'जाना था जापान पहुंच गए चीन' / जयप्रकाश चौकसे

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'जाना था जापान पहुंच गए चीन'
प्रकाशन तिथि : 21 अगस्त 2019


एक प्रत्यर्पण बिल प्रस्तुत हुआ, जिसके तहत गुनाह हांगकांग में करने पर सजा चीन में दी जा सकती है। इसके विरोध में अनगिनत लोग खड़े हुए हैं परंतु वर्तमान व्यवस्था में विरोध को ही प्रभावहीन बना दिया गया है। डोनाल्ड ट्रम्प चाहते हैं कि मैक्सिको में जेब काटने की सजा अमेरिका में दी जाए। हिटलर ने सात लाख यहूदी गैस चैम्बर में मरवा दिए। परिणाम यह हुआ कि दूसरे विश्वयुद्ध के समाप्त होने पर यहूदियों को अपना देश इजरायल बनाने का अवसर मिल गया और उस भूखंड पर रहने वालों को खदेड़ दिया गया। इसी घटना से आधुनिक आतंकवाद का प्रारंभ हुआ। सदियों से उस भूखंड पर रहने वालों ने इजरायल पर गुरिल्ला आक्रमण शुरू कर दिए। शेखर कपूर ने अंग्रेजी भाषा में इसी विषय पर एक कथा फिल्म बनाई थी। अमेरिका को गुनाहगार की तरह प्रस्तुत करने वाली फिल्म का व्यापक प्रदर्शन नहीं होने दिया गया।

हमारे देश में बैंक को चूना लगाने वाले विदेश भाग गए हैं। उन्हें भारत लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बैंक से कर्ज लेने के लिए अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ती है। चतुर लोगों ने फर्जी सम्पत्तियां गिरवी रख दीं। श्याम बेनेगल की फिल्म 'वेलडन अब्बा' में कुएं के लिए ऋण प्राप्त करने की जद्दोजहद प्रस्तुत की गई थी। इस फिल्म में प्रस्तुत घटनाक्रम में कुआं चोरी चला जाता है। दरअसल, जो कुआं खोदा ही नहीं गया, उसका चोरी होना बताकर ऋण घपले पर डाले गए परदे को उठाने का प्रयास किया जाता है। फ्योदोर दोस्तोवस्की के उपन्यास 'क्राइम एंड पनिशमेंट' पर सभी देशों में फिल्में बनी हैं। भारत में रमेश सहगल ने 'फिर सुबह होगी' नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें ख़य्याम और साहिर लुधियानवी ने सार्थक माधुर्य रचा। इसके गीत बाद में बनी फिल्मों में दोहराए गए हैं। महेश भट्‌ट की फिल्म 'बेगमजान' में तवायफें अपने कोठे को आग लगाकर स्वयं उसमें भस्म हो जाती हैं परंतु विभाजन को स्वीकार नहीं करतीं। इस फिल्म में भी 'फिर सुबह होगी' के गीत का उपयोग किया गया। ज्ञातव्य है कि रमेश सहगल की फिल्म के हर विज्ञापन में साहिर लुधियानवी के गीत का इस्तेमाल किया गया। फिल्म के नायक राज कपूर और नायिका माला सिन्हा की तस्वीरों से अधिक महत्व ख़य्याम साहब के संगीत और साहिर के गीतों को दिया गया था।

आयन रैंड ने 'फाउंटेनहेड' में यह विचार व्यक्त किया कि सृजनधर्मी लोगों के लए दंड विधान अवाम के लिए तय किए गए दंड विधान से अलग होने चाहिए। आश्चर्य की बात यह है कि दोस्तोवस्की के उपन्यास में भी यही संकेत दिया गया है। इस तरह का विचार न्याय के समानता वाले आधारभूत आदर्श के ही खिलाफ है। अपराधी किसी लेखक को धन देकर अपने नाम से किताब जारी करेंगे और 'सृजनधर्मी मोहर' लगने पर दंड से बच जाएंगे। वर्तमान में भी दंड विधान का बंटवारा अघोषित रूप से कर लिया गया है। हमारी व्यवस्था 'सिंहासनमुखी' रहती है। कोई भी चीज अकारण और यकायक नहीं होती। इस समय पूरे विश्व में प्रतिक्रियावादी ताकतें सत्ता में हैं। डोनाल्ड ट्रम्प संज्ञा नहीं क्रिया है और उसी तरह के लोग अनेक देशों में सत्तासीन हैं। इसी दौर की सबसे सफल फिल्म 'बाहुबली' है जो तर्कहीनता का उत्सव मनाते हुए पुरातन आख्यानों को महिमामंडित करती है। दरअसल, वामपंथी विचार वालों ने अपने दौर में ठीक काम नहीं किए। अफसरशाही और लालफीताशाही ने सबकुछ लील लिया। चीन के मंसूबे सामंतवादी हैं परंतु साधन साम्यवादी हैं। उसके शक्तिशाली होने के कारण कोई उसके खिलाफ कदम नहीं उठाता, भले ही वह अन्य देश में मीलों अतिक्रमण कर दे। साम्यवादी रूस भी विघटन का शिकार हुआ। वर्तमान में साम्यवाद मिटी हुई इबारत की तरह बन गया है परंतु उसके आदर्श विचार प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा है। साम्यवाद का इंटरनलाइजेशन हो चुका है। जैसे शिक्षक कक्षा के ब्लैकबोर्ड को डस्टर से साफ कर देता है परंतु तब भी मिटाए गए अक्षर नज़र आते हैं।