'आसमान महल' का जमीनी फारुख शेख / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'आसमान महल' का जमीनी फारुख शेख
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2013


आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसके चंद घंटे पहले ही सातवें-आठवें दशक में समानांतर सिनेमा में आम आदमी की भूमिका करने वाले कलाकार फारुख शेख की मृत्यु दुबई में हो गई। हालांकि इस संयोग का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं है और न ही दल के लिए कोई अशुभ संकेत है। ज्ञातव्य है कि फारुख शेख गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र के जमींदार घराने के युवा थे और उनके पिता भी खुले विचारों के थे। उन्होंने पारसी महिला से विवाह किया था। इस तरह फारुख शेख के जीन्स में मुस्लिम एवं पारसी श्रेष्ठी वर्ग के लोगों का प्रभाव था। अधिकांश फिल्मों में वे गरीब या मध्यम वर्ग के युवा की भूमिकाएं करते रहे। केवल मुज्जफ्फर अली की 'उमरावजान अदा' में सामंतवादी वातावरण में सांस लेने वाली फिल्म में उन्होंने अभिनय किया। उसी काल खंड में अमोल पालेकर ने भी आम आदमी की भूमिकाओं का निर्वाह किया। अमोल के लिए वे भूमिकाएं उसका 'भोगा हुआ यथार्थ' थी परंतु फारुख शेख श्रेष्ठी वर्ग के थे, इसके बावजूद उन्होंने अत्यंत विश्वसनीयता से आम आदमी की भूमिकाओं का निर्वाह किया।

यह बात भी गौरतलब है कि उसी काल खंड में मुख्यधारा की फिल्मों में संजीव कुमार अभिनय में स्वाभाविकता के महान कलाकार थे और फारुख शेख वही काम सार्थक समानांतर फिल्मों में कर रहे थे। अभिनय की दृष्टि से संजीव कुमार और फारुख शेख सगे भाइयों की तरह थे। पर उनकी फिल्मों का स्केल अलग था। खय्याम एवं यश चोपड़ा के सहयोग से बनी 'नूरी' की व्यावसायिक सफलता के बाद मुख्यधारा के चालीस प्रस्ताव फारुख शेख ने अस्वीकार किए क्योंकि सामाजिक सोद्देश्यता के होने पर ही वे कम पैसों में गर्महवा, कथा, उमरावजान अदा, गमन इत्यादि फिल्में करते रहे। उनका यह समर्पण ही उन्हें अलग जमीन पर खड़ा करता है। ज्ञातव्य है कि संगीतकार ने ही नूरी की पटकथा लिखवाई थी और संगीत की रचना भी की थे। खय्याम यश चोपड़ा की 'कभी-कभी' कर चुके थे, अत: मार्गदर्शन के लिए यश चोपड़ा के पास गए थे। यश चोपड़ा ने उनसे साझेदारी में बनाने की बात की। यश चोपड़ा, खय्याम एवं रमेश तलवार 'नूरी' में भागीदार थे। आज के युवा दर्शकों ने फारुख शेख को रनवीर कपूर के पिता की भूमिका में 'यह जवानी है दीवानी' में देखा और उन चंद दृश्यों को फारुख शेख ने अपनी उजास से भर दिया। इस फिल्म में फारुख शेख अभिनीत पिता-पुत्र को अपनी इच्छाओं और सपनों से नहीं जकड़ता, वरन उसे अपना मार्ग चुनने की पूरी स्वतंत्रता देता है। और उसमें उभरे अपने दर्द को पुत्र से छुपा लेता है। यह पात्र अतिनाटकीय भी बनाया जा सकता था परंतु निर्देशक अयान मुखर्जी ने फारुख शेख को अभिनय में अपनी किफायती शैली को ही स्वीकार किया। अमीर जमींदार परिवार के फारुख शेख के जीवन और अभिनय में किफायत उनका अपना दृष्टिकोण था।

यह भी गौरतलब है कि अभिनय में स्वाभाविकता का आग्रह रखने वाले सारे कलाकार जैसे संजीव कुमार, फारुख शेख, अमोल पालेकर, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह इत्यादि सारे कलाकार रंगमंच से जुड़े थे। रंगमंच पर अभिनय एक अनुशासन है और नाटकों के मंचन करने वाले जीवन में किफायत का अर्थ बखूबी जानते हैं। राजनीति में किफायत का आदर्श गांधीजी के साथ चला गया था। अब अरविंद केजरीवाल उसे लाने का प्रयास कर रहे हैं। अपने 128वें वर्ष में कांग्रेस महात्मा गांधी का स्मरण करके अरविंद केजरीवाल का साथ देकर ही अपनी प्रासांगिकता बचाए रख सकती हैं क्योंकि इस प्रकरण में भारतीय जनता पार्टी से त्रासद चूक हो चुकी है।

अरविंद का अजूबा अन्याय आधारित राजनीति की पटकथा का आवश्यक झटका है। रंगमंच किफायत है, सिनेमा फिजूल खर्ची। फारुख शेख का सिनेमा ही सार्थक सेतु था। अपने कॉलेज के दिनों से ही फारुख शेख रंगमंच से जुड़े थे और निर्देशन तथा अभिनय के कई पुरस्कार महाविद्यालयों की नाटक स्पर्धा में जीत चुके थे। सिनेमा में नूरी, चश्मेबद्दूर, कथा और बाजार जैसी सफलताओं के बाद भी उन्होंने शबाना आजमी के साथ 'तुम्हारी अमृता' के अनगिनत प्रदर्शन विगत इक्कीस वर्षों में किए। उनके जीवन का अंतिम शो 14 दिसम्बर को आगरा में ताजमहल के सामने प्रस्तुत हुआ था। सामंतवाद में लाख बुराइयां रहीं परंतु कुछ राजा और जमींदार को का और संगीत की ओर रुझान रहा है जबकि आज के रईस कला नहीं वरन् केवल कलदार से ग्रस्त हैं।