'कहानी' के पात्र बॉब विश्वास का पुनरागमन / जयप्रकाश चौकसे

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'कहानी' के पात्र बॉब विश्वास का पुनरागमन
प्रकाशन तिथि : 11 दिसम्बर 2019


जयंतीलाल गाढ़ा ने सुजॉय घोष निर्देशित विद्या बालन अभिनीत 'कहानी' का निर्माण किया था। फिल्म में एक छुपे हुए आतंकवादी को खोजने और दंडित करने की कथा थी। नायिका का पति आतंकवादी द्वारा उड़ाई गई ट्रेन में सफर कर रहा था। नायिका एक गर्भवती स्त्री का रूप धारण करके आती है। उसके गर्भवती का स्वांग रचने का कारण यह है कि कोई व्यक्ति उस पर शक नहीं कर सकता। क्लाइमेक्स में वह गर्भवती दिखने के लिए साड़ी के भीतर पहने पैड से ही खलनायक पर आक्रमण करती है और उसी की रिवाल्वर से उसको मार भी देती है। क्लाइमैक्स के लिए दुर्गा विसर्जन का दिन चुना है ताकि आतंकवादी को मारने के बाद वह विसर्जन जुलूस की भीड़ में शामिल होकर पुलिस से बच सके। अंतिम दृश्य अत्यंत मार्मिक है जब नायिका अपने श्वसुर से कहती है कि गर्भवती होने का स्वांग करते-करते उसे लगा मानो वह मां होने का अनुभव प्राप्त कर रही है।

'कहानी' में आतंकवादी एक पात्र से हत्या कराता है। बॉब विश्वास इस पात्र का नाम है जो एक बीमा कंपनी में काम करता है परंतु वह कांट्रेक्टर किलर है। इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया आतंकवाद पड़ोसी दोस्त-दुश्मन मुल्क से नहीं आया है। नक्सलवाद से भी उसका कोई संबंध नहीं है। ताजा खबर यह है कि शाहरुख खान ने सुजॉय घोष की पुत्री दिव्या अन्नपूर्णा घोष को ही फिल्म लिखने और निर्देशित करने के लिए अनुबंधित किया है। स्वयं शाहरुख खान इस फिल्म में कोई भूमिका अभिनीत नहीं कर रहे हैं। आश्चर्यजनक है कि बॉब विश्वास की भूमिका अभिनीत करने के लिए अभिषेक बच्चन से चर्चा की जा रही है। 'कहानी' में बॉब विश्वास की भूमिका बंगाल के एक चरित्र अभिनेता ने अत्यंत विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत की थी। दिव्या अन्नपूर्णा घोष 'कहानी' में अपने पिता की सहायक निर्देशक थीं। 'कहानी' का कॉपीराइट जयंतीलाल गाढ़ा के पास है। उनकी इजाजत से ही यह फिल्म बनाई जा सकती है।

एक कॉन्ट्रैक्ट किलर धन लेकर अनजान व्यक्ति की हत्या करता है जिसके साथ उसकी कोई दुश्मनी नहीं है। उसके लिए यह रोजी रोटी कमाने का जरिया है। व्यवस्था की असफलता के कारण बेरोजगारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। अत: उनमें से कुछ लोग कॉन्ट्रैक्ट किलिंग को रोजगार बना लेते हैं। व्यवस्था कुछ लोगों को धन देकर उन्हें विरोध करने वालों को फोन पर धमकी देने और अपशब्द बोलने का कार्य सौंपते हैं। जायज रास्ते बंद कर दिए गए हैं। अतः पतली गलियों से आना-जाना जारी है। गौरतलब यह है कि कॉन्ट्रैक्ट किलर की विचार प्रक्रिया किस तरह की है? उसके अवचेतन में क्या कुछ घट रहा है? क्या वह सही या गलत के बीच अंतर नहीं कर पा रहा है? ज्ञातव्य है कि दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात नाजी अफसरों पर मुकदमा कायम हुआ था जिसे 'न्यूरेम्बर्ग ट्रायल' के नाम से जाना जाता है। सभी अपराधियों का यह बचाव था कि उन्हें उनके आका ने हुक्म दिया था और वे मात्र अपना काम कर रहे थे। अत: उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता। युद्ध के पश्चात यहूदियों के संगठन ने भागे हुए नाजियों की खोज पड़ताल की और उन्हें दंडित किया गया। इस विषय पर कुछ रोचक उपन्यास भी लिखे गए हैं जिनमें 'क्वींस कोर्ट 7' बहुत रोचक उपन्यास माना गया है। हर तानाशाह नफरत की एक लहर प्रवाहित करता है जिस पर पवित्र लेवल लगाए जाते हैं। तानाशाह स्वयं एक भयभीत व्यक्ति होता है और उसके सारे आक्रोश के तेवर महज अपने भय के ऊपर चादर डालने की तरह होते हैं। इस मामले में अवाम भी दोषी है जो स्वयं किसी भी लहर में बहने के लिए तत्पर रहता है। स्वतंत्र विचार प्रक्रिया के समाप्त किए जाने पर ही यह संभव होता है। कदमताल को वैचारिक रेजिमेंटेशन का प्रतीक ही माना जाना चाहिए। यह फौज के कदम ताल से बिल्कुल अलग है। हमारी शिक्षा संस्थाएं परीक्षा पास करने के गुर सिखा रही हैं। स्वतंत्र विचार प्रक्रिया रचने का कार्य नहीं किया जा रहा है। हम सब भेड़ों की तरह हंकाले जा रहे हैं और हम भीड़ का हिस्सा बनते हुए स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं। इस तरह की सुरक्षा एक भ्रम मात्र है।

मनुष्य का रोबो करण किया जा रहा है। विज्ञान फंतासी के जनक एच.जी वेल्स ने अपनी एक रचना में यह प्रस्तुत किया है कि रोबो ने भी अपनी स्वतंत्र विचार प्रणाली रचली है। इसी विचार पर दक्षिण भारत के शंकर ने रजनीकांत अभिनीत फिल्म बनाई थी। फिल्मकार शंकर की शैली अतिरेक आधारित है। जहां एक गोली से काम चल जाता है वहां उनके पात्र का पूरा शरीर ही एक मशीन गन बन जाता है। ज्ञातव्य है कि एच.जी वेल्स ने 19वीं सदी के चौथे दशक में विज्ञान फंतासी रची। विज्ञान फंतासी की कल्पनाओं से प्रेरित होकर विज्ञान ने विस्मयकारी खोज की है। दूसरी तरफ मिथमेकर्स ने राजनैतिक सत्ता हथिया ली है। अवाम भी सहर्ष इस सब में शामिल है। धर्मवीर भारती की प्रमथ्यु गाथा की पंक्तियां इस तरह हैं- "हम सब के माथे पर दाग, हम सब की आत्मा में झूठ हैै, हम सब सैनिक अपराजेय, हमारे हाथों में है सिर्फ, तलवारों की मूठ"