'आदित्य चोपड़ा कौन है?' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2014
एक बार शाहरुख खान ने कहा था आदित्य चोपड़ा नामक कोई व्यक्ति नहीं है, वह एक अदृश्य शक्ति है। उनका आशय था कि शो बिजनेस में होते हुए भी यह व्यक्ति कोई साक्षात्कार नहीं देता, कभी टेलीविजन पर दिखाई नहीं देता, दावतें नहीं देता। यहां तक कि अपनी फिल्मों की सफलता के समारोह में भी कभी उपस्थित नहीं होता। आदित्य चोपड़ा को किसी तरह की शोशेबाजी और व्यक्तिगत प्रचार में रुचि नहीं है। अपने पिता की 'जब तक है जान' जो उसने स्वयं लिखी थी के प्रीमियर में भी वह नजर नहीं आए। आदित्य चोपड़ा के सहायक और शिष्य की तरह करण जौहर ने अपना कैरियर शुरु किया और उन्हें अत्यधिक उजागर होने का शौक है। गोयाकि गुरू गुप्त रहते हैं और शिष्य प्रचार का कोई अवसर नहीं छोड़ता। आदित्य चोपड़ा अपनी सारी संचित शक्ति केवल अपने काम में लगाते हैं। यह एक किस्म की साधना है।
यशराज चोपड़ा का यह पुत्र किशोरावस्था से ही खामोश और तन्हा रहने वाला है। किशोर अवस्था की चपलता भी कभी उसमें नजर नहीं आई। वह कच्ची उम्र से ही हर शुक्रवार को नई फिल्म देखने जाता था और लौटकर फिल्म पर इस तरह विचार करता, मानो कोई विद्यार्थी संजीदगी से होमवर्क कर रहा हो। उसने जब होश संभाला तब यशराज फिल्म कंपनी आर्थिक कष्ट से जूझ रही थी। उनकी 'काला पत्थर' और 'सिलसिला' बहु सितारा फिल्में भी आशा के अनुरूप नहीं चली थीं तथा उस नैराश्य में मशाल, विजय इत्यादि कुछ हादसे और रचे गए थे तथा डूबती कंपनी को सहारा मिला 'चांदनी' से परंतु यह व्यावसायिक गुडविल भी श्रीदेवी, अनिल कपूर अभिनीत 'लम्हे' में डूब गई थी।
उन दिनों 'दीवाना', 'बाजीगर' और 'करण अर्जुन' से उभरते शाहरुख खान की संभावनाओं का सही आकलन करके यशराज चोपड़ा ने एक साथ सफल हॉलीवुड फिल्म से प्रेरित होकर 'डर' बनाई परंतु आदित्य चोपड़ा ने शाहरुख खान को नकारात्मक भूमिकाओं से निकाल कर रोमांटिक छवि देने का विचार किया। उन दिनों सबसे सफल फिल्म सूरज बडज़ात्या की पारिवारिकता से ओतप्रोत, शादी का वीडियोनुमा फिल्म हम आपके हैं कौन थी। यह पहली फिल्म थी जिसने सौ करोड़ की आय अर्जित की थी और इसी सफलता ने बड़े औद्योगिक घरानों को इस व्यवसाय की ओर आकर्षित किया था। आदित्य चोपड़ा को आर्थिक उदारवाद के कारण समाज में आए परिवर्तन और उनके यथार्थ से पलायन करके आकलन समझ में आ गया और उसने शाहरुख तथा काजोल को लेकर 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' बनाई जिसने यशराज फिल्म कंपनी का कायापलट ही कर दिया।
यशराज चोपड़ा पचास वर्षों से फिल्म बनाते हुए भी आर्थिक समस्याओं से घिरे रहते थे परंतु इस फिल्म की आय ने उन्हें ठोस आर्थिक सुरक्षा दी और एक पुत्र ने अपने विवेक से अनिश्चित कहे जाने वाले उद्योग में सकारात्मक नतीजों का गुर उजागर कर लिया। अपना आधुनिकतम विशाल स्टूडियो की कल्पना की थी। आदित्य चोपड़ा सुपर सितारों के साथ फिल्में बनाते हुए, नए युवाओं को प्रस्तुत करने वाली फिल्में भी बना रहे हैं और किसी भी फिल्म के घाटे को वे अपनी सैटेलाइट अधिकार का सौदा समग्र फिल्मों के साथ करते हुए उसे भी मुनाफे की फिल्म बना देते है। इस तरह आदित्य की मौलिक देन फिल्म उद्योग को यह है कि यह अनिश्चित, अस्थिर खेल नहीं है, यह टकसाल है।
बहरहाल ऐसे खामोश व्यक्ति का इटली जाकर बिना धूम धड़ाके शादी करना उसकी सोच का ही एक हिस्सा है। फिल्म उद्योग में इस तरह की कुछ शादियां पहले भी हुई हैं। इसमें सबसे पहले शम्मी कपूर ने गीता बाली से आधी रात के बाद बाणगंगा के एक मंदिर में शादी करना है। देव आनंद ने स्टूडियो के भोजन अवकाश में अपनी नायिका कल्पना कार्तिक से शादी की थी। सुनील दत्त और नरगिस को अपने विवाह को 'रहस्य' रखना पड़ा क्योंकि मेहबूब की 'मदर इंडिया' में दोनों माता और पुत्र के रूप में काम कर रहे थे। शशी कपूर और जेनीफर केंडल का विवाह भी सादगी से हुआ था। हाल ही में जॉन अब्राहम ने न्यूयार्क में विवाह किया। आज के प्रचार युग में सत्य को छुपाने वाली आंधियां प्रायोजित कर रहे हंै नेता और फिल्म वाले गुप्त विवाह कर रहे हैं।