'अनारदाना, अनारदाना असा तुर्की टोपीवाले नाल जाना' / जयप्रकाश चौकसे

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'अनारदाना, अनारदाना असा तुर्की टोपीवाले नाल जाना'
प्रकाशन तिथि :20 जनवरी 2017


छोटे परदे पर तुर्की में बनाए गए सीरियल हिंदुस्तानी में डब करके दिखाए जा रहे हैं। तुर्की का 'फातमागुल' अत्यंत लोकप्रिय रहा, जिसमें एक गरीब कन्या से दुष्कर्म करने वाले अमीरजादे लंबे संघर्ष के बाद अपने गुनाह की सजा पाते हैं। उन अमीरजादों में शामिल एक युवा केरिम है और वह दुष्कर्म करने वाली युवती से विवाह कर लेता है। इसमें अनेक पात्र हैं और सबके चरित्र का ग्राफ संपूर्ण है कि एक बिंदु से प्रारंभ होकर चरित्र विकास के शिखर पर कितने संघर्ष के बाद पहुंचता है। भारत की तरह ही अमीर-गरीब की खाई से सामाजिक विसंगतियां पैदा होती है परंतु भारत से थोड़ा अलग तुर्की का प्रशासन अमीरों के इशारे पर नाचता नहीं है। वहां के लोग न्याय के प्रति घोर आग्रही है। अन्याय के प्रति संघर्ष विपरीत परिस्थितियों में भी जारी रखते हैं।

तुर्की की जीवनशैली पर पश्चिम व पूर्व दोनों संस्कृतियों के प्रभाव हैं। वहां हमारे हावड़ा ब्रिज की तरह एक विराट सेतु है। तुर्की में कन्याओं के लिए स्कूल स्तर तक पढ़ाई अनिवार्य है। तुर्की की आबादी में इस्लाम धर्म को मानने वालों का प्रतिशत नब्बे से अधिक है परंतु तुर्की गणराज्य के संस्थापक अतातुर्क ने परदा प्रथा निरस्त की और शिक्षा अनिवार्य कर दी। लंबे दौर तक वहां के लोग तुर्की टोपी पहनते थे, जो गुंबद जैसे आकार की होती थी। इस टोपी का इस्तेमाल 'हिना' फिल्म के गीत में भी हुआ है, 'अनारदाना अनारदाना असा रूमी (तुर्की) टोपीवाले नाल जाना।' अतातुर्क ने इस इस्लाम प्रधान देश में यह हुक्म जारी किया कि तुर्की टोपी पहने आदमी को गोली मार दी जाएगी। उनके एक दरबारी ने कहा कि क्या आप हजारों लोगों को गोली मार देंगे। अतातुर्क का जवाब था कि केवल एक व्यक्ति को मारने पर सब लोग इस तुर्की टोपी का त्याग कर देंगे। दरअसल, अतातुर्क चाहते थे कि टोपी संभालते रहने की जद्‌दोजहद से मुक्त होकर लोग अपना काम करें। उनका विरोध हर उस किस्म के रीति-रिवाज से था, जिसमें मनुष्य की ऊर्जा नष्ट होती है और धर्म का व्यापार करने वालों को लाभ मिलता है। तुर्की टोपी उनके लिए प्रतीक था रूढ़िवाद का और उन्होंने इस्लाम के मानने वालों को आधुनिकता व विज्ञान के प्रति सजग रहने की शिक्षा दी गोयाकि वे कूपमंडुकता के विरोधी थे। किसी भी धर्म से कुरीतियों को हटाने का कार्य उसी धर्म में विश्वास करने वाले को करना होता है, क्योंकि अन्य धर्म के मानने वाले व्यक्ति द्वारा किए गए सुधार पर एतराज उठाया जाता है और अधिक कट्‌टरता विकसित होती है। हर धर्म के भवन के नीचे बने तलघर में कुरीतियां पनपती हैं और रात के अंधकार में ये कुरीतियां तलघर से निकलकर पूरे भवन में छा जाती हैं। रात में धर्म भवन में मंडराती कुरीतियां देखने वाले धर्म का स्थान कुरीतियों को दे देते हैं। कुरीतियां किसी भी धर्म का स्वाभाविक हिस्सा नहीं है। परंतु धर्म के स्वयंभू ठेकेदार कुरीतियां ही प्रचारित करते हैं।

ज्ञातव्य है कि 'जी' चैनल ने पाकिस्तान में बने सीरियल दिखाना प्रारंभ किए और अवाम मजे लेकर उन्हें देख रहा था तब एक स्वयंभू ठेकेदार ने नारा बुलंद किया कि कोई पाकिस्तान में बनी चीज भारत में उपयोग में नहीं लाई जा सकती। 'जी' चैनल ने पाकिस्तान के सीरियल बंद किए और तुर्की से कार्यक्रम आयात किए परंतु सांस्कृतिक तानाशाह को यह ज्ञात नहीं कि तुर्की भी इस्लाम धर्म का अनुयायी है। दरअसल, अधिकतर देशों में इस्लाम को मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। सारी राजनीतिक फतवेबाजियां अज्ञानी लोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं।

छोटे परदे पर तुर्की से आयात किया 'लिटिल लॉर्ड' अत्यंत लोकप्रिय रहा है, जिसका नायक आठ वर्षीय बच्चा है, जो जहां भी अन्याय देखता है, उसके खिलाफ अपने साथियों के साथ विरोध करता है और अंततोगत्वा कानून अपराध व अन्याय के खिलाफ सक्रिय हो जाता है।

दरअसल, अमिताभ बच्चन ने बड़े परदे पर आक्रोश की मुद्रा प्रस्तुत की थी, कुछ उसी अंदाज में 'लिटिल लॉर्ड' भी सक्रिय है। लिटिल लॉर्ड की मां की भूमिका करने वाली कलाकार अत्यंत सुंदर व चुस्त-दुरुस्त है और अपने पति की प्रत्यंचा पर चढ़े हुए तीर की तरह लगती है। धनुष के तनाव की शक्ति से ही तीर निशाने पर जा लगता है। इस सीरियल के पति-पत्नी भी धनुष और तीर की तरह हैं। उनके बीच तनाव और लगाव एक-दूसरे के पूर है। इस सीरियल में प्राय: गलतियां करने वाले हंसोड़ नौकर माहो का पात्र हमें पीजी वुडहाउस के बर्टी वूस्टर की याद दिलाता है।

दूरदर्शन युग में 'बुनियाद,हमलोग,' 'तमस,' आदि सार्थक कार्यक्रम बने हैं परंतु प्रायवेट चैनल फॉर्मूलावादी घटिया कार्यक्रम ही बनाते हैं। साधनों का भयावह अपव्यय हो रहा है, ठीक वैसा ही जैसा सरकार कर रही है।