'घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे' / जयप्रकाश चौकसे

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'घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे'
प्रकाशन तिथि :02 जुलाई 2016


जब अजहर को टेस्ट मैच के लिए चुना गया, तब जीवन में पहली बार उन्हें क्रिकेट का किट, क्रिकेट खेलने के जूते और बल्ला मिला। इसके पूर्व गरीब घर में जन्मे अजहर कैनवास के साधारण जूते और मांगे हुए बल्ले से क्रिकेट खेलते रहे थे। अपने पहले तीन टेस्ट में लगातार शतक बनाकर वे सफलता व समृद्धि के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते गए। फिर सफलता के शिखर पर पहुंचकर उन्होंने खूब फैशनेबल कपड़े खरीदे, महंगे डिज़ाइनर जूते खरीदे और सजधज तथा ठाठ बाट के साथ रहने लगे। गरीबी के िदनों में अभावों से जन्मी कुंठा के हौवे से मुक्ति के लिए अतिरिक्त ठाठ बाट के रास्ते पर चल पड़े। अकबर के एक दरबारी प्राय: एक कमरे में कुछ समय बिताते थे। उनकी प्रगति से जलने वाले लोगों ने बादशाह से शिकायत की कि इसने रिश्वत का माल एक मोहल्ले के कमरे में छिपाया है। परीक्षण पर पाया गया कि वहां वे अपने अभावों के दिनों के फटे कपड़े पहनकर कुछ समय बिताने जाते थे। उनका स्पष्टीकरण था कि खास सरकारी सलाहकार होने के दिनों में वे ठाठ-बाट से रह रहे थे और अपनी औकात न भूलें, इसलिए उस कमरे में आकर कुछ समय अपनी मुफलिसी की जुगाली करते थे। अाज के युवा पाठकों की सेवा में अर्ज है कि अवसर मिलने पर खूब चारा भकोस जाने वाले जानवर फुर्सत के क्षण में भकोसे हुए चारे को अपने मुंह में वापस लाकर खूब चबाते हैं। इस प्रक्रिया को जुगाली कहते हैं। मनुष्य का पुरानी यादों के संसार में लौटना भी एक किस्म की जुगाली है। वर्तमान के अनुभव को यादों की जुगाली के संदर्भ में उनका आकलन किया जाना चाहिए।

राज कपूर और ख्वाजा अहमद अब्बास की 'श्री 420' का नायक लॉन्ड्री में कपड़ों को इस्तरी करने की मामूली नौकरी करता है। एक दिन ड्राय-क्लीनिंग के लिए अाया अपनी साइज से बड़ा सूट पहनकर वह प्रेमिका को प्रभावित करने जाता है परंतु अपने कैनवास के फटे जूतों से झांकतीं पैर की उंगलियों को छिपाने का प्रयास करता है। पकड़े जाने पर झेंपकर भाग खड़ा होता है। कुछ दिन बाद उसकी प्रेमिका लॉन्ड्री के सामने से गुजरती है तो नायक शो केस में हैंगर पर टंगे सूट के पीछे खड़ा होता है और दिखावा करता है मानो वह महंगा सूट पहने खड़ा है। नायिका उसे कौतुक से देखती है। उसके जाने का उपक्रम करते ही नायक अपने फटे-पुराने कपड़ों में दौड़कर बाहर आता है। वह कहती है कि कुछ क्षण पूर्व तो वह सूट पहने खड़ा था। नायक अपने चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहता है, 'फिर खा गई ना धोखा, आदमी कपड़े पहनता है, कपड़े आदमी को नहीं पहनते।'

