'दंगल' में आमिर खान पिता की भूमिका में / जयप्रकाश चौकसे

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'दंगल' में आमिर खान पिता की भूमिका में
प्रकाशन तिथि :06 मार्च 2015


'चिल्लर पार्टी' जैसीअल्प बजट की सार्थक फिल्म के निर्देशक नीतेश तिवारी की लिखी और निर्देशित 'दंगल' में आमिर खान ने काम करने का फैसला ले लिया है। यूटीवी फिल्म का पूंजी निवेशक है। आमिर ने अपना करिअर ऐसा बनाया है कि उनका किसी फिल्म को अनुबंधित करना ही खबर बन जाता है। 'लगान' से 'पीके' तक उनके विषय चुनाव में दो बातें सामने आती हैं। एक तो यह कि कहानी लीक से हटकर हो और दूसरे उसमें भव्य सफलता की संभावना हो। अपने कहानी चयन के कारण ही अभिनेता का उनका स्वरूप निखरता जा रहा है और वे हर भूमिका के लिए अपने जिस्म को नया रूप देते हैं। 'गजनी' के लिए उन्होंने एक वर्ष तक तैयारी की और 'धूम-3' के लिए भी कई बार शूटिंग स्थगित की, क्योंकि वे अपने शरीर को ढाल रहे थे। वे अपने शरीर को बांसुरी की तरह इस्तेमाल करते हैं कि उसके छिद्र कितनी दूरी पर हो और उसमें से भूमिका की हवा ही सुर बदले। विगत सदी के तीसरे दशक में एक फिल्म का मुखड़ा था 'विरह ने कलेजा यूं छलनी किया, जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो'। भारतीय फिल्मों का गीत-संगीत भी विरल खजाना है, जिसमें मानवीय संवेदनाएं गूंजती हैं। बहरहाल, भारतीय शैली की कुश्ती प्रतियोगिता को दंगल कहते हैं जो अन्य प्रकार के खेल और युद्ध से अलग किस्म के दम-खम की परीक्षा है, जिसमें पहलवान का शरीर ही उसका एकमात्र सम्बल है और दांव-पेंच का भी एक शास्त्र है। दरअसल अखाड़े भारतीय संस्कृति का अनूठा हिस्सा रहा हैं, जिसमें इलाज भी शामिल है। अनेक शहरों में आज भी कुश्ती से संन्यास ले चुके पहलवान मांस-पेशियों और टूटी हड्डियों का भी अकसीर इलाज करते हैं। वे लोग अपने किस्म का एक्यूपंक्चर भी करते हैं। हमारे यहां धार्मिक संप्रदाय के अखाड़े अलग प्रकार के होते हैं, जो कुम्भ मेले में आकर्षण का केंद्र होते हैं। सलमान खान और जॉन अब्राहम दोनों ने ही गामा पहलवान का बायोपिक निरस्त कर दिया है। गामा पहलवान को पाकिस्तान का अवाम भी 'रुस्तमें हिन्द' कहकर संबोधित करता था।

आमिर खान फिल्म में दो कमसिन उम्र की पुत्रियों के पिता की भूमिका कर रहे हैं और वे कभी अखाड़े के पहलवान रहे हैं। हमारे देश में पिता-पुत्र रिश्तों पर बहुत फिल्में बनी हैं परन्तु पिता-पुत्री का रिश्ता लगभग अनछुआ ही रहा है, जिसका मूल कारण यह है कि हम पुत्रों को हथियारों की तरह पालते हैं और पुत्री को सिर पर लटकती तलवार मानते हैं। इसी भेदभाव वाले दृष्टिकोण ने विराट सामाजिक अंधकार को जन्म दिया है। विदेशों में भी स्त्रियों से भेदभाव हमेशा कम या ज्यादा प्रमाण में रहा है परन्तु वहां पिता-पुत्री रिश्ते पर बहुत फिल्में बनी हैं। इस रिश्ते की महीन बुनावट इस तरह भी प्रकट होती है कि पुत्र माताओं के लाड़ले होते हैं और पुत्रियां पिताओं से गहरा स्नेह रखती हैं। क्या यह अतिरिक्त स्नेह मां द्वारा पुत्र को अधिक महत्व देने की प्रतिक्रिया है? यह जरूर होता है कि वृद्धावस्था में पुत्रियां ही माता-पिता की अधिक देखभाल करती हैं और बीमारियों के उन विरल क्षणों में पिता को पुत्री के पीछे खड़ी अपनी स्वर्गीय मां की छवि दिखाई देती है जैसे मैंने पूनम और आनंद मोहन माथुर में देखा।

बहरहाल, आमिर खान की 'दंगल' में पुत्रियों की भूमिकाओं के लिए चयन प्रक्रिया चल रही है और कमल-सारिका की छोटी पुत्री अंतरा हासन, जिसने 'शमिताभ' में बढ़िया अभिनय किया, सबसे अधिक उपयुक्त नजर आती है। इस फिल्म में आमिर खान की पत्नी की भूमिका छोटी ही होगी, क्योंकि पत्नी के मरने के बाद पिता ने ही उन्हें पाला है। एक दूसरी सतह पर 'दंगल' उस सतत जारी युद्ध का भी प्रतीक है, जो भारत में युवतियां अपनी सुरक्षा को लेकर लड़ती रहती हैं और हाल ही में बी.बी.सी की विवादास्पद 'इंडियाज डाटर्स' में दुष्कर्मी को स्वीकार करते दिखाया गया है कि जाहिलों को शाम को घर से बाहर निकली हर युवती दुष्कर्म का निमंत्रण-पत्र लगती है तथा निर्भया प्रतिरोध नहीं करती तो वह इतनी निर्दयता से उसे पीटता नहीं। इस आशय का संवाद चोपड़ा की 'इंसाफ का तराजू' में भी था। यह पुरूष विचार प्रक्रिया को उजागर करता है।