"रशोमान" एक घटना, चार सच ! / राकेश मित्तल

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"रशोमान" एक घटना, चार सच !
प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2014


अकीरा कुरोसावा जापान के महानतम फिल्म निर्देशक माने जाते हैं। पेंटिंग, पाश्चात्य साहित्य एवं कला का गहन ज्ञान रखने वाले कुरोसावा ने कई फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं। उनकी फिल्मों ने जापानी सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। विश्व सिनेमा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान हेतु उन्हें जीवन के अंतिम चरण में मानद ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके निधन के पश्चात प्रतिष्ठित 'एशियन वीक" पत्रिका ने उन्हें कला, साहित्य एवं संस्कृति श्रेणी में 'एशियन ऑफ द सेंचुरी" का खिताब दिया। वहीं सीएनएन द्वारा भी उन्हें एशिया का शताब्दी पुरुष निरूपित किया गया। वर्ष 1950 में प्रदर्शित 'रशोमान" कुरोसावा की सर्वाधिक प्रशंसित फिल्मों में से है। वेनिस फिल्म फेस्टिवल में इसने सर्वोच्च 'गोल्डन लायन" पुरस्कार अर्जित किया था। ऑस्कर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा वाली फिल्म की श्रेणी वर्ष 1956 से शुरू हुई किंतु 'रशोमान" की गुणवत्ता को देखकर इसे 1951 में मानद ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

यह फिल्म इस बात को प्रतिपादित करती है कि दुनिया में पूर्ण सत्य नाम की कोई चीज नहीं है। सच एक सापेक्ष शब्द है। किसी एक का सच दूसरे के लिए भी सच हो, यह जरूरी नहीं। देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार सच अपना स्वरूप बदलता है। फिल्म में एक ही घटनाक्रम को चार अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग स्वरूप में बयान करते हैं और हरेक की बात सही प्रतीत होती है। ये चारों कहानियां एक-दूसरे से अलग हैं और अंत तक यह स्थापित नहीं हो पाता कि वास्तव में सच क्या था! पूरी फिल्म में तयशुदा बात यह है कि एक महिला का बलात्कार हुआ और उसके पति की मौत। मगर यह सब कैसे हुआ, किसने किया, क्यों किया, यह जानने के लिए दर्शकों के समक्ष चार अलग-अलग विवरण हैं। कुरोसावा के लिए सत्य घटनाक्रम बताना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि इन कहानियों के माध्यम से वे मानव मन की कमजोरियों, लालच, स्वार्थ और अवसरवादिता जैसे अवगुणों पर प्रकाश डालना चाहते थे। पूरी फिल्म में प्रतीकों का बेहतरीन और बहुतायत से उपयोग किया गया है। फिल्म का चाक्षुक स्तर अत्यंत प्रभावशाली है। कैमरा हमेशा गतिमान रहता है। अभिनय के मामले में सभी कलाकारों ने प्रशंसनीय कार्य किया है।

इस फिल्म को सिनेमा का 'मास्टरपीस" कहा जाता है। बेहद कम बजट में और अत्यंत सीमित तकनीकी संसाधनों के साथ कुरोसावा ने अपनी वृहद कल्पनाशीलता के सहारे एक महान फिल्म की रचना की है। पूरी फिल्म में केवल तीन लोकेशंस हैं। एक, रशोमान गेट जिसके नीचे लकड़हारा, पादरी और राहगीर बारिश से बचने के लिए अपना समय गुजारते हैं। दूसरा, कोर्ट का अहाता जहां सभी चश्मदीद अपना विवरण सुनाते हैं। तीसरा, जंगल का वह हिस्सा जहां घटना घटी। फिल्म का प्रकाश संयोजन अद्भुत है। श्वेत-श्याम फिल्म होने के कारण अँधेरे-उजाले का प्रभाव तीक्ष्ण रूप से उभरकर आता है। फिल्म का मूल रंग चितकबरा है।

निर्देशक ने निर्जीव और सजीव दोनों तरह के ऑब्जेक्ट्स पर काली-सफेद रोशनी का मिश्रण बनाए रखा है, जो फिल्म की रहस्यमयी थीम के अनुरूप है। पूरी शूटिंग प्राकृतिक रोशनी में की गई है और चेहरे के मनोभावों को उभारने के लिए मिरर रिफ्लेक्शंस का उपयोग किया गया है। कुरोसावा ने अधिकांश दृश्य कई कैमरों से एक साथ अलग-अलग एंगल से फिल्माए हैं और बाद में संपादन के दौरान उन्हें मिला दिया है जिसके कारण ये दृश्य एक अलग ही प्रभाव उत्पन्ना करते हैं। विशेष तौर पर जंगल में लड़ाई के दृश्य इस तकनीक से बेहद उम्दा बन पड़े हैं।

इस फिल्म को जापान की द्वितीय विश्व युद्ध में हार के रूपक की तरह भी देखा जाता है। जापानी दर्शकों एवं समीक्षकों को यह फिल्म पसंद नहीं आई और बॉक्स ऑफिस पर यह फ्लॉप साबित हुई। मगर जापान के बाहर पूरे विश्व में इसे बेहद सराहा गया और विश्व सिनेमा की धरोहर माना गया। फिल्म का अंत मानवता में विश्वास को सुदृढ़ करता है।