अजहर के अनुभव, अकबर के दरबारी की सपाट बयानी और 'श्री 420' का यह दृश्य समान बातों को रेखांकित करते हैं। अभावों से भरे जीवन की कुंठा ही महंगे कपड़े पहनकर प्रस्तुत होने का कारण है और कपड़े मात्र आवरण हैं, जिनसे मनुष्य के चरित्र का आकलन नहीं किया जा सकता। इन्हीं बातों के सत्य को सदियों पूर्व भारत के महानतम कवि कबीर कह चुके हैं, जिसका सार है, 'घूंघट के पट खोल तुझे पिया (पीव) मिलेंगे।' सारे आवरण मनुष्य की आंखों पर पड़े हैं, सत्य तो वस्त्रहीन, अावरणविहीन सामने अपने नग्न स्वरूप में खड़ा है परंतु अपनी आंखों पर मिथ्या गर्व का आवरण, अपने पद, सम्मान का आवरण, जन्म से जुड़ी श्रेष्ठता का आवरण होने के कारण मनुष्य ही सत्य को नहीं देख पाता। इससे भी भयावह यह है कि वह सत्य को जानना ही नहीं चाहता। कपड़ों की तरह ही अनेक आवरण हैं। गरीब घरों में तालपत्री से एक के दो कमरे बनाए जाते हैं। महानगरों के फुटपाथ पर लाखों लोग अपना पूरा जीवन बिताते हैं और झीने परदों से कक्ष बनाते हैं। महानगरों की सड़कों पर सारी रात आवागमन होता है, रातों को जागती उन सड़कों के फुटपाथ पर पारदर्शी परदों के साथ और बावजूद बच्चों का जन्म भी होता है। यह बेशर्मी नहीं है, जीवन का स्वाभाविक ढंग और निर्मम सत्य है, जो गगनचुंबी अट्‌टालिकाओं को ठेंगा दिखाता है। फुटपाथ पर बिखरा यह यथार्थ महान संसद से सवाल पूछता है और संसद क्या करती है, इसे धूमिल की पंक्तियों से समझें, 'एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है, एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है, वह सिर्फ रोटी से खेलता है, मैं पूछता हूं यह तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है।' फुटपाथ पर जीवन बसर करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। नेता रात के उन प्रहरियों की तरह हैं, जो al145जागते रहो' की आवाज मशीनवत दोहराकर खुद सो जाते हैं। उनके खुर्राटों में मुझे युद्ध के समय गोला-बारूद और गूंजतीं बंदूकों की ध्वनि सुनाई देती है।

अजहर, अकबर और 'श्री 420' के तथ्यों के साथ जरा गौर फरमाएं कि कैसे एक गुरबत से आया आदमी इतिहास की दुर्घटना के कारण शिखर पर जा विराजता है और लाखों रुपए के वस्त्र पहनता है। भूखे-नंगे देश का प्रतिनिधित्व करता हुआ विदेशों में अपनी महंगी पोशाक से वह क्या अभिव्यक्त कर रहा है? राज कपूर और ख्वाजा अहमद अब्बास शायद यह स्वीकार नहीं कर पाते कि कैसे कपड़ों ने एक शिखर व्यक्ति को पहना हुअा है। जब अजहर को टेस्ट मैच के लिए चुना गया, तब जीवन में पहली बार उन्हें क्रिकेट का किट, क्रिकेट खेलने के जूते और बल्ला मिला। इसके पूर्व गरीब घर में जन्मे अजहर कैनवास के साधारण जूते और मांगे हुए बल्ले से क्रिकेट खेलते रहे थे। अपने पहले तीन टेस्ट में लगातार शतक बनाकर वे सफलता व समृद्धि के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते गए। फिर सफलता के शिखर पर पहुंचकर उन्होंने खूब फैशनेबल कपड़े खरीदे, महंगे डिज़ाइनर जूते खरीदे और सजधज तथा ठाठ बाट के साथ रहने लगे। गरीबी के िदनों में अभावों से जन्मी कुंठा के हौवे से मुक्ति के लिए अतिरिक्त ठाठ बाट के रास्ते पर चल पड़े। अकबर के एक दरबारी प्राय: एक कमरे में कुछ समय बिताते थे। उनकी प्रगति से जलने वाले लोगों ने बादशाह से शिकायत की कि इसने रिश्वत का माल एक मोहल्ले के कमरे में छिपाया है। परीक्षण पर पाया गया कि वहां वे अपने अभावों के दिनों के फटे कपड़े पहनकर कुछ समय बिताने जाते थे। उनका स्पष्टीकरण था कि खास सरकारी सलाहकार होने के दिनों में वे ठाठ-बाट से रह रहे थे और अपनी औकात न भूलें, इसलिए उस कमरे में आकर कुछ समय अपनी मुफलिसी की जुगाली करते थे। अाज के युवा पाठकों की सेवा में अर्ज है कि अवसर मिलने पर खूब चारा भकोस जाने वाले जानवर फुर्सत के क्षण में भकोसे हुए चारे को अपने मुंह में वापस लाकर खूब चबाते हैं। इस प्रक्रिया को जुगाली कहते हैं। मनुष्य का पुरानी यादों के संसार में लौटना भी एक किस्म की जुगाली है। वर्तमान के अनुभव को यादों की जुगाली के संदर्भ में उनका आकलन किया जाना चाहिए।

