"लेमन ट्री" हक की लड़ाई पर एक अनूठी फिल्म / राकेश मित्तल

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"लेमन ट्री" हक की लड़ाई पर एक अनूठी फिल्म
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2013


इसराइल-फिलिस्तीन विवाद पिछले कई दशकों से पश्चिम एशिया को अपनी गिरफ्त में लिए हुए हैं। अनेक वर्षों के खून-खराबे के बावजूद दोनों मुल्कों में कड़वाहट बरकरार है। दहशत और अराजकता का वातावरण वहां आम नागरिकों की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। इसराइली फिल्मकार ऐरान रिकलिस ने इस विवाद की पृष्ठभूमि में एक छोटी-सी घटना को लेकर अत्यंत मार्मिक एवं दर्शनीय फिल्म बनाई है। वर्ष 2008 में बनी इस फिल्म को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

इसराइल और वेस्ट बैंक की सीमा रेखा पर इसराइली क्षेत्र में बने एक मकान में इसराइल के रक्षा मंत्री नावोन (डोरोन टेवोरी) अपनी पत्नी मीरा (रॉना लिपाज माइकल) के साथ आकर रहने लगते हैं। सीमा रेखा की दूसरी तरफ उनके मकान के ठीक बगल में एक फिलिस्तीनी विधवा सलमा जिदान (हिआम अब्बास) रहती है, जिसके आंगन में नींबू के पेड़ों का एक छोटा-सा बगीचा है। उसका परिवार वहां कई पीढ़ियों से रह रहा है। इसराइली सुरक्षा तंत्र अपने रक्षा मंत्री और उनकी पत्नी की सुरक्षा के लिए सलमा के मकान के आसपास कांटेदार तारों की दीवार खड़ी कर सुरक्षा गार्ड्स की एक चौकी बना देता है। इसके बावजूद उन्हें लगता है कि उन नींबू के पेड़ों के कारण मंत्री की जान को खतरा हो सकता है क्योंकि पेड़ों की आड़ लेकर आतंकवादी उन पर हमला कर सकते हैं। इस कारण सुरक्षा अधिकारी नींबू के पेड़ों को काटने का आदेश देते हैं।

सलमा को यह बेदह नागवार गुजरता है कि उसकी सीमा में, उसके घर में घुसकर इसराइली सैनिक उसके पेड़ों को काटें। मगर वह बिल्कुल अकेली और असहाय है। उसका बेटा नौकरी के लिए अमेरिका चला गया है और बेटियां शादी करके अपना घर बसा चुकी हैं। फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती और एक युवा वकील जियाद दाऊद (अली सुलेमान) की सहायता से इस आदेश के खिलाफ इसराइली सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देती है। इस कोर्ट केस की खबर मीडिया जोर-शोर से प्रचारित करता है और रातों-रात यह घटना इसराइली-फिलिस्तीनी जनता में चर्चा का केंद्र बन जाती है।

रक्षा मंत्री की पत्नी मीरा को सलमा से सहानुभूति है। वह मानती है कि सलमा के साथ अन्याय हो रहा है और इसराइली सेना बेवजह बात का बतंगड़ बना रही है। वह सलमा के अकेलेपन के दर्द और उसकी मुश्किलों को भी समझती है। दोनों महिलाओं के बीच एक अदृश्य भावनात्मक रिश्ता बन जाता है।

कोर्ट केस की कार्रवाई के बाद सलमा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। उसे तरह-तरह से धमकियां दी जाती हैं। इसराइली सैनिक रात में उसके घर पर पत्थर फेंकते हैं, हमला करते हैं। मगर अत्यंत डरी हुई होने के बावजूद वह विचलित नहीं होती। रक्षा मंत्री की पत्नी की सहानुभूति के बावजूद उसके विजयी होने की संभावना न्यूनतम है पर वह अपना संघर्ष जारी रखती है।

इस फिल्म की कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। इसराइली रक्षा मंत्री शाउल मोफाज अपने कार्यकाल (2002-2006) के दरमियान कुछ समय के लिए वास्तव में इसराइल-वेस्ट बैंक सीमा पर रहने चले गए थे। उनकी सुरक्षा के लिए इसराइली सैनिकों ने उनके घर के आसपास लगे जैतून के पेड़ों को काटना शुरू कर दिया था। जिस फिलिस्तीनी परिवार के वे पेड़ थे, उसने रक्षा मंत्री पर मुकदमा ठोंक दिया था और इस केस को वह सुप्रीम कोर्ट तक ले गया था। यह मामला उन दिनों मीडिया की सुर्खी बना हुआ था। इन्हीं सुर्खियों के आधार पर निर्देशक एरान रिकलिस ने एक पटकथा का ताना-बाना बुना, जो अंततः इस फिल्म के रूप में सामने आया।

फिल्म की केंद्रीय पात्र सलमा की भूमिका के लिए उन्होंने इसराइल की सबसे मशहूर और निष्णात अभिनेत्री हिआम अब्बास को चुना। एक चिंतित, भयभीत किंतु दृढ़ निश्चयी एवं जुझारू महिला के पात्र को हिआम ने जीवंत कर दिया है। रिकलिस इसके पहले भी अरब और मध्य-पूर्वी यहूदियों के रिश्तों पर ‘द सीरियन ब्राइड’ तथा ‘कप फाइनल’ जैसी फिल्में बना चुके हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहद चर्चित रही हैं। इन दोनों फिल्मों की नायिका हिआम अब्बास ही थीं। हालांकि यह इसराइल-फिलिस्तीन विवाद पर बनी फिल्म नहीं है किंतु इस विवाद की छाया फिल्म के हर दृश्य के समानांतर दिखाई पड़ती है। निर्देशक ने किसी भी एक पक्ष की ओर झुकने के बजाए दोनों की कमियों को उजागर किया है।

इसके बावजूद फिल्म इस तरह बनी है कि दर्शकों की सहानुभूति फिल्म के हर पात्र के साथ जुड़ जाती है, चाहे वह किसी भी पक्ष का हो। एक बिल्कुल अलग संकल्पना पर आधारित इस अनूठी फिल्म को देखना एक विशिष्ट अनुभव है।