'चीन कम' और चीनी ज्यादा / जयप्रकाश चौकसे

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'चीन कम' और चीनी ज्यादा
प्रकाशन तिथि :21 अगस्त 2015


आर. बाल्की और उनकी पत्नी गौरी शिंदे अत्यंत प्रतिभाशाली हैं। आर. बाल्की की 'चीनी कम' और 'पॉ' अत्यंत सफल फिल्में हैं परंतु तीसरी फिल्म 'शमिताभ' सफल नहीं हुई। वे इस समय अर्जुन कपूर और करीना कपूर के साथ 'का एंड की' नामक फिल्म बना रहे हैं तथा उनकी पत्नी गौरी शिंदे की श्रीदेवी अभिनीत 'इंग्लिश विंग्लिश' अत्यंंत सफल रही और अब वे अपनी दूसरी फिल्म करण जौहर के सहयोग से बना रही हैं, जिसमें शाहरुख खान और आलिया भट्‌ट के साथ कुछ और कलाकार भी होंगे। शाहरुख खान ने करण जौहर के साथ अपनी चौथी फिल्म 'माय नेम इज खान' के बाद कई वर्ष तक काम नहीं किया और करण जौहर अन्य सितारों के साथ फिल्में बनाते रहे। उन्होंने अपनी पहली फिल्म के बाद दावा किया था कि वे शाहरुख खान के बिना किसी फिल्म की कल्पना भी नहीं कर सकते परंतु यह प्रारंभिक उत्साह था और समय के साथ वे अधिक स्पष्ट सोचने लगे तथा उन्होंने अनेक फिल्मों का निर्माण भी किया। अफवाह यह थी कि प्रियंका प्रकरण में वे गौरी खान के पक्ष में रहे और बादशाह खान से उनकी कुछ दूरी हो गई है। यद्यपि मुलाकातों का सिलसिला हमेशा कायम रहा।

यह भी संभव है कि गौरी शिंदे की पटकथा उन्हें पसंद आई हो और अब तीन कंपनियां शाहरुख खान, करण जौहर और गौरी शिंदे की है। यह भी बताया जाता है कि इस अभिनव पटकथा में शाहरुख खान और आलिया भट्‌ट की प्रेम-कथा नहीं है। ज्ञातव्य है कि आर. बाल्की की 'चीनी कम' में नायक की उम्र साठ वर्ष है और नायिका की उम्र पैंतीस है। अमिताभ बच्चन और तब्बू ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया था। इस फिल्म के एक मनोरंजक परंतु अत्यंत व्यावहारिक तथ्य को बखूबी पेश किया था, जब तब्बू अमिताभ बच्चन को दूर दरख्त तक दौड़कर छूने और वापस आने को कहती हैं। तब्बू का संवाद था कि वह दमखम देख रही थी। विवाह के प्रेम संबंध से शरीर को खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रेम नामक दिव्य भावना शरीर के माध्यम से ही अभिव्यक्त होती है। यद्यपि वह एकमात्र माध्यम नहीं है, क्योंकि अभिव्यक्ति का प्रारंभ तो नज़र से होता है और सच तो यह है कि यह रॉम-कॉम से अभिव्यक्त होने के साथ बिना किसी माध्यम के भी अभिव्यक्त होता है। इसलिए कहते हैं कि दिल को दिल से कुछ अदृश्य-सा जोड़े रखता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि विवाह दिव्य भावना है, जो दो शरीरों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। दशकों पूर्व बुरहानपुर के म्यूनिसिपल वाचनालय में एक अंग्रेजी उपन्यास पढ़ा था, जिसमें गांधीजी के हवाले से लिखा था, 'मैरिज इज ए यूनियन ऑफ टू सोल्स विद द मीडियम ऑफ टू बॉडीज।' अब अनेक शहरों के वाचनालय नष्ट हो चुके हैं और इस सामाजिक हानि के प्रति कोई चिंता भी नहीं जताता। संभवत: वह 'बॉडी एंड सोल' उपन्यास 19वीं सदी के सर रिचर्ड बर्टन का लिखा था।

गौरी शिंदे अपने पति की फिल्म 'चीनी कम' की तर्ज पर फिल्म नहीं रचेंगी! उनके कला-मूल्य उनके पति की तरह आदर्श हैं। उनकी 'इंग्लिश विंग्लिश' भी मौलिक कथा थी और उस कमाल की फिल्म को पूरे विश्व में सराहा गया। बहरहाल, उनकी फिल्म शूटिंग के पहले ही एक सेतु बन गई, जिस पर करण व शाहरुख मिल गए। इससे अधिक शुभ प्रारंभ क्या हो सकता है। आर. बाल्की की फिल्म 'का एंड की' भी विवाह संबंध पर सार्थक फिल्म होगी और बाद मुद्‌दत के करीना जैसी प्रतिभाशाली कलाकार को एक निर्देशक तो मिला, जो उसकी प्रतिभा का गहन दोहन कर सकेगा और अर्जुन कपूर के लिए भी यह स्वर्ण अवसर है। वह 'फाइंडिंग फैनी' में पंकज कपूर और नसीर जैसे पारंगत कलाकारों के बीच अपनी जमीन की रक्षा कर पाया था। वह अत्यंत प्रतिभाशाली दीपिका के अभिनय पंजों से बेदाग छूटा है और अब तो सामने घरेलू शेरनी है। सबसे बड़ी बात यह है कि रिंग मास्टर आर. बाल्की का कोड़ा जो सर पर लहराता रहेगा।

गौरी शिंदे के साथ काम करते हुए शाहरुख खान अपने अवचेतन से फरहा खान की फूहड़ सिनेमा शैली से मुक्त होंगे। दोनों महिला फिल्मकारों की विचार शैली में जमीन-आसमान का अंतर है। फरहा तो उन गलियों से गुजरी हैं, जहां इंग्लिश विंग्लिश अपशब्द की तरह है और पुणे में जन्मी गौरी अलग ही सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आई हैं। अार. बाल्की और गौरी 21वीं सदी के हिमांशु राय और देविका रानी की तरह सृजनशील हैं।