'इंशाअल्लाह' का निर्माण खारिज / जयप्रकाश चौकसे

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'इंशाअल्लाह' का निर्माण खारिज
प्रकाशन तिथि : 09 सितम्बर 2019


संजय लीला भंसाली ने अपनी सलमान खान और आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म 'इंशाअल्लाह' को नहीं बनाने की घोषणा कर दी है। इस फिल्म का प्रदर्शन 2020 में ईद पर होने वाला था। सलमान खान और संजय लीला भंसाली के बीच कोई विवाद था, जिसके कारण फिल्म पहले से घोषित दिन नहीं प्रदर्शित हो सकती थी। आजकल फिल्म के प्रदर्शन की तारीख पटकथा लिखते समय ही तय कर दी जाती है। गर्भस्थ शिशु के शुभ मुहूर्त में जन्म लेने की योजना भी बना ली जाती है और सिजेरियन डिलीवरी का निर्णय ले लिया जाता है। इस खेल में डॉक्टर शामिल नहीं हैं। वर्तमान का सोच-विचार मायथोलॉजी द्वारा शासित है, इसलिए राष्ट्रीय बजट भी इस बार पारम्परिक ब्रीफकेस के बदले पारम्परिक बहीखाते के रूप में ले जाया गया। यह सारगर्भित बात भुला दी जाती है कि बहीखाते में 'शुभ लाभ' और 'लाभ शुभ' लिखते हैं। जिसका अर्थ है कि वही मुनाफा सार्थक है जिसे ईमानदारी से कमाया गया है। हमने ऐसी व्यवस्था बनाई है कि धनाढ्य होने की सारी गलियां अपराध के कार्यालय की तरह बन जाती है।

संजय लीला भंसाली की पहली फिल्म 'खामोशी' ने धन नहीं कमाया परंतु सलमान खान ने उन्हें 'हम दिल दे चुके सनम' बनाने के लिए प्रेरित किया और पूंजी निवेशक को आश्वासन भी दिया। इतना ही नहीं उस फिल्म में हास्य का पुट लाने के लिए दृश्यों के दोबारा लिखने में भी योगदान दिया। उस दौर में संजय लीला भंसाली ने सलमान के साथ 'देवदास' बनाने की बात भी की थी परंतु बाद में उन्होंने 'देवदास' शाहरुख खान के साथ बनाई, क्योंकि उस समय शाहरुख का सितारा बुलंदी पर था।

संजय लीला भंसाली की रणवीर कपूर और सोनम कपूर अभिनीत फिल्म 'सांवरिया' में सलमान खान ने बतौर मेहमान कलाकार छोटी भूमिका अभिनीत भी की थी। बताया जा रहा है कि महबूब स्टूडियो में 'इंशाअल्लाह' का बड़ा सेट लगाया गया था और आलिया भट्ट पर एक गीत भी फिल्माया जा चुका है। गोयाकि फिल्म पर काफी पूंजी लग चुकी है। 'इंशाअल्लाह' का अर्थ है कि ऊपरवाले की इच्छा के अनुरूप सभी कुछ होता है। 'इंशा' का तात्पर्य मंशा है। हमारे पुरातन ग्रंथों में तो इस आशय की बात लिखी है कि हम सभी भगवान विष्णु द्वारा देखे गए स्वप्न के पात्र हैं। 'माशाअल्लाह' का अर्थ प्रशंसा करना है। खूबसूरत व्यक्ति को देखकर हम उसकी प्रशंसा में माशाअल्लाह कहते हैं। सुभानअल्लाह भी कसीदा पढ़ने की तरह है। डॉक्टर शिवदत्त शुक्ला ने शब्दों के जन्म और उनकी यात्रा पर बहुत काम किया है, परंतु उसके प्रकाशन की आज्ञा नहीं देते। उनका सृजन स्वांत: सुखाय है। संजय लीला भंसाली की फिल्मों में संगीत व नृत्य संयोजन का कार्य वे स्वयं करते हैं। ज्ञातव्य है कि उनकी माता लीला गुजराती नाटकों को कोरियोग्राफ करती हैं। उनके पिता भी फिल्म उद्योग से जुड़े हुए व्यक्ति थे। उनकी बहन बेला भी फिल्मकार हैं। इस तरह फिल्म उद्योग में एक भंसाली घराना भी बन गया है।

संगीत क्षेत्र में घराने होते हैं और एक ही घराने के दो गायक कभी एक-दूसरे के प्रतिद्वन्दी नहीं होते। मध्य प्रदेश सरकार को मैहर घराने को पुनः सक्रिय करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में संगीत घरानों का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए और छात्रों को अपनी प्रतिभा को पहचानकर मांझने का अवसर देना चाहिए। संगीत मनुष्य के जख्मों पर मरहम का काम करता है। संजय लीला भंसाली भले ही यह स्वीकार न करें परंतु उनकी फिल्मों से आभास होता है कि उन पर शांताराम का बहुत प्रभाव है। शांताराम ने बहुत लंबी पारी खेली है। उन्होंने 'दुनिया ना माने', 'मानुष' और 'पड़ोसी' जैसी सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म बनाई है परंतु एक दौर में उन्होंने 'नवरंग' और 'झनक झनक पायल बाजे' जैसी विशुद्ध मनोरंजक फिल्में भी बनाई है। उस दौर में उन्होंने रंग और ध्वनि की ऑर्जी रची है और इसी दौर का प्रभाव संजय लीला भंसाली पर पड़ा है। वे 'दुनिया ना माने', 'मानुष' या 'दो आंखें बारह हाथ' जैसी महान फिल्मों से प्रेरित नहीं हैं।

बहरहाल, दर्शक को फिल्म के विषय में पहली सूचना उसके टाइटल से मिलती है। फिल्म के स्थिर चित्रों का प्रकाशन उन्हें अधिक जानकारी देता है। सबसे अधिक जानकारी फिल्म के ट्रेलर में मिलती है। ट्रेलर बनाने के विशेषज्ञ होते हैं जो फिल्म के विभिन्न भागों के शॉट्स कुछ ऐसे संयोजित करते हैं कि दर्शक फिल्म देखने का निर्णय करता है। प्राय: उसे ट्रेलर से जो आशा बंधी थी, फिल्म उसे निराश ही करती है। ट्रेलर कमोबेश भानुमती का कुनबा है, कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा है।