'एक जंगल, एक पहाड़ और एक बहती नदी' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 07 अक्तूबर 2019
मुंबई के हरे-भरे आरे मिल्क कॉलोनी में व्यवस्था वृक्ष काट रही है। वृक्षों की रक्षा के लिए सैकड़ों लोग आरे पहुंचना चाहते हैं परंतु पुलिस उन्हें रोक रही है। अदालत का सहारा भी उपलब्ध नहीं रहा। व्यवस्था के सारे अंग एक जैसे काम कर रहे हैं मानो पूरे कुएं में ही भांग पड़ गई हो। जिन कलाकारों ने कभी मोबोक्रेसी के विरोध में बयान दिया था, उन पर देशद्रोह का मुकदमा कायम करने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। क्या आरे के वृक्ष विकास पथ में बाधा पहुंचा रहे हैं? 'कौन बनेगा करोड़पति' के एक एपिसोड में प्रश्न पूछा गया कि वृक्षों की रक्षा करते हुए प्राण त्याग देने वाली महिला कौन थी? बताया गया कि राजस्थान में अमृता देवी अपनी तीन बेटियों के साथ वृक्षों की रक्षा का प्रयास कर रही थीं और उन्हें कत्ल कर दिया गया था।
पुणे फिल्म संस्थान में पीपल का पुराना वृक्ष हुआ करता था। छात्र अपनी दुविधाओं से मुक्त होने के लिए इस वृक्ष के नीचे विचार मंथन करते थे। उस वृक्ष को 'विज़डम ट्री' कहा जाने लगा। ज्ञातव्य है कि गया में एक वृक्ष के नीचे बैठे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। वह वृक्ष पूजनीय बना रहा। फिल्मकार इंद्रकुमार अपनी हर फिल्म का एक दृश्य उदगमंडलम के एक वृक्ष के पास करते रहे। उन्हें यह अंधविश्वास था कि वृक्ष उनकी सफलता का टोटका है। एक बार एक फिल्म सेंसर बोर्ड को भेजी जा रही थी और इंद्रकुमार को याद आया कि इस फिल्म में उस वृक्ष के नीचे कोई दृश्य नहीं फिल्माया गया है। उन्होंने प्रिंट सेंसर को नहीं भेजा और यूनिट लेकर उदकमंडलम गए। बहरहाल, यह वृक्ष प्रेम नहीं वरन् अंधविश्वास था।
राज कपूर ने ग्राम लोनी (पुणे) के निकट सौ एकड़ का फार्म खरीदा था। उसी के बीच से मुठा नदी बहती है। उन्हें अपनी फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' में अलसभोर में एक दृश्य फिल्माना था। नायिका का गीत सुनते हुए पूरी बस्ती के लोग सुबह उठते हैं। इस दृश्य के लिए फार्म हाउस के तमाम वृक्षों के तनों को तीन रंगों में रंगा गया। प्रातः सूरज की किरणों में रंगे हुए वृक्ष कितने सुहाने लगते होंगे। वृक्षों को रंगने में एक माह का समय लगा।
ओ' हेनरी अपनी कथाओं के लिए विख्यात रहे हैं। उनकी एक कथा 'द लास्ट लीफ' का सार यह है कि किशोर अवस्था की एक कन्या लंबे समय से बीमार थी। कमरे की खिड़की से एक वृक्ष दिखाई देता है। पतझड़ का मौसम चल रहा है। पत्ते झर रहे हैं। किशोरी को अंधविश्वास है कि जिस दिन आखिरी पत्ता भी गिर जाएगा, वह मर जाएगी। डॉक्टर और पड़ोसी उसे अंधविश्वास से मुक्त करने का प्रयास करते हैं। पड़ोस में ही एक वृद्ध पेंटर रहता है। उसकी किसी भी कलाकृति को कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला है। उसे साधारण पेंटर माना जाता है। एक रात तूफान के साथ भारी वर्षा होती है। किशोरी इस विश्वास के साथ जागती है कि आखिरी पत्ता झड़ गया होगा और वह भी शीघ्र मर जाएगी।
वह भय से थरथराते हुए खिड़की खोलती है। आखिरी पत्ता जस का तस कायम है। अब उसे जीवन के प्रति विश्वास हो जाता है। दवाएं भी असर करने लगती हैं। उसके पड़ोस में रहने वाले पेंटर को निमोनिया हो जाता है। दरअसल उस असफल माने जाने वाले पेंटर ने पेड़ पर एक पत्ता पेंट कर दिया था। उस पेंटर ने किशोरी के प्राण बचा लिए, उसे अंधविश्वास से मुक्त कर दिया। निमोनिया ने उसके प्राण हर लिए परंतु वह जान गया था कि उसका जीवन सार्थक रहा। वह पत्ता उसका स्वान सॉन्ग (अंतिम व बेहतरीन गीत) रहा।
बस्तर के जंगल में ताड़ी के एक वृक्ष से एक परिवार का जीवन बचा रहता है। वृक्ष से झरते रस से सल्फी बनती है। कुछ वृक्षों की छालों से आयुर्वेद की दवा बनाई जाती है। तुलसी के पत्ते उबालकर पिए जाते हैं। नीम के पत्ते उबालकर पिए जाते हैं। नीम के पत्तों को उबालकर पीने से रोगों का इलाज होता है। एक ही रोपे से दो वृक्ष लगाने पर उनके पत्ते अलग-अलग होते हैं, उनके फलों का स्वाद अलग-अलग होता है।
गुजर गए जैसे हजार दिन ये भी गुजर जाएंगे/पर उनके दिए जख्म हमेशा हरे रहेंगे। हमारी भाषा कितनी चमत्कारिक है कि जख्मों के हरा रहने की बात की जाती है। पुरानी दीवारों पर लगातार हो रही वर्षा से हरी काई जम जाती है और इसी को लेकर मिर्जा गालिब ने शेर कहा, जिसका आशय यह है कि गरीबी के कारण घर में खिजा है परंतु दीवारों पर बहार छाई है। यह विचारणीय है कि इलेक्ट्रिक शवदाहगृह नहीं होने के कारण चिता के लिए तीन मन लकड़ी लगती है। क्या मुरदे वृक्ष खाते हैं? इस आशय का लेख वर्षों पूर्व प्रकाशित हुआ था।
एक साधारण सी बात है कि वर्षा के मौसम में द्वार पर आवाज होती है। इस तथ्य से प्रेरित निदा फाज़ली का शेर है, 'चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात/कट कर भी मरते नहीं पेड़ों में दिन-रात।'