'अरे यह क्या?' / विवेक तिवारी
"यह विदा है, अलविदा नहीं...." परदे के पीछे- जयप्रकाश चौकसे कल भी दैनिक भास्कर समाचार पत्र आयेगा पर उसमें एक कमी खलेगी नियमित स्तम्भ "परदे के पीछे" जिसे फ़िल्म समीक्षक श्री जयप्रकाश चौकसे जी पिछले 26 वर्षों से नियमित तौर पर लिखते आ रहे हैं। आज के समाचार पत्र में जब पढ़ा कि चौकसे जी अपने स्वास्थ्यगत कारणों से अपने इस स्तम्भ को विराम दे रहें हैं, तो मन में एक हूक सी उठी 'अरे यह क्या?' मुझे याद नहीं कि कब से मैं इस स्तम्भ का नियमित पाठक हूं, लेकिन इसे रोज पढ़ने की एक आदत सी बन गयी है। इस स्तम्भ में चौकसे जी ने अपनी लेखनी से जहाँ फिल्मी दुनिया की परदे के पीछे की कहानियाँ, जानकारियाँ और मनोरंजक किस्सों को हमारे समक्ष रखा वहीं उन्होंने अध्यात्म और दार्शनिक गहराइयों को भी सूक्ष्मता के साथ सहज-सरल ढंग से प्रस्तुत किया। उनका यह स्तम्भ रोज कुछ न कुछ नई बात कह जाता। वास्तव में यह हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गया है। कल के समाचार पत्र में शायद यह स्तम्भ पढ़ने को नहीं मिलेगा लेकिन चौकसे जी की पढ़ी हुई बातें हमें सदैव परदे के पीछे से याद आती रहेंगी। हम सभी पाठक उनके अच्छे स्वास्थ्य की भगवान से कामना करते हैं-