राज कपूर और ख्वाजा अहमद अब्बास की 'श्री 420' का नायक लॉन्ड्री में कपड़ों को इस्तरी करने की मामूली नौकरी करता है। एक दिन ड्राय-क्लीनिंग के लिए अाया अपनी साइज से बड़ा सूट पहनकर वह प्रेमिका को प्रभावित करने जाता है परंतु अपने कैनवास के फटे जूतों से झांकतीं पैर की उंगलियों को छिपाने का प्रयास करता है। पकड़े जाने पर झेंपकर भाग खड़ा होता है। कुछ दिन बाद उसकी प्रेमिका लॉन्ड्री के सामने से गुजरती है तो नायक शो केस में हैंगर पर टंगे सूट के पीछे खड़ा होता है और दिखावा करता है मानो वह महंगा सूट पहने खड़ा है। नायिका उसे कौतुक से देखती है। उसके जाने का उपक्रम करते ही नायक अपने फटे-पुराने कपड़ों में दौड़कर बाहर आता है। वह कहती है कि कुछ क्षण पूर्व तो वह सूट पहने खड़ा था। नायक अपने चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहता है, 'फिर खा गई ना धोखा, आदमी कपड़े पहनता है, कपड़े आदमी को नहीं पहनते।'

अजहर के अनुभव, अकबर के दरबारी की सपाट बयानी और 'श्री 420' का यह दृश्य समान बातों को रेखांकित करते हैं। अभावों से भरे जीवन की कुंठा ही महंगे कपड़े पहनकर प्रस्तुत होने का कारण है और कपड़े मात्र आवरण हैं, जिनसे मनुष्य के चरित्र का आकलन नहीं किया जा सकता। इन्हीं बातों के सत्य को सदियों पूर्व भारत के महानतम कवि कबीर कह चुके हैं, जिसका सार है, 'घूंघट के पट खोल तुझे पिया (पीव) मिलेंगे।' सारे आवरण मनुष्य की आंखों पर पड़े हैं, सत्य तो वस्त्रहीन, अावरणविहीन सामने अपने नग्न स्वरूप में खड़ा है परंतु अपनी आंखों पर मिथ्या गर्व का आवरण, अपने पद, सम्मान का आवरण, जन्म से जुड़ी श्रेष्ठता का आवरण होने के कारण मनुष्य ही सत्य को नहीं देख पाता। इससे भी भयावह यह है कि वह सत्य को जानना ही नहीं चाहता।

कपड़ों की तरह ही अनेक आवरण हैं। गरीब घरों में तालपत्री से एक के दो कमरे बनाए जाते हैं। महानगरों के फुटपाथ पर लाखों लोग अपना पूरा जीवन बिताते हैं और झीने परदों से कक्ष बनाते हैं। महानगरों की सड़कों पर सारी रात आवागमन होता है, रातों को जागती उन सड़कों के फुटपाथ पर पारदर्शी परदों के साथ और बावजूद बच्चों का जन्म भी होता है। यह बेशर्मी नहीं है, जीवन का स्वाभाविक ढंग और निर्मम सत्य है, जो गगनचुंबी अट्‌टालिकाओं को ठेंगा दिखाता है। फुटपाथ पर बिखरा यह यथार्थ महान संसद से सवाल पूछता है और संसद क्या करती है, इसे धूमिल की पंक्तियों से समझें, 'एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है, एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है, वह सिर्फ रोटी से खेलता है, मैं पूछता हूं यह तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है।' फुटपाथ पर जीवन बसर करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। नेता रात के उन प्रहरियों की तरह हैं, जो 'जागते रहो' की आवाज मशीनवत दोहराकर खुद सो जाते हैं। उनके खुर्राटों में मुझे युद्ध के समय गोला-बारूद और गूंजतीं बंदूकों की ध्वनि सुनाई देती है।

अजहर, अकबर और 'श्री 420' के तथ्यों के साथ जरा गौर फरमाएं कि कैसे एक गुरबत से आया आदमी इतिहास की दुर्घटना के कारण शिखर पर जा विराजता है और लाखों रुपए के वस्त्र पहनता है। भूखे-नंगे देश का प्रतिनिधित्व करता हुआ विदेशों में अपनी महंगी पोशाक से वह क्या अभिव्यक्त कर रहा है? राज कपूर और ख्वाजा अहमद अब्बास शायद यह स्वीकार नहीं कर पाते कि कैसे कपड़ों ने एक शिखर व्यक्ति को पहना हुअा है।