'खादी खादी' और 'खाकी खाकी' के बीच फंसा मनुष्य / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 जनवरी 2017
फिल्मकार राकेश रोशन के लिए निर्देशक संजय गुप्ता द्वारा निर्देशित 'काबिल' में ऋतिक रोशन का अभिनय विलक्षण है और वे लेखकों एवं फिल्मकारों को चुनौती देते-से लगते हैं कि क्या अाप ऐसी भूमिका रच सकते हैं, जिसके साथ वे न्याय नहीं कर पाए। इतने वर्षों से सक्रिय ऋतिक रोशन आज भी एक महान संभावना लगते हैं। विगत कुछ समय ऋतिक ने अनेक फिल्में अस्वीकार भी की हैं और वे अनिच्छुक अभिनेता से लगे हैं। अंग्रेजी भाषा के महान कवि जॉन मिल्टन ने व्यवस्था के खिलाफ इतनी अधिक अर्जियां लिखीं कि उनकी आंखों की रोशनी कम हो गई। उन्होंने अपनी पीड़ा एक कविता में अभिव्यक्त की जिसमें वे आर्तनाद करते हैं कि प्रतिभा दी, परंतु रोशनी छीन ली। इस पीड़ा का शमन भी वे बताते हैं कि वे भी महान हैं, जो इंतजार करते हैं, क्योंकि ईश्वर के पास अपनी सृष्टि चलाए रखने के लिए असीमित साधन हैं। प्रार्थना से भी पीड़ा का शमन होता है। 'काबिल' का दृष्टिहीन नायक अपनी दृष्टिहीन पत्नी के साथ हुए अन्याय के खिलाफ स्वयं अपराधियों को दंड देने का निर्णय करता है। इस तरह वह जॉन मिल्टन के नायक से अलग अपने ढंग से अपनी पीड़ा का शमन अपराधियों को स्वयं दंड देकर करता है। इस फिल्म में कुछ संवाद आपको अस्थिर कर देते हैं। दुष्कर्म की शिकार दृष्टिहीन नायिका अपने पति से कहती है कि व्यवस्था उसके साथ वही कर रही है, जिसे वह भोग चुकी है गोयाकि उसके साथ भी दुष्कर्म ही किया जा रहा है। पुलिस पर नेताओं का दबाव बना रहता है। वे उतने निकम्मे नहीं हैं, जितना उन्हें भ्रष्ट नेताओं ने बना दिया है। फिल्म में स्वयं नेता स्वीकार करता है कि वे 'खादी खादी' खेल रहे हैं और पुलिस 'खाकी खाकी' खेल रही है। इसी कारण समाज का पूरा ढांचा ही चरमराकर गिरता-सा दिखाई दे रहा है। एक दृश्य में एक नेता स्पष्ट कहता है कि वह अपने बल से अपने अपराधी भाई को बचा लेगा। स्वयं नेताके पिता गरीब थे। अत: उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा परंतु अब वे अपने दुष्कर्म करने वाले भाई को बचा लेंगे।
इस फिल्म का जादू उस योजना में निहित है, जिसके तहत दृष्टिहीन नायक अपराधियों को दंडित करता है। वह भ्रष्ट पुलिस अफसर को चेतावनी भी देता है कि जैसे साक्ष्य नहीं होने या उन्हें दबा देने के अाधार पर दुष्कर्म करने वालों को सजा नहीं मिली, ठीक वैसे ही वह भी कोई साक्ष्य नहीं छोड़ने वाला है। यह प्राय: माना जाता है कि चतुर से चतुर अपराधी भी कोई न कोई गलती कर बैठता है और वह पकड़ा जाता है। कहते हैं कि कोई भी हत्या इस ढंग से नहीं की जा सकती कि कोई सुराग ही नहीं रहे। परंतु इस फिल्म का दृष्टिहीन नायक यही करके दिखाता है। वह कोई सुराग अपने पीछे नहीं छोड़ता। यह भी कहा जाता है कि घायल शेर का धरती पर गिरा खून ही शिकार को उसका पता बता देता है। इस फिल्म का दृष्टिहीन नायक भी एक शिकारी की तरह आखेट पर निकलता है। इस फिल्म का नायक अपनी ईश्वरीय कामतरी (अंधत्व) के बावजूद भावना की तीव्रता के कारण लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। ईश्वर भी तो मनुष्य का ही आकल्पन है और वह ईश्वरीय व्यवस्था से बेहतर है। सारा संसार ही मनुष्य आकल्पन का नतीजा है। इस फिल्म का नायक अपने अंधत्व से निराश नहीं है वरन उसके बावजूद वह अपने प्रेम के कारण असंभव को संभव बना देता है।
इस फिल्म से अगर आप नायक और नायिका का दृष्टिहीन होना हटा दें तो यह प्रेम और अपराध की आम कथा मात्र रह जाती है। इसे बनाया ही गया है इसलिए कि ईश्वरीय कमतरियों के बावजूद आप सामान्य जीवन जी सकते हैं। फिल्म के प्रारंभिक भाग में नायक व नायिका की प्रेम-कथा अत्यंत रोचक है। ईश्वरीय कमतरी की चुनौती का मनुष्य कैसे जवाब देता है- यही फिल्म को नवीनता और रोचकता प्रदान करता है। पार्श्व संगीत प्रभाव को धार देता है और राजेश रोशन ने कर्णप्रिय गीत भी रचे हैं। दोनों भाइयों की यह जुगलबंदी अब अपने तीसरे दशक में प्रवेश कर रही है। इस फिल्म का वह दृश्य विलक्षण है, जिसमें अंधत्व के बावजूद नायक और नायिका नृत्य प्रस्तुत करते हैं। फिल्म के पात्र स्पर्श को भी दृष्टि बना देते हैं गोयाकि त्वचा अपनी नई परिभाषा में प्रस्तुत होती है। यामी गौतम पहली बार 'विकी डोनर' में नज़र आई थीं परंतु अब वे पहले से कहीं अधिक सुंदर दिखती हैं। समय सबके साथ एक-सा बेरहम नहीं होता। उसे भी कुछ लोग अपने-से लगते हैं। टेलीविजन पर 'अदालतl' नामक कार्यक्रम में रोनित राय को देखा जाता है और उन्होंने कुछ फिल्में भी अभिनीत की है परंतु इस फिल्म में बतौर खलनायक वे जबर्दस्त भय और जुगुप्सा जगाते हैं। अमरीश पुरी की मृत्यु के कारण रिक्त स्थान को पूरा कर सकते हैं।
संजय गुप्ता ने प्राय: असफल फिल्में बनाई हैं और राकेश रोशन ने सफल फिल्में बनाई हैं। इस फिल्म में राकेश रोशन से जुड़कर वे पहली बार सफलता पा रहे हैं।