'काल' और 'माया' से मनोरंजन / जयप्रकाश चौकसे

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'काल' और 'माया' से मनोरंजन
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2013


'काल के संसार में आपका स्वागत है' यह संवाद गूंजता है राकेश रोशन की ऋतिक, प्रियंका, कंगना व विवेक ओबेरॉय अभिनीत 'कृश-3' के सवा दो मिनट के ट्रेलर में, जिसका समग्र प्रभाव यह है कि यह हॉलीवुड की टक्कर की गुणवत्ता से सजी विज्ञान फंतासी है। यह राकेश रोशन का ठेठ भारतीय मानस है कि वे अपनी विज्ञान फंतासी फिल्मों में पौराणिक और दार्शनिक स्पर्श डालकर उसे पौराणिकता के रेशों से बुने भारतीय अवचेतन के साथ तादात्म्य बनाने का सफल प्रयास करते हैं। मसलन अपनी पहली विज्ञान फंतासी 'कोई मिल गया' में उन्होंने 'ओम' की ध्वनि का नाटकीय प्रयोग किया और अन्य ग्रह के लोगों से संपर्क स्थापित करने के लिए नायक की मशीनें ओम ध्वनि उत्पन्न करती हैं, जिन्हें अन्य ग्रह के लोग भी समझते हैं - इस तरह का भाव उन्होंने प्रस्तुत किया, क्योंकि ओम भारतीय अवचेतन का हिस्सा है। इसी फिल्म में बाहर के ग्रह से आए जीव की शक्तियों का परिचय एक दृश्य में मिट्टी के टूटे हुए मटके के दोबारा जुड़ जाने की घटना से दिया। पहले दृश्य के शक्ति प्रदर्शन में मटका एक जमीनी सच्चाई है और रेफ्रिजरेटर से बोतल में बंद पानी पीने वाला यह महानगरीय निर्देशक अपने मूल में नितांत भारतीय है।

भारतीय व्यावसायिक सिनेमा के फिल्मकार अवचेतन को कुछ हद तक समझते हैं। नेता भी समझते हैं और उन पौराणिकता के रेशों का बार-बार उपयोग सत्ता अर्जित करने के लिए करते हैं, परंतु फिल्मकार की समझ देश को जोडऩे में सहायक होती है, जबकि नेता फूट डालकर तोडऩे से लाभ उठाते हैं। धर्म का हव्वा वोट की राजनीति का हिस्सा है और सच तो यह है कि भारत की सारी समस्याओं की जड़ में स्वयं भारतीय जनता का योगदान बहुत है। आप ठगे इसलिए जाते हैं कि क्योंकि उसके लिए अनजाने ही आतुर रहते हैं तथा इस आतुरता की गंगोत्री है कि कोई अन्य हमारे लिए सोचे कार्य करे और संभव हो तो हमारे लिए मरे, की धारणा। इसमें ही स्वतंत्र विचार शक्ति का पतन हुआ है और तानाशाही ताकतें एक जैसे विचार को रेजीमेंटेशन करने में सफल हुई हैं। बहरहाल, काल अवधारणा मूलत: दार्शनिक है। ब्रह्मा द्वारा मृत्यु का सृजन हुआ तो मृत्यु को बहुत दुख हुआ कि वह मनुष्य जीवन का अंत करके पाप की भागी होगी। उसने रोना प्रारंभ किया तो उसके अश्रु ब्रह्मा ने हथेली में झेले, परंतु कुछ बूंदें गिर गईं, जो कालांतर में व्याधियां बनीं। मृत्यु को यह स्पष्ट किया गया कि मनुष्य स्वयं के क्रोध, अहंकार, ईष्र्या, लालच से मरेगा, जिसका दोषारोपण मृत्यु पर नहीं होगा। इस्लाम में भी हमजाद अवधारणा के अनुरूप मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके भीतर शैतान का भी जन्म होता है और ताउम्र उनमें संघर्ष चलता है। शैतान की जीत मनुष्य की मृत्यु है। अन्य धर्मों में भी अवधारणा है कि मृत्यु का अंकुर जन्म के साथ ही शरीर में पड़ जाता है और हमीं उसे पल्लवित करते हैं। जीवन और मृत्यु अविभाज्य है और इसी रहस्य को फिल्म की आखिरी रील में उजागर किया गया है।

दरअसल, राकेश रोशन धर्म-दर्शन में नहीं उलझते और मनोरंजन प्रदान करने के धर्म को ही निभाते हैं - इन सारी गूढ़ बातों का संकेतभर अत्यंत सहज कथा प्रवाह में करते हैं। वे छद्म बौद्धिकता से ग्रसित नहीं हैं। उन्होंने केवल खलनायक का नाम 'काल' रखा है। इसी तरह उन्होंने खलनायिका को 'माया' कहा है, जिसे हमारे संत-कवि महाठगिनी कहते रहे हैं। राकेश रोशन पुरानी फिल्में देखते रहते हैं। 'राम और श्याम' को आदर्श पटकथा मानते हैं, इसीलिए उनकी 'खुदगर्ज' छोड़कर सभी फिल्मों में मध्यांतर तक नायक 'राम' और बाद में 'श्याम' हो जाता है। राज कपूर की 'श्री 420' उनकी प्रिय फिल्म है, जिसमें नायिका 'विद्या' है तो खलनायिका 'माया' है। पश्चिम की विज्ञान फंतासी में पौराणिकता का स्पर्श नहीं है, क्योंकि अमेरिका के पास कोई प्राचीन आख्यान नहीं है वरन् उनकी विज्ञान फंतासी उनके भविष्य का आख्यान बनेंगी, परंतु मैट्रिक्स फिल्म शाृंखला में संसार को माया कहा गया है और दार्शनिक संकेतों की भरमार है। राकेश रोशन कभी किसी पच़े और प्रपंच में नहीं उलझते। वे एकाग्रता और समर्पण से मनोरंजन गढ़ते हैं। बहरहाल, 'काल' के विषय में परम सत्य वुडी एलन ने अपने अनोखे ढंग से कहा है, 'मैं मृत्यु से नहीं डरता, परंतु उसके आने पर वहां अनुपस्थित रहना चाहता हूं।'