"हयात" मासूम सपनों की परवाज / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2013
ईरानी सिनेमा की गिनती विश्व के श्रेष्ठतम सिनेमा में होती है। वहां की फिल्में सामाजिक सरोकारों और अवाम के दर्द से जुड़ी होती हैं। कोमल मानवीय भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति ईरानी फिल्मों की विशेषता है। भारत और ईरान की सांस्कृतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि बहुत मेल खाती है, इसलिए कई बार ईरानी फिल्में देखते हुए लगता है कि यह हमारे देश के ही किसी हिस्से की कहानी है।
बच्चों से जुड़े कथानकों पर फिल्म बनाने में ईरानी फिल्मकार माहिर हैं। ऐसी ही एक फिल्म है ‘हयात’। वर्ष 2005 में बनी इस फिल्म के निर्देशक हैं गुलाम रेजा रमेजानी। यूं तो इस फिल्म को बाल फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है किंतु हर उम्र के दर्शकों के लिए यह एक बेहतरीन फिल्म है। ‘हयात’ का अर्थ होता है जीवन। यह फिल्म हर व्यक्ति के जीवन का दर्पण है, जिसे हम एक बच्ची के दृढ़संकल्प, संघर्ष, आकांक्षा, आत्मविश्वास, धैर्य और मासूमियत के माध्यम से देखते हैं।
हयात (गजालेह परसाफर) बारह साल की लड़की है, जो ईरान के एक छोटे-से गांव में अपने परिवार के साथ रहती है। वह खूब पढ़ना चाहती है पर उसके गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद पढ़ाई की सुविधा नहीं है और वहां लड़कियों को पढ़ाना कतई अच्छा नहीं समझा जाता। उसके स्कूल में एक परीक्षा होने वाली है, जिसमें सफल होने वाले बच्चे आगे पढ़ाई के लिए शहर जा सकेंगे। हयात किसी भी स्थिति में उस परीक्षा में सफल होना चाहती है और इसके लिए कड़ी मेहनत कर रही है। परीक्षा वाले दिन उसके पिता अचानक बहुत बीमार हो जाते हैं और उस पर अपनी नवजात बहन की देखभाल की जिम्मेदारी आ जाती है। साथ ही उसे घर का सारा काम करना है, जानवरों को चारा-पानी देना है, दूध दुहना है, छोटे भाई को नाश्ता बनाकर देना है और नवजात बहन को दूध पिलाकर सुलाना है। तभी वह परीक्षा देने स्कूल जा सकती है.....जोकि असंभव है क्योंकि आठ माह की बहन को घर पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता और उसे किसी के सुरक्षित हाथों में सौंपने की उसकी तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं।
इस छोटे-से प्लॉट पर निर्देशक ने बेहद खूबसूरत और मार्मिक फिल्म बनाई है। पटकथा इतनी कसी हुई है कि दर्शक पूरी फिल्म के दौरान अपनी कुर्सी से हिल भी नहीं पाते और उनकी संवेदना पूरी शिद्दत के साथ उस लड़की से जुड़ जाती है। अंत तक आते-आते हॉल में बैठा हर दर्शक ईश्वर से दुआ मांगने लगता है कि बस, किसी तरह यह लड़की अपनी परीक्षा में बैठने में सफल हो जाए.....। यही जुड़ाव निर्देशक की सफलता है। बहुत कम ऐसी फिल्में होती हैं, जिनमें दर्शक इस तरह फिल्म के साथ एकाकार हो जाते हैं। इस फिल्म में भाई-बहन के रिश्ते को भी बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है।
बच्चों से अभिनय कराना तो कोई ईरानी फिल्मकारों से सीखे। हयात (गजालेह परसाफर) और उसके छोटे भाई अकबर (मेहरदाद हसनी) की भूमिका में दोनों बच्चों ने कमाल किया है। अपनी जीवंत अदाकारी से उन्होंने फिल्म को अविस्मरणीय बना दिया है। आठ माह के बच्चे (मोहम्मद सईद बाबाखानलो) के जो एक्सप्रेशन निर्देशक ने कैमरे में कैद किए हैं, वे आप किसी अन्य फिल्म में नहीं देख सकते।
इस फिल्म के प्रदर्शित होते ही इस पर पुरस्कारों की झड़ी लग गई। विश्व के लगभग हर बाल फिल्म समारोह में इसे अनेक पुरस्कार मिले। कई देशों की विभिन्न भाषाओं में इसे डब किया गया है। बाल चित्र समिति, भारत सरकार ने भी इसके अधिकार खरीदकर इसे हिंदी में प्रस्तुत किया है।