'क्वीन' को ताज 'हैदर' नाराज़ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :30 मार्च 2015
पच्चीस मार्च को फिल्मों के राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हुई और केवल दो दिन पूर्व कंगना रनोट ने विशाल भारद्वाज को भोज के लिए आमंत्रित किया। इस मैत्री भोजन के दरमियान यकीनन पुरस्कारों की कोई बात नहीं हुई परंतु कंगना रनोट विशाल के सिनेमा की प्रशंसक हैं और संभव है कि विशाल ने भी कंगना के 'क्वीन' के अभिनय को सराहा हो। गौरतलब यह है कि ये दोनों ही गैर फिल्मी परिवारों के छोटे शहरों से आए युवा हैं और इन्होंने केवल अपनी प्रतिभा और परिश्रम से अपना स्थान बनाया है। 'माचिस' के प्रदर्शन पूर्व और प्रदर्शन के दौरान विशाल भारद्वाज से मेरी कुछ मुलाकातें हुईं और वे दो बार इंदौर भी आए। उस समय यह अनुमान लगाना कठिन था कि यह फिल्मकार बनेगा परंतु उसकी 'मकड़ी' एक सुखद आश्चर्य था और 'मिंया मकबूल' ने भी बहुत प्रभावित किया। उनकी 'ओंकारा' शेक्सपीअर की 'आॅथेलो' से प्रेरित व प्रचारित की गई थी, अत: शिकायत यह थी कि ऑथेलो नीग्रो था जो गोरों की रक्षा करने वाला वीर योद्धा था परंतु मंत्री की गोरी बेटी उससे प्यार करने लगी तो उन्हें यह रक्षक भी भक्षक लगने लगा, फलस्वरूप षड़यंत्र रचे गए।
परंतु विशाल का ओंकारा तो एक टुच्चे नेता के लिए डाके डालता है। अत: उसकी त्रासदी मन में दर्द जगाती। आॅथेलो को अगर आप वीर हरिजन या दलित योद्धा दिखाएं कि वह सवर्णों का रक्षक है तो बात कुछ और होती। बहरहाल 'हैदर' के बनने के पहले एक मुलाकात में मैंने उनसे शिकायत की उनके रात के दृश्य यथार्थवाद के चक्कर में इतने भ्रामक होते हैं कि दर्शक को कुछ दिखाई नहीं देता और इसी कारण पंजाब में उन पर एक मुकदमा भी कायम हुआ। बहरहाल उनकी 'हैदर' ने इतना प्रभावित किया कि मैंने लिखा कि जो काम हैमलेट ने शेक्सपीअर के लिए किया, वही काम 'हैदर' विशाल के लिए करती है।
विशाल की तरह ही कंगना छोटे शहर से आई और महेश भट्ट की 'गैंगस्टर' में उसने थोड़ा प्रभावित किया। दरअसल 'गैंगस्टर' एक महान प्रेम कथा थी जिसमें एक अपराधी एक काॅलगर्ल के साथ महीनों रहता है परंतु उसे छूता भी नहीं क्योंकि वह उससे सच्चा प्रेम करता है और आदर करता है। उसके प्रेम की गहराई कॉलगर्ल को उसकी मौत के दृश्य में मालूम पड़ती है जब वह गोलियां लगने के बाद हाथ में दबी सिंदूर की डिबिया उसे देता है। काॅलगर्ल के विश्वासघात से वह मारा गया, अत: वह उसके कातिल इन्पेक्टर को मार देती है। बहरहाल कंगना की प्रतिमा कुछ 'तनु वेड्स मनु' में नजर आई परंतु उसने 'क्वीन' और 'रिवाॅल्वर रानी' में प्रभावित किया तथा सफलता के दौर में अभिनय छोड़कर वह पटकथा लिखना व सीखने के लिए अमेरिका चली गईं। यह ललक ही उसकी चारित्रिक विशेषता है। 'क्वीन' के बाद उसने दर्जन फिल्में अनुबंधित नहीं की। अत: धन के लोभ का तिरस्कार उसे विशेष बनाता है। उसे बड़े बैनर व प्रसिद्ध फिल्मकारों को साथ काम करने का पागलपन नहीं है। वह उनके पीछे अन्य समकालीन लड़कियों की तरह पगला नहीं रही है। इस पकने के पहले बिकने के चलन के दौर में कंगना का ठहराव सचमुच प्रशंसनीय है। अत: विशाल और कंगना का मैत्री भोज गहरे अर्थ रखता है।
राष्ट्रीय पुरस्कार में कंगना को अभिनय का उच्चतम पुरस्कार मिला और 'क्वीन' भी श्रेष्ट फिल्म का पुरस्कार पा गईं परंतु विशाल की 'हैदर' को श्रेष्ठ गीत, श्रेष्ठ पोषाक व पार्श्वसंगीत इत्यादि के इनाम 'महज खयाल अच्छा है दिल बहलाने' के लिए। चयन समिति ने उसकी 'हैदर को नकारा है। इस तरह गौर से देखें तो विशाल मन ही मन हताश हैं। 'हैदर' एक उच्च कलाकृति थी। यह विशाल का ही कलेजा है कि शाहिद कपूर जैसे दोयम दर्जें को उन्होंने हैमलेट की भूमिका दी। यह संभव है कि चयन करने वालों को एक कड़वा सत्य अच्छा नहीं लगा कि 'हैदर' में काश्मीर में नियुक्त फौजी 'सुपारी' लेकर हत्या करते है। हमारे सामंतवादी मन में क्वीन सदैव आदरणीय है और आज 'हैदर' को न्याय की उम्मीद नहीं।