'क्वीन' कंगना को शह और मात / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 जुलाई 2019
'क्वीन' कंगना रनौत ने एक साथ सारी सरहदों पर लड़ाई छेड़ दी है। उन्होंने एक कार्यक्रम में यह स्वीकार किया कि वे थोड़ी 'हिली' हुई हैं और एकता कपूर भी 'हिली' हुई हैं। इसलिए एकता कपूर और कंगना रनौत साथ में तीन फिल्में कर चुके हैं। 'हिली' हुई से उनका यह तात्पर्य है कि समाज में व्यवहार के मानदंड हैं। वे उन्हें अस्वीकार करती हैं और अपनी इच्छा के विपरीत कोई कार्य करने के लिए बाध्य नहीं की जा सकती। वे स्वयं को एक स्वतंत्र द्वीप मानती हैं, जिसके तट पर स्थापित मान्यताओं की लहरें टकराकर अपने ही माथे को लहूलुहान करती हैं। द्वीप टस से मस नहीं होता।
दशकों पूर्व इरविंग वैलेस ने एक किताब लिखी थी 'स्क्वैयर पेग इन राउंड होल' जिसमें उन लोगों का जीवन-चरित्र वर्णित किया था, जो स्थापित मान्यताओं को तोड़ते रहे और स्वयं की शर्तों पर जीवन जीते रहे। जिस वैज्ञानिक ने पहली बार यह कहा था कि दुनिया गोल है, उस वैज्ञानिक को भी बहुत आक्रामक आलोचना सहनी पड़ी। दार्शनिक सुकरात को नए विचार प्रस्तुत करने के दंडस्वरूप आधा दर्जन अधिकारियों ने जहर पीने का फैसला सुनाया था। सुकरात आज भी पढ़े जाते हैं। उनका नाम आदर से लिया जाता है परंतु उन आधा दर्जन स्वयंभू जजों का कोई नाम भी नहीं जानता। मीरा को भी विष पान का हुक्म दिया गया परंतु उन हुक्म देने वाले का कोई नाम भी नहीं लेता, जबकि मीरा के पद हमारे सामूहिक अवचेतन में गूंजते रहते हैं। इरविंग वैलेस का विचार था कि जीवन की पाटी पर गोल छेद हैं और कोई चौकोर या तिकोनी वस्तु उसमें समा नहीं सकती। हकीकत यह है कि भेड़चाल चलने वालों ने कभी कोई आविष्कार नहीं किया परंतु लीक से हटकर चलने वालों ने ही दुनिया को बेहतर बनाया है। फिल्म जगत में भी यह मान्यता है कि फॉर्मूला फिल्में सफल होती हैं, जबकि सबसे अधिक सफल फिल्में लीक से हटकर बनी हैं जैसे 'मदर इंडिया', 'आवारा', 'गंगा जमुना', 'शोले' और 'दीवार'।
कुछ समय पूर्व नीना गुप्ता अभिनीत 'बधाई हो' का प्रदर्शन हुआ था। फिल्म में एक अधेड़ स्त्री के गर्भवती होने पर उसका मखौल उड़ाया जाता है। उसका बड़ा बेटा एक कन्या से प्रेम करता है और कन्या की मां अपनी बेटी का विवाह ऐसे परिवार में नहीं करना चाहती, जहां अधेड़ अवस्था में स्त्री गर्भवती है। वे एक पारिवारिक विवाह उत्सव में जाते हैं। फॉर्मूला मानदंड में आकंठ डूबे लोग गर्भवती के खिलाफ कानाफूसी करते हैं। एक दिन गर्भवती की सास सबको आड़े हाथों लेती है। वह कहती है कि उसकी बहू ने उसकी हमेशा सेवा की, बच्चों का लालन पालन किया। हर दृष्टिकोण से उसका व्यवहार आदर्श रहा है। अब उसके जायज गर्भधारण के कारण उसका मखौल क्यों बनाया जा रहा है। धीरे-धीरे सारा परिवार यथार्थ को स्वीकार करता है और उसके साथ ही समाज भी मखौल उड़ाना बंद कर देता है।
दरअसल, समाज में चंद लोग अपने स्वार्थ और सहूलियत के लिए कुछ नियम बना लेते हैं, जिनका आधार तर्क नहीं है। सहूलियत से शासित सामूहिक अवचेतन निर्मम व हृदयहीन हो जाता है। हम सहूलियत को सिद्धांत का जामा पहना देते हैं। ग्वालियर की रेणु शर्मा की कविता है 'वो अंधेरे मेरी सहूलियत थे/कैसे बरसी मैं उजालों में/कौन आवाज देे रहा है मुझे/दूर चाय के उन प्यालों से/ अब इस शहर की रोशनी किस काम की/आंखें छोड़ आई उसकी गली में।'
बहरहाल, कंगना रनौत और उसकी बहन रंगोली लगातार ट्विटर पर युद्ध कर रही हैं। उनका विचार है कि मीडिया का एक छोटा वर्ग किसी से पैसे खाकर उनके खिलाफ विष वमन कर रहा है। उसने फिल्म उद्योग में वंशवाद की आलोचना की है। इस समय कंगना रनौत आक्रोश में आए हुए उस प्राणी की तरह है, जो व्यवस्था के शीशमहल में घुस आया है। कांचमहल को ध्वंस करते हुए वे ऐसे कमरे में पहुंच गई हैं, जिसकी चारों दीवारें आईने से मढ़ी हैं और बाहर निकलने का द्वार नज़र नहीं आता। यह गौरतलब है कि इस तरह के कमरे का आकल्पन चार्ली चैपलिन ने अपनी एक फिल्म में प्रस्तुत किया था। कंगना रनौत आदतन पंगा लेती हैं। उन्हें सामान्य व साधारण से चिढ़ है। राजनीति में वे प्रतिक्रियावादी ताकतों के साथ खड़ी हैं। जीवन की संसद में वे स्वयंभू विरोधी दल की नेता है। व्यक्तिगत समस्या को उन्होंने सामाजिक मुद्रा बना लिया है। उन्होंने अपना जीवन एक हॉलीवुड फिल्म के टाइटल की तरह कर लिया है- 'ए रिबेल विदाउट ए कॉज़'।