"मैरी क्रिसमस" युद्ध की विभीषिका पर मानवता की विजय / राकेश मित्तल

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"मैरी क्रिसमस" युद्ध की विभीषिका पर मानवता की विजय
प्रकाशन तिथि : 22 दिसम्बर 2012


क्रिसमस का त्यौहार पूरे विश्व में अत्यंत उल्लास और गर्मजोशी के साथ मनाया जाता है। सभी धर्मों के लोगों के बीच यह एक खुशी के पर्व के रूप में समान रूप से स्वीकार्य है। आज से लगभग सौ साल पहले वास्तविक रूप में इस त्यौहार ने युद्ध के दावानल को अपने प्रेम के आगोश में समेट लिया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घटी इस घटना को लेखक-निर्देशक क्रिश्चियन कैरियन ने अत्यंत मार्मिक एवं प्रभावशाली ढंग से अपनी फिल्म ‘मैरी क्रिसमस’ में प्रस्तुत किया है। वर्ष 2005 के अंत में प्रदर्शित यह फ्रैंच फिल्म ‘बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म’ की श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थी। इसके साथ ही इसे 2006 के गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा एवं सीजर्स जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए भी नामांकित किया गया था।

कहानी के केंद्रीय पात्र तीन देशों की सेनाओं के कमांडर स्कॉटिश लेफ्टिनेंट गार्डन (एलेक्स फर्न), फ्रेंच लेफ्टिनेंट ऑडबर्ट (गुलियन केनेट) तथा जर्मन लेफ्टिनेंट निकोलस स्प्रिंक (बेनो फरमन) एवं स्प्रिंक की डेनिश प्रेमिका आना सोरेन्सन (डायना क्रूगर) हैं। क्रिसमस के कुछ दिनों पहले फ्रेंच और स्कॉटिश सेनाएं मिलकर फ्रांस की जमीन पर बने जर्मन बंकरों पर हमला करती हैं। इस हमले में दोनों ओर से भारी जनहानि होती है लेकिन फिर भी गतिरोध टूटता नहीं है। तब क्रिसमस की पूर्व संध्या पर फ्रेंच और स्कॉटिश सेनाएं फिर से हमले की योजना बनाती हैं।

जर्मन लेफ्टिनेंट निकोलस की प्रेमिका आना एक मशहूर ऑपेरा सिंगर हैं। उसे क्रिसमस के पूर्व जर्मनी के युवराज विल्हेम के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता है। इस कार्यक्रम के बाद आना को अपने साथ एक दिन के लिए निकोलस को ले जाने की भी इजाजत मिल जाती है, क्योंकि निकोलस स्वयं अच्छा गायक भी है। वह रात आना के साथ बिताने के बाद निकोलस मोर्चे पर लौट आता है। आना भी जिद करके उसके साथ मोर्चे पर बंकर में आ जाती है।

प्रथम विश्व युद्ध जुलाई 1914 से नवंबर 1918 तक चला। फिल्म का घटनाक्रम 1914 के क्रिसमस की पूर्व संध्या के समय का है। फ्रांस और जर्मनी की सीमा पर स्थित अलसास (फ्रांस) शहर में जर्मन सेना पर हमला करने के लिए फ्रांस और स्कॉटलैंड की संयुक्त सेनाएं बढ़ रही थीं। दोनों सेनाओं के बीच केवल कुछ सौ फीट का फासला रह गया था। बर्फ से ढंकी ठंडी रात (24 दिसंबर) में दोनों सेनाएं ‘नो मैन्स लैंड’ के दोनों ओर आकर खड़ी हो जाती हैं। सेनाओं के यहां पहुंचने तक पूरी दुनिया में क्रिसमस के जश्न की शुरूआत हो चुकी होती है। जर्मन मोर्चे पर सैन्य अधिकारियों के आग्रह पर निकोलस एवं आना क्रिसमस कैरन्स गाते हैं। उनकी आवाज पर नो मैन्स लैंड की दूसरी ओर से स्कॉटेश सैनिक पुंगी बजाने लगते हैं। धीरे-धीरे दोनों ओर के सैनिक निकोलस के साथ सुर में सुर मिलाने लगते हैं और यह क्रिसमस गीत एक समूह गान में परिवर्तित हो जाता है। देखते ही देखते सीमा के दोनों ओर उत्सव का माहौल हो जाता है। सभी सैनिक क्रिसमस के त्यौहार और अपने परिवार जनों को याद कर भावुक हो जाते हैं। आनंद और उल्लास के अतिरेक में वे सब गीत गाते हुए, पुंगी बजाते हुए नो मैन्स लैंड को फांदते हुए आकर एक-दूसरे से गले मिलने लगते हैं।

तीनों सेनाओं के कमांडर यह दृश्य देखकर 24 घंटे के ‘क्रिसमस युद्ध विराम’ पर सहमत हो जाते हैं। यह निर्णय सुनते ही सभी सैनिकों का उत्साह चरम पर पहुंच जाता है। वे सारी दुश्मनी राष्ट्रीयता, नस्लवाद भुलाकर एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं। चॉकलेट, सिगरेट, शराब साझा करते हैं और अपने परिजनों के फोटो एक-दूसरे को दिखाते हैं तथा क्रिसमस के जश्न में डूब जाते हैं। हालांकि तीनों सेनाओं के कमांडर अच्छी तरह जानते हैं कि युद्ध के चरम पर इस तरह दुश्मन के साथ मिलकर त्यौहार मनाने के कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसमें कोर्ट मार्शल अथवा मृत्युदंड का सामना भी करना पड़ सकता है किंतु वे किसी भी कीमत पर इस आनंद और सुख से वंचित नहीं होना चाहते ।

अगले दिन क्रिसमस की सुबह सभी सेनाओं के अफसर साथ में कॉफी पीते हैं और दोनों ओर के मृत सैनिकों का क्रिसमस के दिन अंतिम संस्कार करने का निश्चय करते हैं। तत्पश्चात वे नो मैन्स लैंड में फुटबॉल खेलते हैं। युद्ध विराम की अवधि समाप्त होने पर सभी कमांडर अपने सैनिकों को वापस अपनी पोजीशन पर जाने का निर्देश देते हैं और अपने आप को सजा भुगतने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं। खुशी के साथ बिताये ये कुछ घंटे प्रत्येक सैनिक के मन में सवाल उठाते हैं कि आखिर हम लड़ क्यों रहे हैं? क्यों एक-दूसरे का खून कर रहे हैं? सामने वाले ने हमारा क्या बिगाड़ा है? युद्ध कितना कठिन हो जाता है जब आपका दुश्मन चेहरा विहीन नहीं रह जाता।

यह फिल्म युद्ध के पागलपन पर सवाल उठाती है। पूरी फिल्म यह दर्शाती है कि युद्ध हमेशा राजनेताओं के दिमाग में जन्म लेते हैं। सेनापति युद्ध की योजना बनाकर मैदान में सिपाहियों को लड़ने-मरने के लिए भेज देते हैं। सिपाही यह तक नहीं जानते कि वे क्यों लड़ रहे हैं और इसमें जीत-हार का मतलब क्या होगा। इस फिल्म में जर्मनी, फ्रांस, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम एवं रोमानिया के निष्णात कलाकारों ने अभिनय किया है। यह समीक्षकों एवं दर्शकों द्वारा समान रूप से सराही गई है। फिल्म समाप्त होने पर हर दर्शक भाईचारे का एक मधुर संदेश साथ लेकर घर लौटता है। युद्ध हमेशा होते छोटे हैं मगर उनका उत्तर-प्रभाव बरसों तक पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है।