुंच पाते। आप खीजकर पूरी दुनिया को मिटा देना चाहते हैं पर ऐसा भी नहीं कर पाते और अंततः अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। यह फिल्म जिंदगी की ऐसी ही कुछ कड़वी सच्चाइयों से हमें रूबरू कराती है।

फिल्म की शुरूआत अक्टूबर 1986 में होती है, जब एक युवती की लाश खुले मैदान में नाले के पास बरामद होती है और इसके बाद हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता है। स्थानीय पुलिस के पास इस तरह की घटनाओं से निबटने के लिए कोई तकनीकी संसाधन नहीं है। उनकी जांच का तरीका बाबा आदम के जमाने का है। स्थानीय पुलिस अधिकारी और जासूस पार्क डू मैन (सोंग कांग हो) ऐसा चुनौतीपूर्ण केस सामने देखकर अत्यंत उत्साहित है। उसका इससे पहले इतने गंभीर केस से कभी पाला नहीं पड़ा था। वह हर संदिग्ध व्यक्ति से गुनाह कबूल करवाने के लिए ढेरों पुलिसिया हथकंडे अपनाता है। स्थिति सुलझती न देख प्रशासन द्वारा राजधानी सिओल से एक वरिष्ठ जांच अधिकारी सिओ ताइ यून (किम सांग क्यूंग) को स्थानीय पुलिस की सहायता के लिए भेजा जाता है। सिओ का तहकीकात का तरीका स्थानीय पुलिस से बिल्कुल अलग हैं जिस कारण मैन और सिओ में गंभीर मतभेद है और दोनों के बीच मारपीट तक हो जाती हैं जहां मैन ठोंक-पीटकर डंडे के जोर पर अपराध कबूलवाने में यकीन रखता है, वहीं सिओ सुरागों की कड़ी-कड़ी जोड़कर अपराध की तह तक पहुंचना चाहता है। सिओ को तहकीकात में पता चलता है कि कातिल हमेशा बारिश की रात का इंतजार करता है और उस लड़की का, जिसने लाल रंग के कपड़े पहने हों। यह भी कि स्थानीय रेडियो स्टेशन पर उस रात एक विशेष गीत की फरमाइश होती है जिस रात कत्ल होता है। सिओ किसी तरह अलग-अलग घटनाओं और सबूतों के माध्यम से कड़ियां जोड़ने की कोशिश करता है, तो दूसरी तरफ मैन और उसकी टीम रोज एक नया संदिग्ध पकड़कर उसे भ्रमित कर देते हैं। शुरूआती गंभीर मतभेदों के बाद धीरे-धीरे उनमें सामंजस्य बैठने लगता है और दोनों जी जान से कातिल को ढूंढने लग जाते हैं। मगर कातिल का रहस्य अंत तक अनसुलझा रहता है।

निर्देशक बोंग किसी फिल्मी तरीके से केस सुलझाकर इसका अंत नहीं करना चाहते थे। उनका मकसद सिर्फ केस की गहराई में जाकर तहकीकात दिखाना था और साथ ही यह संदेश देना था कि जिंदगी में सब कुछ हमेशा सुलझ नहीं जाता। फिल्म का अंतिम हिस्सा बहुत खूबसूरत है, जहां बड़ी कुशलता से निर्देशक ने यह दिखाया है कि जिंदगी की कोई बड़ी हार किस तरह हमेशा सालती रहती है। पार्क डू मैन इस केस से निराश होकर नौकरी छोड़ देता है और अपना व्यवसाय शुरू कर देता है। वह किसी ग्राहक को सामान देने जा रहा है और उसकी कार उसी रास्ते से गुजरती है जिस रास्ते पर वह तफ्तीश के दौरान गुजरता था। एक नाले के पास आकर वह कार रोक देता है। यहीं उसे पहली लाश मिली थी। वह झुककर उस नाले के भीतर देखता है, तभी एक छोटी बच्ची आकर उससे नाले में झांकने का कारण पूछती है। वह कहता हैः ‘कुछ नहीं’। बच्ची बताती है कि अभी कुछ दिन पहले एक और आदमी आया था, जो इसी तरह नाले में झांक रहा था। मैन समझ जाता है कि वह आदमी कौन था। दर्शक भी बिना बताए समझ जाते हैं कि दूसरा और कौन है जो अपनी जिंदगी की बड़ी हार से जूझ रहा है।

इस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की जबर्दस्त सराहना मिली। वर्ष 2003 में यह कोरिया में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म रही। इसे उस वर्ष दक्षिण कोरिया फिल्म उद्योग के सर्वोच्च ‘ग्रांड बेल अवॉर्ड’ सहित सभी प्रमुख पुरस्कार मिले। साथ ही कान, हवाई, लंदन, टोक्यो जैसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी इसे ढेरों पुरस्कार प्राप्त हुए।