'जुड़वां' के बहाने आईएस जौहर का स्मरण / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 सितम्बर 2016
प्राय: जुड़वां बच्चों में एक की पीठ पर शिक्षक बेंत मारता है तो दूसरे की पीठ पर बेंत के निशान बन जाते हैं। एक को चिकनगुनिया होता है तो दूसरा भी बीमार पड़ जाता है। असल परेशानी तब होती है, जब एक को इश्क हो और दूसरे को भी उसी लड़की से प्रेम हो जाए। फिल्मों में जुड़वां पर अनेक फिल्में बनी हैं और दिलीप कुमार अभिनीत 'राम और श्याम' इन फिल्मों का पाठ्यक्रम मानी जाती है। हमशक्ल भाइयों से अलग होती है जुड़वां की कथाएं। हाल ही में डेविड धवन ने बड़ी चतुराई से सलमान खान अभिनीत 'जुड़वां' अपने पुत्र धवन को दिला दी और दिलदार सलमान खान ने न केवल इजाजत दी वरन उसमें अतिथि भूमिका करना भी स्वीकार कर लिया। सलमान खान के दरबार में रोते-बिसरते हुए जाकर उनसे कुछ भी मांगा जा सकता है और मूड ठीक हो तो वे कर्ण की तरह अपना सुरक्षा कवच भी दान में दे सकते हैं। परदे के पीछे रहकर चतुर सुजान निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने सारा खेल रचा है। वह सलमान खान को बखूबी जानते हैं और उन्होंने सलमान को नायक लेकर चार फिल्में बनाई हैं।
फिल्म उद्योग में आईएस जौहर सबसे अधिक पढ़े-लिखे और 'विटी' व्यक्ति रहे हैं। हास्य से अलग विधा है 'विट' जिसके लिए असाधारण दिमागी ताकत लगती है। अमेरिकी फिल्म 'लारेंस ऑफ अरेबिया' में आईएस जौहर की चरित्र भूमिका थी और फिल्म की सफलता की दावत में किसी हंसोड़ ने जौहर को भारत का चार्ली चैपलिन कहने की हिमाकत कर दी। ज्ञातव्य है कि चार्ली चैपलिन सिनेमा विधा के पहले जीनियस माने जाते हैं। उस दावत में आईएस जौहर ने निहायत ही संजीदगी से लतीफा प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वे जुड़वां भाई थे परंतु मेहनत करके वे प्रथम श्रेणी में पास होते उसका हमशक्ल जुड़वां उनकी डिग्री हथिया लेता था, वे क्रिकेट में शतक जड़ते तो उनका जुड़वां 'मैन ऑफ द मैच' का पुरस्कार ग्रहण कर लेता था, उन्हें इश्क हुआ और जुड़वां ने उस कन्या से विवाह कर लिया। इन सब अन्याय का बदला जौहर ने यूं लिया कि एक दिन वे मर गए और लोग उनके जुड़वां को दफना आए। जौहर के मजाक की शैली ऐसी थी।
एक बार उनके घर आयकर विभाग ने दबिश मारी तो उन्होंने स्वयं बताया कि फला अलमारी में उनका काला धन रखा है। उन्होंने सर्च करने आए अधिकारियों से कहा कि जल्दी न करें, तसल्ली से भोजन ग्रहण करें, साथ में वाइन लें फिर उस अलमारी को खोल लेना। ऐसा ही किया गया परंतु अलमारी में केवल रद्दी अखबार और कुछ वाहियात किताबें मिलीं। जौहर ने जवाबी हमला किया और आरोप लगाया कि उनके काले धन को आयकर अधिकारियों ने हड़प लिया है। सारा प्रकरण कुछ ऐसा घटित हुआ कि आयकर अधिकारियों को जेब से उन्हें धन देकर पिंड छुड़ाना पड़ा। जौहर ने जिस रेस्तरां से भोजन मंगाया था, वहां के सब लोग उनके गवाह बन गए।
आईएस जौहर ने अनेक सफल फिल्मों की पटकथा लिखी और स्वयं अविश्वसनीय परंतु सफल फिल्में जैसे 'जौहर मेहमूद इन गोवा', 'सिंगापुर' इत्यादि बनाई। वे फिल्म उद्योग को बेवकूफों से भरा उद्योग मानते थे और मखौल उड़ाते हुए मनमाना पैसा भी कमाते थे। एक बार खाकसार और आरके नैय्यर होटल ' संड एंड सन' पहुंचे, जहां जौहर साहब बीयर पी रहे थे। उनसे कहा गया कि उनकी 'फाइव राइफल्स' की शूटिंग फिल्मिस्तान स्टूडियो में चल रही है और वे स्वयं होटल में बीयर पी रहे हैं? उन्होंने ठहाका लगाकर कहा कि यह आपको किस मूर्ख ने पढ़ाया कि शूटिंग पर निर्देशक का रहना जरूरी है? वे अपने आपको रिमोट कंट्रोल डायरेक्टर कहते थे। उनकी राय थी कि फिल्म निर्माण में डायरेक्टर सबसे बड़ा रोड़ा और बाधक है तथा उसके बावजूद इत्तफाक से फिल्म बन ही जाती हैं। जौहर के मन में स्वांग के लिए बेहद हिकारत का भाव था।
ज्ञातव्य है कि देव आनंद अभिनीत 'जॉनी मेरा नाम' में 'दूजा राम, तीजा राम' उनके ही लिखे दृश्य हैं। गंभीर फिल्म राजेश खन्ना अभिनीत 'सफर' में वे नायिका के बड़े भाई हैं, जो बाजार से बनियों का बही-खाता खरीद लाता है, क्योंकि उसे व्यापारियों पर महाकाव्य लिखना है। ज्ञातव्य है कि 'सफर' कैंसर रोगी नायक की गंभीर फिल्म थी, जिसमें सफलता का 'तड़का' आईएस जौहर ने ही लगाया था। फिल्मफेयर में 'क्वेश्चन बॉक्स' उन्हीं का रचा अत्यंत विटी कॉलम था, जिसका संचालन अाजकल शतरुघ्न सिन्हा कर रहे हैं। आईएस जौहर तो सिन्हा की तरह के पात्र रच सकते थे।