'ओम नमो शिवाय:' दिल को मुश्किल से बचाता है / जयप्रकाश चौकसे

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'ओम नमो शिवाय:' दिल को मुश्किल से बचाता है
प्रकाशन तिथि :05 सितम्बर 2016


आदित्य चौपड़ा ने 'दुल्हनिया' बनाते समय अपने पिता के मित्र यश जौहर के इकलौते बेटे करण जौहर को अपना सहायक बनाया। अपने अच्छे व्यवहार व साफ-सुथरे तौर-तरीकों के कारण 'दुल्हनिया' के नायक-नायिका शाहरुख खान और कॉजोल करण को पसंद करने लगे। कॉजोल एक निहायत ही सुलझी हुई महिला हैं और साफगोई में वे अपनी मां तनुजा से कम नहीं हैं। विलक्षण अभिनेत्री नूतन और तनूजा की मां शोभना समर्थ चौथे दशक में ही आधुनिक दृष्टिकोण की साहसी महिला थीं और भारत जैसे देश में जहां कूपमंडुकता, अंधविश्वास एवं तर्कहीनता चरित्र में कूट-कूटकर भरी जाती हों, वहां इतने पहले इतनी आधुनिकता व तर्क को महत्व देना साधारण बात नहीं है। शोभना समर्थ ने अपनी दोनों बेटियों नूतन और तनूजा को स्विट्जरलैंड के फिनिशिंग स्कूल में भेजा था, जहां जीवन को सलीके से जीना सिखाया जाता है। पारम्परिकता बेटियों को रोटी बनाना, आचार डालना, कढ़ाई-बुनाई करना सिखाती है, क्योंकि इसी को आदर्श बहू का प्रशिक्षण माना जाता था। बेटियों को पालने के ये दो स्कूल हैं। पारम्परिक स्कूल बेटियों को चटाई बना देता है, बिस्तर बना देता है, कपड़े धोने की मशीन बना देता है। पुरुष केंद्रित समाज ऐसी ही आज्ञाकारी दुल्हनें चाहता है। कुछ वर्षों से बेटियों को प्रशिक्षण दिया जाने लगा है कि कैसे वे अप्रवासी भारतीय की दुल्हन बनेंगी और विदेश में बसे अपने पति की भारतीयता का पोषण करेंगी। हमारा समाज बेटियों को इसी तरह के प्रशिक्षण देता रहा है कि उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व विकसित नहीं हो सके। महिला के अपनी संपूर्णता में प्रकट हो जाने से पुरुष समाज हमेशा ही भयभीत रहा है, विशेषकर यौन संबंधों में। सिमोन द ब्वा ने दशकों पूर्व लिखा है जब कोई महिला बुर्जुआ प्रसाधन ठुकराकर अपने नैसर्गिक रूप में खुलकर सामने आती हैं तो पुरुष भयभीत हो जाते हैं उनके घुटने कांपने लगते हैं, पसीने से तर हो जाते हैं।

बहरहाल करण जौहर काजोल के मित्र भी हैं और अपने को एहसानमंद मानते हैं। काजोल ने अजय देवगन से विवाह किया है और हाल ही में उन्होंने सगर्व कहा कि जीवन में ठहराव और यथार्थ के धरातल पर पैर जमाना उन्होंने अजय देवगन से ही सीखा है। ज्ञातव्य है कि अजय देवगन एक विशाल बंगले में संयुक्त परिवार में रहते हैं। उनके पिता वीरू देवगन शिखर के एक्शन डायरेक्टर रहे हैं। इस संयुक्त परिवार नामक संस्था का भारत में पराभव हो गया है परंतु लंबे अरसे तक संयुक्त परिवार नामक संस्था साथ रहने के लाभ को रेखांकित करती हुई भारतीय संस्कृति की महान पाठशाला रही है। स्कूल-कॉलेज में विषय का ज्ञान ही सीखा जा सकता है और परिवार ही संस्कृति की एकमात्र पाठशाला है और इसी संस्था के ध्वस्तप्राय: होने के कारण भारत में नैतिक मूल्यों का लोप-सा हो चुका है। इसके साथ ही सघन रूप से गूंथी हुई महाभारत की परत-दर-परत गहराई तक पहुंचने के प्रयास भी कम ही हुए हैं। यह तो भारत महान ही है, जो आख्यानों की गलत व्याख्या करके अंधविश्वास व कूपमंडुकता रचने में सफल हो जाता है। हमने सगर्व अपने अज्ञान के घोल को इस कदर संतृप्त (सेचुरेटेड) कर लिया है कि अब और उसमें कुछ डाला नहीं जा सकता। इतना ही नहीं हमने इस घोल को अब 'लबरेज' करके ठोस बना दिया है। एक ही पदार्थ ठोस, तरल व वायु स्वरूप में आ सकता है। हमने अपनी जड़ता के साथ ऐसा ही किया है, जो संभवत: हजार वर्ष पश्चात ध्वस्त हुई दुनिया की खोज में शिलालेख स्वरूप में मिलेगी और उस दौर की पीढ़ियां हमारी मूढ़ता पर वैसे ही हैरान होंगी जैसे आज अपने अतीत खोज में हम हो जाते हैं। हम लोग इतिहास को रोमैंटिसाइज करने में महारत हासिल कर चुके हैं।

बहरहाल, वर्तमान मुद्‌दा यह है कि करण जौहर की बहुसितारा फिल्म 'ए दिल है मुश्किल' दीपावली पर अजय देवगन की 'शिवाय' से सीधी टकरा रही है और दो फिल्मों के साथ लगने पर दोनों को ही कुछ न कुछ हानि तो होती ही है। ताज़ा सनसनी यह है कि ट्विटर संसार में संगठित दल किसी की बुराई में जुट जाता है और ऐसे दल के एक सरगना ने यह दावा किया है कि करण जौहर ने उन्हें पैसा दिया है कि वह 'शिवाय' के खिलाफ अफवाह के बवंडर रचे। यह पुरा प्रकरण घिनौना हो चुका है, क्योंकि 'रिश्वत' लेने का दावा करने वाला व्यक्ति संदिग्ध है और झूठ के लिए जाना जाता है परंतु करण जौहर ने सचमुच ऐसा किया हो त यह व्यापार में अनैतिकता की सीमा है और वे कैसे भूल गए कि 'दुल्हनिया' के निर्माण के समय काजोल ने ही उन्हें स्वतंत्र फिल्मकार बनने की प्रेरणा की और फिल्म में स्वयं काम भी किया। करण जौहर की 'कुछ कुछ होता है,' कभी खुशी कभी गम' और 'माइ नेम इज़ खान' में काजोल ने अभिनय किया गोयाकि उनकी फिल्म कंपनी के महल की नींव का पत्थर रहीं काजोल और आज आप उसके पति के सामने ताल ठोंककर खड़े हैं। यह ऐसा ही है जैसे शिखर मंजिला इतराकर अपनी नींव का मखौल उड़ाए।

इसके पूर्व भी दीवावली पर करण जौहर की फिल्म अजय देवगन की फिल्म से टकराई थी गोयाकि अब यह काम आदतन हो रहा है। यह फिल्म उद्योग की चाय में तूफान भी साबित हो सकता है। करण जौहर को कोई याद दिलाए कि 'दिल' ही ओम नम:शिवाय का जाप करता है। 'शिव,दिल' का सजदा नहीं करते।