"वर्टिगो" कई परतों में गुंथी मनोवैज्ञानिक रहस्य कथा / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 04 जनवरी 2014
अल्फ्रेड हिचकॉक विश्व सिनेमा में रहस्य और रोमांचकारी फिल्मों के पर्याय कहे जाते हैं। दुनिया भर में उनकी फिल्मों के प्रशंसक मौजूद हैं। उन्होंने अपना फिल्मी जीवन मूक फिल्मों के लिए शीर्षक लिखने के काम से शुरू किया था। फिल्म विधा के लगभग सभी क्षेत्रों में काम करने के बाद 1927 में उन्होंने पहली बार फिल्म निर्देशित की। अपने पचास साल लंबे फिल्मी करियर में उन्होंने अनेक उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण व निर्देशन किया। वर्ष 1958 में प्रदर्शित 'वर्टिगो" उनकी बेहतरीन फिल्म मानी जाती है। अपने प्रदर्शन के शुरूआती समय में इस फिल्म को ज्यादा नोटिस नहीं किया गया किंतु कालांतर में इसे हिचकॉक की सबसे अच्छी कृति के रूप में मान्यता मिली।
ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट द्वारा प्रत्येक दस साल में दुनिया के बेहतरीन फिल्मकारों, पत्रकारों और समीक्षकों की राय के आधार पर 'साइट एंड साउंड ओपीनियन पोल" के जरिये विश्व सिनेमा की उस समय तक की टॉप टेन फिल्मों का चयन किया जाता है। वर्ष 2012 में हुए सबसे ताजा ओपीनियन पोल में 'वर्टिगो" ने 'सिटीजन केन" को पीछे धकेलते हुए टॉप टेन में भी पहला स्थान प्राप्त किया है। इस लिहाज से इसे 'बेस्ट फिल्म ऑफ ऑल टाइम" कहा जा सकता है।
यह फिल्म मूलत: पियरे बोलिऊ एवं थॉमस नॉरसेजक द्वारा लिखित फ्रेंच उपन्यास 'द लिविंग एंड द डेड" पर आधारित है। कहानी का नायक जॉन स्कॉटी फरग्यूसन (जेम्स स्टुअर्ट) सैन फ्रांसिस्को पुलिस का एक सेवानिवृत्त जासूस है। जॉन एक्रोफोबिया नामक बीमारी से पीड़ित है, जिसके कारण उसे ऊंचाई का खौफ है। किसी भी ऊंची जगह से नीचे देखने पर उसका सिर चकराने लगता है। उसकी इस बीमारी के कारण एक बार एक अपराधी का पीछा करते हुए उसके साथी पुलिसकर्मी की जान चली जाती है। इस अपराध बोध के कारण वह पुलिस से सेवानिवृत्ति ले लेता है। जॉन का एक पुराना मित्र गेविन एलस्टर (टॉम हेलमोर) अपनी पत्नी मेडलिन (किम नोवाक) के अजीबोगरीब व्यवहार से परेशान है। मेडलिन अक्सर बेखुदी की अवस्था में इधर-उधर भटकती रहती है। उस अवस्था में वह कहां जाती है और क्या करती है, उसे याद नहीं रहता। गेविन किसी तरह जॉन को मेडलिन की जासूसी करने के लिए मना लेता है। मेडलिन का पीछा करते-करते जॉन उससे प्यार करने लगता है। परिस्थितियां करवट लेती हैं और वह एक कत्ल के षड़यंत्र में उलझ जाता है।
फिल्म की कहानी कई परतों में गुंथी है। कहानी की बुनावट कुछ इस तरह से की गई है कि दो वास्तविक पात्रों के साथ-साथ उनकी काल्पनिक परछाइयां भी समानांतर रूप से चलती हैं। हिचकॉक की फिल्मों में एक स्थायी पात्र होता है: एक निर्दोष व्यक्ति, जो परिस्थितियों का शिकार होकर दोषी मान लिया गया है। उसी केंद्रीय पात्र के आसपास वे पूरी फिल्म का खाका रचते हैं। सामान्य तौर पर सस्पेंस फिल्में रहस्य खुल जाने के साथ ही समाप्त हो जाती हैं किंतु यहां मुख्य रहस्य खुल जाने के बाद भी लगभग एक-तिहाई फिल्म बाकी रह जाती है और अंत के प्रति दर्शकों का कौतूहल बढ़ जाता है। बल्कि रहस्य खुल जाने के बाद फिल्म और भी प्रभावी हो जाती है।
रहस्य और रोमांच के अलावा इसे एक मनोवैज्ञानिक फिल्म भी कहा जा सकता है। जॉन की बीमारी को निर्देशक ने एक रूपक की तरह इस्तेमाल किया है। उसके चेहरे पर आते-जाते भावों में अनेक अभिव्यक्तियां छिपी हैं। हिचकॉक ने कई दृश्यों में कैमरे का बहुत बारीकी से इस्तेमाल किया है। ध्वनि, प्रकाश और रंगों का अद्भुत सामंजस्य वातावरण को रहस्यमय बनाने में मदद करता है। फिल्म में सैन फ्रांसिस्को शहर भी एक किरदार बनकर उभरा है। हर लोकेशन उस दृश्य विशेष के प्रभाव को गहरा करती है। जॉन की भूमिका में जेम्स स्टुअर्ट और मेडलिन की भूमिका में किम नोवाक ने कमाल का अभिनय किया है। अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्मों में स्त्री पात्र बहुत सशक्त ढंग से उभरकर आते हैं। उनके चेहरे, संवाद, हावभाव, चाल-ढाल, कॉस्ट्यूम्स आदि सभी एक विशेष तरह का प्रभाव उत्पन्ना करते हैं।
सन् 1996 में इस फिल्म के नेगेटिव्स की पूरी तरह मरम्मत कर डिजिटल साउंड के साथ 70 एमएम में इसे पुन: प्रदर्शित किया गया था।