'खुल्लम खुल्ला' का खुलासा / जयप्रकाश चौकसे

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'खुल्लम खुल्ला' का खुलासा
प्रकाशन तिथि :24 जनवरी 2017


हॉर्पर कॉलिन्स ने ऋषि कपूर की जीवन-कथा 'खुल्लम खुल्ला' प्रकाशित की है। हिंदुस्तानी कथा फिल्मों के लगभग एक सौ चार वर्ष के इतिहास में कपूर परिवार की चार पीढ़ियों ने लगभग 90 वर्ष तक अपनी मौजूदगी दर्ज की है और पृथ्वीराज, राज कपूर तथा शशि कपूर दादा फालके पुरस्कार से नवाज़े जा चुके हैं और ऋषि कपूर भी अपनी लंबी पारी द्वारा उस पुरस्कार के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। वे अपनी अभिनय यात्रा के पांचवें दशक में सक्रिय है। 'मेरा नाम जोकर' में उन्होंने कमसिन वय के पात्र को अभिनीत किया था और करण जौहर की 'कपूर एंड सन्स' में 90 वर्षीय पड़दादा की भूमिका अभिनीत की है। परदे पर प्रेमी की भूमिकाएं निभाने वाले ऋषि कपूर ने 'अग्निपथ' में कसाई की भूमिका भी निभाई है और एक फिल्म में वे डॉन दाऊद भी अभिनीत कर चुके हैं। इसी किताब के एक अध्याय में उनके सुपुत्र रणवीर कपूर कहते हैं कि आज भी शूटिंग पर जाते समय उनका उत्साह और उत्तेजना देखते ही बनता है। हमेशा ऐसा अनुभव होता है मानो कोई पहली बार अभिनय करने जा रहा है। अपने पेशे के प्रति यह समर्पण विलक्षण है। यह भी गौरतलब है कि कपूर परिवार के सारे सदस्यों की रोजी-रोटी हमेशा सिनेमा रही है, उनमें से किसी ने कभी कोई कारखाना नहीं खोला और न ही खेतीबाड़ी से धन कमाया है। राज कपूर का पुणे के निकट लोनी का लगभग सौ एकड़ का फॉर्म भी आउटडोर शूटिंग के काम आता रहा है।

कपूर परिवार में किसी ने भी आत्म-कथा नहीं लिखी है परंतु उनके जीवन की घटनाएं उनकी फिल्मों का हिस्सा बनती रही हैं। ऋषि कपूर ने अपनी किताब में अपने परिवार के सदस्यों का विवरण देकर इस किताब को कुछ हद तक ' कपूरनामा' बनाने का प्रयास किया है। हर व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रभाव होते हुए भी उसका अपना निजी बहुत कुछ होता है। इसी तरह ऋषि कपूर की जीवन-कथा में परिवार की मौजूदगी के साथ ही उनका अपना निजी बहुत कुछ है। उन्होंने बला की साफगोई से अपनी कमजोरियां उजागर की हैं। वे कमोबेश किसी चर्च के कन्फेशन कक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।

उन्होंने अपने कॅरिअर में अपनी अभिनीत कुछ फिल्मों की असफलता से स्वयं को बहुत कमजोर पाया और जिस फिल्म कैमरे से उन्हें प्यार था, अब वे उससे डरने लगे। उन दिनों उनका आत्म-विश्वास इस हद तक टूट चुका था कि उन्होंने डॉक्टरों से परामर्श लिया और लंदन जाने का भी विचार किया। यह घटना उस समय की है, जब सुभाष घई की 'कर्ज' कर्णप्रिय संगीत के बावजूद आशातीत सफलता नहीं प्राप्त कर पाई, क्योंकि फिरोज खान की 'कुर्बानी' ने टिकट खिड़की पर तूफान खड़ा कर दिया था। पाकिस्तान की नाज़िया हसन का गाया गीत 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए' ने जनता के दिलोदिमाग पर जादू-सा असर किया था। इस फिल्म की असफलता और नीतू सिंह से अपने विवाह के बाद उन्हें यह भ्रम हुआ कि संभवत: नीतू सिंह से विवाह के कारण उनकी प्रेमी की छवि खंडित हुई है। ज्ञातव्य है कि लगातार त्रासदी में काम करने के कारण महान दिलीप कुमार को भी नैराश्य झेलना पड़ा और लंदन के मनोचिकित्सक की सलाह पर हास्य प्रधान फिल्मों में अभिनय करके वे अपने नैराश्य से उभरे। सारांश यह कि भूमिकाओं का भावात्मक प्रभाव अभिनेता के अवचेतन पर पड़ता है। राज कपूर अपने पुत्र को लेकर अपने लोनी फॉर्महाउस गए और उन्हें बताया कि प्राय: सभी कलाकार ऐसे दौर से गुजरते हैं और केवल उनकी अपनी इच्छाशक्ति ही उन्हें उभरने में मदद करती है। उन दिनों राज कपूर की 'प्रेम रोग' और मनमोहन देसाई की 'नसीब' निर्माणाधीन थीं। ऋषि कपूर स्वयं के प्रयास और अपने निर्देशकों की प्रेरणा से ही उस दौर से उभरे और उन दोनों फिल्मों की सफलता से उनका आत्मविश्वास लौट आया।

ऋषि कपूर को यास्मीन मेहता से प्रेम हुआ और यास्मीन ने उन्हें एक अंगूठी भेंट की थी। 'बॉबी' की शूटिंग के समय डिम्पल ने यह अंगूठी उनसे ले ली और स्वयं अपनी उंगली पर धारण करने लगीं। जब उस दौर के सुपर सितारा राजेश खन्ना ने पूनम की रात समुद्र तट पर डिम्पल से विवाह निवेदन किया तो वे मना नहीं कर पाईं। पूनम की रात के प्रभाव डरावनी फिल्मों में बहुत दिखाए जाते हैं परंतु प्रेम की दुनिया में भी चांद का प्रभावदेखा गया है। बहरहाल, यास्मीन मेहता की दी गई अंगूठी डिम्पल के पास पहुंचीं और राजेश खन्ना ने उसे समुद्र में फेंक दिया।

बहरहाल, साहस से कही गई यह कथा नरकंकाल की तरह लगती है और नीतू कपूर द्वारा लिखे गए अध्याय से इस नरकंकाल को न केवल मांसपेशियां मिलती है वरन दिल भी धड़कने लगता है। नीतू कपूर ने ऋषि कपूर के सारे भय, भ्रम और कमजोरियों के बावजूद उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा, जिससे प्रेम करने के लिए आप स्वयं को रोक नहीं पाते और यही ऋषि कपूर तराजू के मध्य में स्थित उस कांटे की तरह है, जो सही वजन बताता है। पत्रकार मीना अय्यर ने अनेक रातों ऋषि कपूर से उनके जीवन की घटनाएं सुनी है और इसे उन्होंने कलमबद्ध किया है। मीना अय्यर ने पत्रकारिता के अपने अनुभव से इस ज्वालामुखी से निकले लावे को बखूबी प्रस्तुत किया है। ऋषि कपूर का मुंह ज्वालामुखी की तरह आग और लावा उगलता है । कहते हैं कि ताप के शमन के बाद लावे वाली जमीन बड़ी उपजाऊ सिद्ध होती है। यह किताब पढ़ना मनोरंजक रहा।