'और क्यों नाचे सपेरा' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :01 सितम्बर 2016
उम्र के साथ हिरण की तरह कुलांचे भरती स्मृति का सहारा लेने के अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं है और स्मृति को हिरण के रूप में कवि चंद्रकांत देवताले ने प्रस्तुत किया था। उम्रदराज देवताले को उज्जैन के अस्पताल में सप्ताह में दो बार खून चढ़ाना होता है और उनकी पुत्री को झाबुआ से उज्जैन आना पड़ता है, क्योंकि विनती करने के बाद भी शिक्षा विभाग उनका तबादला उज्जैन नहीं कर रहा है और यही सरकार कालिदास स्मृति समारोह पर बेहिसाब पैसा खर्च करती है और हिंदी भाषा का समर्थक होने का दावा भी करती है। खबर प्रकाशित हुई है कि मध्यप्रदेश दुष्कर्म व शिशु हत्या में शिखर पर पहुंचा हुआ है। व्यापमं घोटाला बोफोर्स से बड़ा और घातक है, क्योंकि भले ही खरीदी में घपला हुआ हो परंतु बोफोर्स तोपों ने ही हमें करगिल युद्ध जीतने में सहायता की थी और व्यापमं ने अयोग्यता को बड़ा सद्गुण साबित किया है और इसके तहत पास हुए इंजीनियर और डॉक्टरों द्वारा कई हादसे रचे जाने वाले हैं। व्यापमं के परिणाम पीढ़ियों को भुगतने होंगे गोयाकि लम्हे की गफलत की सजा सदियों तक भुगतनी होंगी परंतु धर्म प्रेरित होने का दावा करने वाली सरकार त्यागपत्र तक नहीं दे सकती। मोदी और अमित शाह के आशीर्वाद से आप वैतरणी पार कर सकते हैं। आम आदमी सदियों से इनके आशीर्वाद का मुंतज़िर है।
अगर फिल्मों के सिक्वेल हो सकते हैं, भ्रष्ट नेता बार-बार चुनाव जीत सकते हैं तो कलम घसियारा भी एक लेख का भाग-2 लिख सकता है। शैलेंद्र की 'तीसरी कसम' का प्रथम प्रदर्शन दिल्ली में करने का निर्णय लिया गया था और राज कपूर अपने परिवार व सखा मुकेश के साथ दिल्ली पहुंच चुके थे। उन्हीं दिनों एक भव्य पांच सितारा होटल खुला था परंतु राज कपूर अपने पुराने प्रिय होटल 'इम्पीरियल' में ही ठहरे थे। विस्फोट की तरह खबर आई कि शैलेंद्र के रिश्तेेदार, िजनके पास उनका अधिकार-पत्र था, फिल्म दो वितरकों को बेच चुके हैं। कोर्ट से शैलेंद्र के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी हुअा व प्रदर्शन रोक दिया गया था। राज कपूर ने आवश्यक धन राशि दी और मुकेशजी ने अदालती भाग-दौड़ करके स्टे हटवाया और फिल्म का प्रदर्शन संभव हुआ। सिनेमाघर में सारे सितारे मौजूद थे परंतु इस बारात का दूल्हा शैलेंद्र ही वारंट के कारण नहीं आ पाया। सिनेमा हॉल के अंधियारे ने आंसू छिपाने में बड़ी सहायता की कि रचना की प्रशंसा में तालियां बजाई जा रही हैं और रचनाकार ही मौजूद नहीं है।
अगर दिल्ली उस रात फिर उजड़ी लग रही थी तो उधर मुंबई में खार स्थित अपने बंगले 'रिमझिम' में शैलेंद्र के दिल पर क्या गुजर रही होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। दिल से निकली 'प्रार्थना' की तरह उन्होंने फिल्म रची जो दिल से निकली 'आह' की तरह प्रदर्शित हो रही थी। राज कपूर की 'आह' में एक गीत की पंक्तियां हैं, तूने देखा न होगा ये समां, कैसे जाता है दम को देखले अा जा रे मेरा दिल पुकारे…रो रोकर गम भी हारे..। शैलेंद्र ने जिस फिल्मकार के साथ एक बार काम किया, वह बार-बार उसके साथ काम करना चाहता था। विजय आनंद ने 'गाइड' के एक गीत के लिए मेहबूब स्टूडियो में चार सेट लगाए थे परंतु शैलेंद्र के बीमार पड़ने के कारण गीत नहीं बना था। सचिन देव बर्मन धुन बना चुके थे। निर्माता देव आनंद की इच्छा थी कि सेट बनाए रखने के खर्च को बचाने के लिए यह गीत किसी ओर से लिखाया जाए परंतु निर्देशक विजय आनंद ने इनकार कर दिया। फिल्म उद्योग में सितारे के कारण शूटिंग रुकती है परंतु पहली बार गीतकार के बीमार पड़ने के कारण शूटिंग रुकी रही। गीत था, 'पिया तोसे नैना लागे रे, जाने क्या हो अब आगे रे।' शैलेंद्र का महत्व किसी नायक से कम नहीं था।
महान साहिर लुधियानवी ने खुद टिप्पणी की थी कि शैलेंद्र का हिंदी के समान ही उर्दू भाषा पर भी अधिकार था। 'यहूदी' के लिए उन्होंने लिखा था, 'यह मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सुरूर, तू वो ना पहचाने तो है ये तेरी नज़रों का कसूर।' और तीसरी कसम में,'उफक पर खड़ी है सहर अंधेरा है दिल में इधर' भी लिखा है। साथ ही उन्होंने 'अनारकली' के लिए भी गीत लिखे थे। दरअसल, फिल्म के गीतों की जुबां हिंदुस्तानी है और उसे हिंदी या उर्दू के नकली भेदभाव में बांटा नहीं जा सकता। शैलेंद्र ने 'गाइड' के लिए लिा था, 'वहां कौन है तेरा, मुसाफिर, जाएगा कहां, दम ले ले घड़ी भर यह छय्या पाएगा कहां' और शैलेंद्र लिखते हैं, 'क्यों नाचे सपेरा' यह मान्यता है कि संपेरे के बीन वादन पर सांप डोलता है। सपेरे के डोलने में शैलेंद्र गंभीर संकेत दे रहे हैं कि ऐसे हुक्मरान आएंगे, जो सपेरे तो हैं परंतु पूंजीवाद की धुन पर नाचेंगे। यही विराट नृत्य हम देख रहे हैं। इसमें यह संकेत भी निहित है कि आम आदमी सपेरा है परंतु वह स्वयं नाच रहा है।
शैलेंद्र ने 'जागते रहो' के लिए एक गीत लिखा था, जो इस्तेमाल नहीं हुआ- 'चलते-चलते थक गया मैं और सांझ भी ढलने लगी, तब राह मुझे खुद अपनी बांहों में लेकर चलने लगी।