'गाइड' के नए संस्करण की संभावनाएं / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'गाइड' के नए संस्करण की संभावनाएं
प्रकाशन तिथि :02 दिसम्बर 2016


फिल्मकारों के सभी खेमों में विजय आनंद की देवआनंद अभिनीत 'गाइड' का नया संस्करण बनाने पर विचार किया जा रहा है। इनमें से शाहरुख खान के मन में प्रबल इच्छा है और रणवीर कपूर के निकट मित्र भी ऐसा ही कुछ विचार कर रहे हैं। एक असंभव-सी कल्पना ऐसी भी हो सकती है कि इम्तियाज अली के निर्देशन में रणवीर कपूर राजू गाइड की भूमिका निभाएं और शाहरुख खान मार्को की भूमिका करें। विजय आनंद ने मार्को के साथ न्याय नहीं किया। वह एक अन्वेषक है और पुरानी गुफाओं को खोजता है और उन गुफाओं के अध्ययन से मानव विकास के दूसरे चरण में मनुष्य जीवन का आकलन करता है। उसने व्यावसायिक तौर पर नाचने वाली से विवाह किया है और रोज़ी की मां को बहुत पैसे भी दिए हैं। वह अपनी पत्नी रोज़ी को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराता है और रोज़ी के गाइड से प्रेम हो जाने के बाद भी गुफाओं के अध्ययन पर लिखी अपनी किताब रोज़ी को ही समर्पित भी करता है। विजय आनंद का राजू गाइड तो रोज़ी से खूब परिश्रम कराता है और उसकी नृत्य कला को टकसाल बना देता है। दूसरी अोर मार्को अपने आप को ठुकराए जाने के बाद भी न केवल रोज़ी को उसके गहने लौटाता है वरन किताब भी समर्पित करता है।

साहित्य और सिनेमा दोनों में एक ही कथा सामग्री के विविध प्रस्तुतीकरण सृजक के अपने अवचेतन पर निर्भर होते हैं। महान शेक्सपीयर ने कभी मौलिक कथा नहीं रची, उसने अन्य जगह उपलब्ध स्रोत से प्लाट व चरित्र उठाए और अपने निजी ढंग से प्रस्तुत किए। सारा मामला अंदाजे बयां का है। फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने भी शेक्सपीयर के नाटकों से प्रेरित होकर अपने अंदाज में फिल्में रचीं। उनका 'मियां मकबूल' शेक्सपीयर के 'मैकबेथ' का अपना प्रस्तुतीकरण है। विशाल भारद्वाज का हैदर भी शेक्सपीयर के हैमलेट से प्रेरित है परंतु हैमलेट को सर लारेंस ऑलिवर की तरह अनेक महान कलाकारों ने अभिनीत किया है। विशाल भारद्वाज ने अत्यंत कमजोर अभिनेता शाहिद को चुना, जबकि शाहिद कपूर के पिता पंकज कपूर उस भूमिका को बेहतर अभिनीत कर सकते थे। 'हैमलेट' की ही तरह 'देवदास' को भी अनेक कलाकार अभिनीत कर चुके हैं। हैमलेट और देवदास दोनों ही पात्र दुविधाग्रस्त हैं और अपराधी को पहचान लेने के बाद भी दंडित करने से कतराते हैं। इसी तरह महाभारत के अर्जुन भी दुविधा में फंसे हैं कि विरोधी कौरव की सेना में सभी उनके अपने हैं। जिस तरह अर्जुन को सही राह दिखाने के लिए श्रीकृष्ण उपलब्ध थे, उस तरह हैमलेट और देवदास के पास कोई नहीं था। वर्तमान में फरहान अख्तर अपने पिता जावेद अख्तर से हैमलेट की उनकी अपनी व्याख्या पर फिल्म रच सकते हैं।

हैमलेट, देवदास और कुछ हद तक अर्जुन की दुविधाअों की तरह आज अवाम भी अत्यंत दुविधाग्रस्त है। करेंसी के अर्द्धरात्रि में बदलाव के कारण रोजमर्रा के जीवन में अकल्पनीय कष्ट भोग रहा है परंतु प्रायोजित मस्तिष्क वाले लोग यह कहते नहीं थकते कि आज के कष्ट कल बेहतर जीवन देंगे। इस आपाधापी में मरे 49 लोगों को कहीं कोई आदरांजलि भी नहीं दे रहा है। हल्के लहजे में कहें तो यह ऐसा ही कि मुर्गी जान से गई परंतु खाने वालों को मजा ही नहीं आ रहा है।

कोई उद्योगपति बैंक के सामने कतार में नहीं खड़ा है। मजबूर आम आदमी ही धक्के खा रहा है। अपने तुगलकी फैसले से दिशाहीन सरकार आए दिन नई घोषणाएं कर रही है। यह फैसला उस निवाले की तरह हो गया है, जो न निगलते बन रहा है और न ही उगलते बन रहा है।

इसी तरह बड़े जोश-खरोश से 'सर्जिकल स्ट्राइक' ऐसा प्रचारित किया गया मानो विगत लगभग सत्तर वर्षों में यह पहली बार हुआ है और अब तक निरंतर हो रही मुठभेड़ों में लगभग पचास जवान शहीद हो गए हैं गोयाकि उस सर्जरी के कारण पूरे अस्पताल के फर्श पर खून फैला हुअा है और उसे 'स्वच्छ स्ट्राइक' कहा जा रहा है। प्राय: सरकारें अवाम के प्रति उदासीन रही हैं परंतु गोएबल्स से प्रेरित प्रचार-तंत्र अमावस्या की स्याह रात को पूनम बताने में सफल हो रहा है।

अनुराग कश्यप-सा कोई फिल्मकार, जो शीर्षासन को कपालक्रिया कह सकता है, अपने गाइड पात्र को सांसद के रूप में प्रस्तुत कर सकता है और रोज़ी को विपक्षी नेता के रूप में। स्याह वर्तमान में पक्ष और विपक्ष की युद्ध-कथा नीं प्रेम-कथा प्रस्तुत हो रही है। अवाम का सच्चा प्रतिनिधि इसमें से कोई नहीं है। विष्णु खरे की कविता 'दज्जाल' की कुछ पंक्तियां आज के नेता के अवचेतन को समझने में सहायक हो सकती हैं- 'इबलीस का ज़ाहिद-ओ-आबिद होगा वह, लेकिन उसकी मुखालिफत का स्वांग करेगा…वह बेचेगा जन्नत के ख्वाब, कहेगा मेरा ही इन्तिखाब करो और गुमराह कौमंे उसके हाथों, कदमों और जिल्ल को चूमने लगेंगी, दीवानावार उसकी मोतकिद हो जाएंगी।'