'जी' टेलीविजन की साहसी पहल / जयप्रकाश चौकसे

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'जी' टेलीविजन की साहसी पहल
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2014


भारत के पहले टेलीविजन प्राइवेट चैनल 'जी' ने अपनी शिखर स्थिति को बनाए रखने के लिए पारंपरिक मसालों के साथ कुछ नए प्रयोग का प्रयास हमेशा किया है। उनके अन्य प्रतिद्वंद्वी चैनल के मालिक विदेशी हैं और 'जी' एकमात्र भारतीय मालिक की रचना है, अत: विपुल साधनों से भी वे टकराते रहे हैं। यह सच है कि उन्होंने सीरियल संसार की फूहड़ता और अंधविश्वासों को मजबूत बनाने वाली रचनाएं प्रस्तुत की हैं परंतु सोप ऑपरा की बुनावट में ही सांस्कृतिक गंदगी मौजूद है। उनके मराठी चैनल पर सार्थक कार्यक्रम होते हैं। खबर है कि 23 जून 2014 से वे 'जिंदगी' नामक उप चैनल प्रारंभ करने जा रहे हैं जिसमें पाकिस्तान, इरान, कोरिया इत्यादि गैर यूरोपियन देशों के सफल कार्यक्रमों की प्रस्तुति होगी। आज मुंबई जैसे अनेक महानगरों में सेवर स्टार नामक केबल नेटवर्क पर पाकिस्तान में बने सीरियल लगातार दिखाए जा रहे हैं और हुल्लड़बाजों की निगाह से अपने सीमित प्रसारण के कारण बचे हुए हैं।

पाकिस्तान का फिल्म उद्योग भारत के विराट फिल्म उद्योग के सामने बौना है क्योंकि सिनेमाघरों की संख्या कम है और वे खस्ताहाल हैं। पाकिस्तानी दर्शक का सितारों के लिए उन्माद शायद भारत से भी अधिक है और दुबई से आए अवैध डीवीडी का व्यवसाय वहां खूब विकास कर रहा है। उनकी सबसे महंगी फिल्म का बजट वही होता है जो भारत में एक कैमरामैन का मेहनताना है और हमारी क्षेत्रीय फिल्मों से भी बजट कम है। पाकिस्तान का टेलीविजन अपनी कहानियों के कारण भारत से कई गुना बेहतर है।

दरअसल प्रारंभ से ही पाकिस्तान के प्रतिभाशाली लेखक और पढ़े-लिखे लोग वहां के टेलीविजन से जुड़े रहे हैं। भारतीय सीरियल संसार ने समझदारों से हमेशा परहेज किया है और अपनी फूहड़ता के साम्राज्य के चारों ओर मजबूत दीवारें खड़ी कर दी हैं। कभी-कभी कुछ सेंधमारी होती है जबकि इसके विपरीत भारतीय दूरदर्शन से श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, रमेश सिप्पी इत्यादि जुड़े रहे हैं परंतु सरकार ने स्वयं अपनी इस शक्तिशाली संस्था को निर्बल बना दिया है। संभवत: पूंजीवादी चैनलों ने राजनैतिक गलियारों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके सबसे व्यापक पहुंच वाले माध्यम को बेअसर कर दिया है।

बहरहाल 'सेवन स्टार' केबल नेटवर्क पर आजकल पाकिस्तान का सीरियल 'मोरा पिया' दिखाया जा रहा है। इसका कथा सार यह है कि बचपन के दो अभिन्न मित्रों के बेटा-बेटी बचपन से खेलकूदकर बड़े हुए हैं और जवानी में अनन्य प्रेमी बन गए हैं। कन्या के बाप को केवल यह ऐतराज है कि नायक एक टेलीविजन चैनल पर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहा है और बिल्डर माफिया से उसे लगातार धमकियां मिल रही हैं और उसकानिकटतम सहयोगी बुरी तरह घायल होकर अस्पताल में मौत का इंतजार कर रहा है। नायक एक बरसाती रात उनके घर में घुस जाता है और पूछता है कि सेवानिवृत्त सरकारी आला अफसर की सुरक्षा आपको प्राप्त है परंतु क्या आप या कोई अन्य व्यक्ति सचमुच सुरक्षित है? उनकी शादी कर दी जाती है और सुहागरात को नायक को अपने साथी की मृत्यु का समाचार मिलता है तो वह तुरंत जाना चाहता है और उसी के स्वभाव वाली दबंग पत्नी भी साथ जाती है। राह में माफिया उन्हें उठा लेता है और पति को बांधकर उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करता है और बाद में उन्हें छोड़ दिया जाता है।

वे दोनों इस घटना को परिवार से गुप्त रखकर उन्हें इस त्रासदी के दुख से बचाए रखने का प्रयास करते हैं और सहज जीवन जीने का पूरा प्रयास करेंगे- यह तय करते हैं। दोनों को उस त्रासदी की यादें चैन से जीने नहीं देतीं और पत्नी गर्भवती हो जाती है तो दोनों परिवार में जश्न मनाया जाता है और दोनों के बीच अभी तक शारीरिक संबंध नहीं बने थे, अत: वे जानते हैं कि बच्चा किसका है परंतु परिवार की सारी खुशियों में मन मारकर शामिल होते हैं। पति पत्नी तीन बार गर्भपात के लिए जाते हैं परंतु कुछ अनहोनी यह होने नहीं देती। अब द्वंद्व यह है कि 6 माह का गर्भधारण निरस्त नहीं हो सकता और पत्नी का कहना है कि गर्भस्थ शिशु उसका है और वह उसे पालेगी क्योंकि गर्भस्थ शिशु निरपराध है। परंतु पति अपनी पुरुष विचारधारा के कारण मां के हृदय को नहीं समझ पाता और दोनों नर्क में रहने जैसा महसूस करते हैं। पत्नी में जागी मां सहज स्वाभाविक परंतु पुरुषोचित अहंकार का कुचला सांप बार-बार फन उठाता है। नायक माफिया का पता लगाने का प्रयास करता रहता है और एक ईमानदार कमिश्नर की सहायता से उनका सफाया करवाने में सफल होता है।

सही समय पर ब्चे का जन्म होता है और 'पिता' के अतिरिक्त सब उस मासूम से प्यार करते हैं। घटनाक्रम कुछ ऐसा होता है कि केवल नायक का पिता सत्य को जान लेता है और अपने मासूम पोते को बोर्डिंग भेजने का निर्णय लेता है बशर्ते उसकी मां इसे स्वीकार करें। वह जानती है कि इसका विकल्प तो तलाक है। अपने प्रेम को एक अवसर देने के लिए वह दिल पर पत्थर रखकर पुत्र को बोर्डिंग जाने की आज्ञा देती है और उसका यह त्याग उसके पति के हृदय पर उस हादसे की चट्टान को तोड़ देता है और वह स्कूल जाकर बेटे सहित परिवार में लौट जाता है। इस सीरियल में मानवीय संवेदनाएं अपने चरम पर हैं और सारे द्वंद्व ऐसा तनाव बनाते हैं कि दर्शक दहल जाता है।

इस पाकिस्तानी सीरियल में प्रस्तुत भ्रष्टाचार और अंधविश्वास की समस्या से भारत अछूता नहीं है। इन दोनों देशों की आवाम का दिल एक ही साज पर धड़कता है और ममता तो सारे विश्व का सबसे सशक्त पक्ष है। हमारा सीरियल संसार वैकल्पिक दुनिया है और यह यथार्थ है। आशा है कि 'जिंदगी' चैनल साहसी सीरियल प्रस्तुत करेगा।