'चीट इंडिया' की 'मार्कशीट' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 दिसम्बर 2018
महेश भट्ट की बहन के सुपुत्र इमरान हाशमी को अभिनय के कई अवसर दिए गए और एक दर्शक वर्ग ने उन्हें स्वीकार भी किया। इमरान हाशमी ने 'चीट इंडिया' नामक फिल्म बनाई है, जिसके संवाद 'नकल में ही अकल है' पर सेंंसर बोर्ड ने आपत्ति उठाई है। महेश भट्ट स्वयं एक फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं, जिसका नाम है 'मार्कशीट'। आश्चर्य यह है कि दोनों ही फिल्मों का विषय है हमारी शिक्षा प्रणाली और परीक्षाएं। एक ही फिल्म परिवार के दो सदस्य समान कथासार पर फिल्म बना रहे हैं। क्या यह जीन्स का असर है कि परिवार के सदस्यों की सोच समान है। मामा-भांजे की विचार तरंग का समान होना स्वाभाविक लगता है। हमारी शिक्षा प्रणाली में पाठ्यक्रम को जबानी याद करने को महत्वपूर्ण बना दिया गया है। छात्र जगत में इसे 'घोटना' कहा जाता है और 'तोता रटन्त' भी कहा जाता है। तोते जो सुनते हैं, वह तुरंत ही दोहरा देते हैं। तोतापरी एक आम का प्रकार भी है परंतु इस क्षेत्र में हापूस की मांग अधिक रही है। उस फिल्म गीत को भी तोतापरी कहते हैं कि पहली बार सुनते ही जुबान पर चढ़ जाए। ज्ञातव्य है कि राजकुमार हिरानी की फिल्म '3 इडियट्स' में इस पर गहरा व्यंग्य किया गया है। उल्हासनगर नामक शहर में विदेशी माल की नकल ताबड़तोड़ की जाती थी और 'मेड इन यूएस' की भोंडी नकल कहलाती थी 'मेड इन उल्हासनगर'। भारत का 'मेक इन इंडिया' इसी तरह की नारेबाजी है, जबकि हम अपने महान नेता की मूर्ति चीन में बनवाते हैं। चीन भी एक गहरा रहस्य ही है। कम्युनिस्ट चीन का एक हिस्सा न्यूयॉर्क की तरह विकसित किया गया है तो दूसरा हिस्सा इतना पिछड़ा हुआ है कि मध्ययुगीन लगता है। वहां फैक्ट्री में कर्मचारियों के प्रवेश के बाद बाहर से ताला लगा दिया जाता है और भीतर एक सख्त मिजाज व्यक्ति निगरानी रखता है। एक बार बाहर लगे हुए ताले के कारण भीतर आग में कर्मचारी जल गए।
चीन के एक हिस्से पर जापान का प्रभाव है और जापान ने पूंजी निवेश भी किया है। यह परंपरागत शत्रु आज मित्र बन गए हैं। दरअसल चीन का समाज उस रशियन गुड़िया की तरह है, जिसमें गुड़िया भीतर गुड़िया निकलती जाती है और अंतिम गुड़िया मात्र 1 इंच की होती है। यह सच है कि वहां के अवाम में गहरा असंतोष है। वहां तलघरों में डिस्को डांस होता है। ऐसे ही एक डिस्को में बड़ा-सा पोस्टर लगा था जिसमें महात्मा गांधी को गिटार बजाते हुए बीटल्स सदस्य की तरह दिखाया गया। वहां डिस्को प्रतिबंधित है। परीक्षा प्रणाली के दोष की एक बानगी यह है कि मूल्यांकन करने के लिए एक रुपया चार आना प्रति उत्तर पुस्तिका दिया जाता था और 15 दिन की समय सीमा होती थी। प्राय: हस्तलिपि देखकर अंक दिए जाते थे। एक महान शिक्षक तो उत्तर पुस्तिकाओं को फेंकता था और घेरे में गिरी पुस्तिकाओं को अच्छे अंक दे देता था। यह काम अंधाधुंध किया जाता था। इसका निदान इस तरह से भी हो सकता है कि प्रथम दस आने वाले छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं को विश्वविद्यालय के वाचनालय में रखा जाए। सबको देखने की स्वतंत्रता प्राप्त हो। भावी छात्र भी उससे सीख सकें और अगर मूल्यांकन में भ्रष्टाचार हुआ है तो वह जगजाहिर हो जाए। इस सत्य घटना को मैं दोहरा रहा हूं कि प्रकाश मेहरा के भागीदार का बेटा परीक्षा में फेल हो गया और उसने आत्महत्या कर ली। जब उसकी अर्थी जा रही थी तभी एक अधिकारी ने आकर बताया कि वह तो प्रथम आया है और परिणाम घोषणा में त्रुटि हो गई। देश के किसान और छात्रों की समस्याओं को सर्वप्रथम हल किया जाना चाहिए। कृषि प्रधान कहे जाने वाले भारत में उसके भूभाग के सबसे कम हिस्से में खेती होती है। हजारों एकड़ जमीन को खेती करने योग्य बनाया जा सकता है। सिंचाई व्यवस्था भी सुधारी जा सकती है। इस क्षेत्र में वर्षा के पानी का संग्रहण महत्वपूर्ण है। मकान की छतों पर हुई बरसात का पानी पाइप द्वारा लगाकर जमीन की भीतरी सतह तक प्रवाहित किया जा सकता है। वाटर हार्वेस्टिंग का व्यापार किया जाना चाहिए। इसी तरह सूर्य किरणों से बनाई गई बिजली का क्षेत्र भी महत्वपूर्ण है। भारत पर सूर्य देव की अनंत कृपा है। यह यूरोप में बनी फिल्म का नाम था 'मिरेकल इन मिलान'। फिल्म में प्रदर्शित स्थान पर धूप कभी कभी ही देखी जाती है और उस समय धूप के क्षेत्र में खड़े रहने के लिए धक्का-मुक्की की जाती है।
यह संभव है कि इमरान हाशमी की 'चीट इंडिया' व उनके मामा महेश भट्ट की 'मार्कशीट' का प्रदर्शन एक ही समय हो। ऐसे में अधिक सिनेमाघरों में प्रदर्शन अवसर पाने के लिए मामा-भांजे एक दूसरे से टकरा सकते हैं। मामा पुराने मंझे हुए खिलाड़ी हैं और फिल्म प्रदर्शन का कार्य छोटे भाई मुकेश भट्ट देखते हैं। इमरान हाशमी, महेश भट्ट से रियायत ले सकते हैं परंतु मुकेश भट्ट से वे कभी जीत नहीं सकते।
आज से कुछ दशक पूर्व भट्ट बंधुओं की कंपनी 'विशेष फिल्म्स' कर्ज में डूबी थी। संगीत बेचने वाले गुलशन कुमार ने महेश भट्ट को आमंत्रण दिया था कि वह उनके लिए फिल्म बनाए। महेश भट्ट ने इनकार कर दिया तब मुकेश भट्ट ने उन्हें बाध्य किया कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करके कर्ज से मुक्त हुआ जा सकता है। वरना चक्रवृद्धि ब्याज ले डूबेगा। उस दौर में फिल्मकार 36% ब्याज देता था। किसानों की तरह फिल्मकार भी इस ब्याज की बीमारी के शिकार हुए हैं। किसान कर्ज मुक्ति राजनीतिक दल के मेनिफेस्टो में शामिल रहती है परंतु फिल्मकार की चिंता सरकार को कभी नहीं रही है।