'द डे आय बिकेम अ वुमन" स्त्री के वजूद और आजादी की कश्मकश / राकेश मित्तल

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'द डे आय बिकेम अ वुमन" स्त्री के वजूद और आजादी की कश्मकश
प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2013


ईरान के मशहूर निर्देशक मोहसिन मखमलबफ का नाम सिनेमा की दुनिया में बहुत आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने अपनी बेहतरीन फिल्मों के माध्यम से ईरानी सिनेमा को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किया है। इसके साथ ही उन्होंने युवा एवं उभरते हुए फिल्मकारों को प्रशिक्षित करने के लिए 'मखमलबफ फिल्म हाउस" नामक संस्थान की स्थापना भी की। इस संस्थान ने न केवल नए फिल्मकारों को प्रेरणा, प्रशिक्षण एवं मंच प्रदान किया, बल्कि जहां आवश्यकता पड़ी, वहां संसाधन भी उपलब्ध कराए। मोहसिन की पत्नी मरजिया मेश्किनी और पुत्री समीरा इसी फिल्म हाउस की देन हैं और इन्होंने आगे चलकर कई नायाब फिल्मों से विश्व सिनेमा को समृद्ध किया।

'द डे आय बिकेम अ वुमन" मरजिया मेश्किनी की पहली फिल्म है। इस शुरूआती फिल्म में ही उन्होंने अपनी जबर्दस्त प्रतिभा के सबूत दे दिए थे। फिल्म का निर्माण एवं पटकथा लेखन स्वयं मोहसिन मखमलबफ ने किया है। वर्ष 2000 में प्रदर्शित इस फिल्म का पहला प्रीमियर वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में हुआ, जहां इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके बाद विश्व के अनेक फिल्म समारोहों में अलग-अलग श्रेणियों में इसे ढेरों पुरस्कार मिले।

पूर्वी देशों की महिलाओं को अनेक सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई देशों में तो स्थिति इतनी बदतर है कि सोचकर सिहरन हो उठती है। इस फिल्म में तीन कहानियों के माध्यम से ईरानी महिलाओं की स्थिति को दर्शाया गया है। पहली कहानी होवा (फातिमा चिराग आखर) नामक बच्ची की है, जो अपना नौवां जन्मदिन मना रही है। यह सिर्फ जन्मदिन नहीं, बल्कि उसके बचपन का अंत है। उसकी मां और दादी उसे हिदायत देती हैं कि आज से तुम औरत बन चुकी हो। अब तुम स्कूल के किसी लड़के के साथ नहीं खेल सकती और आज के बाद बुरका पहनकर ही घर से बाहर निकल सकती हो। वह मिन्नात करती है कि स्कूल का उसका 'बेस्ट फ्रैंड", जोकि एक लड़का है, खेलने आने वाला है। चूंकि वह दोपहर में पैदा हुई थी, इसलिए उसे दोपहर बारह बजे तक खेलने की छूट मिल जाती है। बारह बजे जब वह ठीक नौ साल की हो जाएगी, उसे किसी भी कीमत पर घर लौटना होगा, जिसके बाद उस पर तमाम तरह की पाबंदियां लग जाएंगीं।

दूसरी कहानी एक वयस्क शादीशुदा महिला आहू (शबनम टोलूई) की है, जो महिलाओं की एक साइकल रेस में भाग ले रही है। सारी प्रतियोगी महिलाएं समुद्र के किनारे एक सूनी, अंतहीन सड़क पर सर से पांव तक बुरके में ढंकी साइकल भगा रही हैं। आहू उन सबसे आगे है और जीत की तरफ बढ़ रही है। उसका पति घोड़े पर सवार होकर उसका पीछा करते हुए उसे रोकने की कोशिश कर रहा है। वह नहीं चाहता कि आहू उस प्रतियोगिता में भाग ले क्योंकि उसके अनुसार महिलाओं का साइकल चलाना 'कुफ्र" है। वह चिल्लाते हुए आहू को रोकने की कोशिश करता है। आहू गुस्से में और तेज साइकल चलाने लगती है, तो वह एक मौलवी को साथ लाकर उसे तलाक दे देता है। आहू का भाई भी उसके पति के साथ देते हैं।

तीसरी कहानी हूरा (अजीजा सिद्दीकि) नाम वृद्ध महिला की है, जिसे पति के मरने के बाद बेशुमार दौलत मिली है। जब उसे मालूम होता है कि वह उस पैसे का कुछ भी कर सकती है, तो वह उन तमाम चीजों को खरीदना चाहती है जिनके लिए वह जिंदगी भर तरसती रही। इन वस्तुओं की सूची के माध्यम से हम देखते हैं कि इतने अमीर घर में रहकर भी उसकी स्थिति आम महिलाओं की तरह ही बदतर थी। जब वह कहती है कि सबसे पहले मैं फ्रिज खरीदना चाहती हूं क्योंकि जीवन भर मैं ठंडा पानी पीने के लिए तरसती रही हूं, तो दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं।

ये तीन महिलाएं तीन पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और बताती हैं कि पीढ़ियां गुजरने के बाद भी महिलाओं का संघर्ष उतना ही कठिन और उतना ही नया है जितना सदियों से रहा है। अपने वजूद, अस्मिता तथा आजादी के लिए और न जाने कितनी पीढ़ियों तक उन्हें लड़ते रहना होगा। फिल्म का संदेश अलग से चस्पा न होकर उसकी कहानियों की बुनावट में ही अंतर्निहित है। फिल्म में प्रतीकों का बहुत खूबसूरती से उपयोग किया गया है। उदाहरण के लिए, साइकल रेस के दौरान लगता है कि औरतें मानो अपनी जिंदगी से भाग रही हैं। एक तरफ विशाल समुद्र और बाकी तीन तरफ मीलों लंबा रेगिस्तान उनकी विवशता का प्रतीक है। वे कितना ही तेज भाग लें, बचकर कहीं नहीं जा सकतीं। अंतत: उन्हें समर्पण करना ही होगा। एक दृश्य में कैमरा आहू को जूम करते हुए विशाल अनंत की ओर मुड़ जाता है, जहां पृथ्वी, आकाश और समुद्र की असीम गहराई के दर्शन होते हैं। जहां एक नई दुनिया खुलती है, अनंत संभावना की, पूरी आजादी की। तभी क्षितिज से पुरुष घुड़सवार प्रकट होने लगते हैं और उस आजादी को लील लेते हैं। एक अन्य दृश्य में हूरा बेडरूम सेट, डिजाइनर कपड़े, फर्नीचर, टीवी, फ्रिज आदि ढेर सारा सामान मॉल से खरीदकर समुद्र किनारे एक बीच पर जमा देती है, जहां वह खुली हवा में सांस ले सके।

फिल्म खत्म होने पर कई सवाल छोड़ जाती है, जिनके उत्तर हम नहीं दे पाते, या शायद देना नहीं चाहते...।