'उजली कमीज' की राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :09 दिसम्बर 2015
विराट कोहली ने भारतीय क्रिकेट टीम की दक्षिण अफ्रीका पर जीत चेन्नई के बाढ़ पीड़ितों को समर्पित की है परंतु भारत महान के अन्य प्रदेशों के अवाम की संवेदनाएं समाप्त-सी हो गई हैं। हमने पूरे भारत के सिनेमाघर मालिकों से अपील की है कि 14 दिसंबर की एक दिन की कमाई का चेक चीफ मिनिस्टर, तमिलनाडु के नाम बनाकर भेज दें। भारतीय सिनेमा का मूल स्वर हमेशा सामाजिक सोद्देश्यता सहित मनोरंजन रहा है और क्या उस आदर्श का निर्वाह एकल सिनेमाघर और मल्टीप्लैक्स करते हैं? सच तो यह है कि मल्टीप्लैक्स की कमाई टिकट बिक्री से अधिक पॉपकॉर्न बेचने से होती है। क्या वे एक दिन की समग्र कमाई बाढ़ राहत कोष में देंगे। मुझे व्यक्तिगत विश्वास है कि एकल सिनेमा देगा। उसने ही 102 वर्ष के इतिहास में 88 वर्ष तक भारतीय सिनेमा को जिंदा रखा है और आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है तथा प्रांतीय सरकारें उदासीन हैं। यहां तक कि मध्यप्रदेश में सौ रुपए तक टिकट पर दी कर छूट का लाभ भी वातानुकूलित सिनेमा को नहीं देते। उनके द्वारा कैटरेक्ट चिकित्सा प्रक्रिया में अनेक लोग अंधे हो गए और जांच की नौटंकी वैसी ही जारी है जैसे व्यापमं व पेटलावद के धमाकों की जारी है। विरोधी पक्ष को तो लकवा लग गया है।
बहरहाल, शाहरुख खान ने 'दिलवाले' की टीम के नाम पर एक करोड़ रुपए बाढ़ राहत कोष में भेजे हैं और अालोचकों का ख्याल है कि यह दया कम और फिल्म का प्रचार अधिक है। प्रचार सही परंतु रकम भलाई के काम में तो खर्च हुई है। तमाम सरकारेें तथाकथित विकास के काम के विज्ञापन पर असीमित धन खर्च करती हैं। कम से कम एक माह उसे ही रोक दें। विराट कोहली ने जीत के आधार गेंदबाज अश्विन की प्रशंसा की है कि उसका परिवार चेन्नई में कष्ट में था परंतु उसने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। देश प्रेम के लिए छाती कूटने से बेहतर है असल काम पर ध्यान देना। बहरहाल, दिसंबर महीने में अनेक सितारों के जन्म दिन हैं- धर्मेन्द्र, दिलीप कुमार, राज कपूर, राजेश खन्ना, सलमान खान इत्यादि। इस वर्ष 27 दिसंबर को सलमान खान के जन्मदिन पर पत्रकार वसीम खान की उनके परिवार पर लिखी किताब जारी होने वाली है। दिसंबर में ही दो मदमस्त हाथी नुमा फिल्में टकरा रही है- शाहरूख एवं रोहित शेट्टी की 'दिलवाले' और भंसाली की 'बाजीराव मस्तानी।' यह द्वंद्व भाग-2 है, पहला भाग 'सावरिया' बनाम 'अोम शांति ओम' हो चुका है।
दीपिका पादुकोण अमेरिका गई हैं, जहां उनके एजेंट ने किसी अमेरिकन फिल्म का प्रस्ताव प्राप्त किया है। हॉलीवुड में कलाकार का एजेंट ही स्टूडियो और फिल्मकार से संपर्क करता है। वहां पटकथाएं भी एजेंट के मार्फत ही बेची जाती हैं। अमेरिका में प्रियंका चोपड़ा की लोकप्रियता के बाद दीपिका के मन में यह ख्याल जरूर आया होगा कि प्रियंका के पास ऐसा क्या है, जो उनके पास नहीं? दरअसल, साबुन के विज्ञापन ने भारतीय समाज पर गहरा असर डाला है कि 'उसकी कमीज मेरी कमीज से उजली क्यों?' यही मानसिक ग्रंथि हर क्षेत्र में नज़र आती है। नेता भी इसमें देश की ऊर्जा का अपव्यय कर रहे हैं कि विरोधी की कमीज मेरी कमीज से उजली क्यों? वे भूल जाते हैं कि भारतीय सत्ता कुर्सी का चरित्र ही दागदार है। विरोध केवल चुनाव जीतने तक सीमित है। भारत में गरीबी और अन्याय आधारित व्यवस्था के व्यापक अंधकार के बावजूद विज्ञापन वाली 'सफेदी' के प्रति घोर आग्रह है। टेलीविजन चैनल तो इस 'उजली कमीज' के चक्कर में खबरों की इज़ाद भी कर लेते हैं। यहां तक कि देश के सृजन क्षेत्र में भी विरोधी की कमीज मुझसे उजली क्यों है के चक्कर में बड़ी हानि हो रही है। आजकल कीचड़ उछालने के नए माध्यम अा गए हैं। ट्विटर व फेसबुक में बारहमासी होली चल रही है। कुछ लोग वैकल्पिक संसार में धन लेकर कालिख पोतने का काम करते हैं। सफेदी के प्रति इस आग्रह के कारण सामाजिक स्तर पर इस अंधे कालखंड का प्रतीक रंग 'स्याह' होना चाहिए परंतु 'उजली कमीज' की प्रतिस्पर्धा ने इसे 'धूसर' बना दिया है। 'कलर ब्लाइंडनेस' एक रोग है और रोगी को कुछ रंग दिखाई नहीं देते। 'दिलवाले' के एक गीत में प्रेम का रंग 'गेरु' बताया गया है।