'द मैंगो गर्ल' वृत्तचित्र का संदेश / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 जून 2013
भागलपुर से मात्र पैंतीस किलोमीटर के फासले पर ग्राम धरहरा में दशकों से यह सामाजिक प्रथा रही है कि कन्या के जन्म पर परिवार वाले दस आम के वृक्ष लगाते हैं और उनके फलों की आय लड़की की शिक्षा और शादी-ब्याह में उपयोग की जाती है। इस विषय पर वृत्तचित्र कुणाल शर्मा ने अमेरिकन निर्माता रॉबर्ट काट के लिए बनाया है और वृत्तचित्र शीघ्र ही दिखाया जाएगा। वर्षों पूर्व नीतीश कुमार के करकमलों से भी आम का एक वृक्ष लगवाया गया था तथा कुछ दिन पूर्व नीतीश कुमार दोबारा वहां गए। स्वयं निर्देशक कुणाल शर्मा भी भागलपुर के हैं और अपने पारिवारिक सिल्क व्यवसाय को बढ़ाने के उद्देश्य से मुंबई आए थे, परंतु यहां फिल्म निर्माण में उनकी रुचि जागी और उन्होंने यह वृत्त चित्र बनाया। यह महान सामाजिक परंपरा कब और कैसे प्रारंभ हुई कोई नहीं जानता, परंतु इससे लाभान्वित होने वाली महिलाओं से निर्देशक ने बात की, जिनमें प्रमुख हैं नीलिमा देवी।
यह विकास मॉडल विशुद्ध भारतीय विकास का मॉडल है और बचपन से ही प्रकृति के प्रति बच्चे संवेदनशील हो जाते हैं। किसी भी सरकारी विकास योजना से यह बेहतर है और इससे प्रकृति का संरक्षण भी होता है, जिससे जलवायु में सकारात्मक परिवर्तन होता है। हमारे नेता जिस आयात किए गए विकास का ध्वज चुनावी कुरुक्षेत्र में अपने रथों पर सगर्व लगाए हैं, उन्हें इस नितांत भारतीय मॉडल का अर्थ समझना चाहिए। आज पूरा देश केदारनाथ-बद्रीनाथ में हुई त्रासदी से दुखी है, परंतु इस त्रासदी को मात्र प्राकृतिक आपदा स्वीकार करने से पहले उस क्षेत्र के विकास का विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए। वहां बनाए गए बांध के लिए डूब में आए क्षेत्र में कितने हजार वृक्ष नष्ट हुए और पर्यटन में सुविधा के लिए पहाड़ों की छाती चीरकर चौड़ी सड़कें बनाते समय कम वक्त में अधिक काम की खातिर कितनी अतिरिक्त बारूद पहाड़ों के पेट में भर दी गई और परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदा को रोकने की उनकी स्वाभाविक क्षमता कम हो गई। यह भी गौरतलब है कि उत्तराखंड की आबादी लगभग एक करोड़ है, परंतु पर्यटन के लिए आने वालों की संख्या करीब ढाई करोड़ है। उनकी सुविधाओं के लिए नियम तोड़कर रहने, खाने-पीने की जगहें बनाई गई हैं, जिसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है। यह संभव है कि विकास का यह आयात किया गया मॉडल प्रकृति के प्रति कितना क्रूर रहा है। दरअसल, इतनी बड़ी त्रासदी के कारणों की विशद वैज्ञानिक जांच आवश्यक है। इसे महज प्राकृतिक कहकर अपनी सुविधा के कालीन के नीचे दफन नहीं किया जाना चाहिए। इस भीषण त्रासदी पर सभी राजनीतिक दलों द्वारा बहाए हुए आंसू मगर के आंसू हैं और हमारी पूरी व्यवस्था में व्याप्त सड़ांध को ही उजागर करते हैं।
ग्राम धरहरा में कन्याएं विवाह के पूर्व अपना पालन करने वाले वृक्ष से विवाह करती हैं और लोकप्रिय मान्यता है कि ऐसा करने से उनका दांपत्य जीवन सुखमय रहता है। कुछ क्षेत्रों में वृक्ष से विवाह सर्पदोष से बचने के लिए किया जाता है। स्वस्थ सामाजिक रीतियों के साथ ही कुछ कुरीतियां भी प्रचलित हो जाती हैं और यही इस मिट्टी का मिजाज भी है। एक लोकप्रिय आधुनिक माने जाने वाले सितारे ने अपनी बहू का वृक्ष से विवाह करवाया था। कुछ क्षेत्रों में विधवाओं का भी वृक्षों से विवाह कराया जाता है। कई गरीब दहेज जैसी कुप्रथा के कारण अपनी पुत्रियों का विवाह वृक्ष से करा देते हैं और इससे मिलते-जुलते विषय पर शबाना आजमी अभिनीत फिल्म भी बन चुकी है। वृक्ष से अनेक किंवदंतियां जुड़ी हैं और पीपल के वृक्ष पर मृत आत्माओं के निवास की बात संभवत: इसलिए प्रचारित की गई है कि लोग उसके साए में मलमूत्र न त्यागें, जो उसकी जड़ों को कमजोर कर देता है। आज भारत में लोकप्रिय विकास करने वाले नहीं जानते कि गगनचुंबी इमारतें और बड़े बांध बनाने के पहले धरती का अध्ययन जरूरी है कि क्या वह इस अतिक्रमण के लिए तैयार है? धरती एक धड़कता दिल है और उसकी स्वीकृति के बिना किसी भी इमारत का निर्माण नहीं होना चाहिए। आज अनेक इमारतें हैं जो सदियों से जस की तस खड़ी हैं, क्योंकि उन्हें धरती की अभिव्यक्ति के तौर पर रचा गया है। अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे बांध बनाए गए हैं, जो आसपास के पांच-दस गांवों को बिजली देते हैं। इनका निर्माण धरती की मौन स्वीकृति से हुआ है।
दरअसल, हमने विकास के नाम पर धरती को लूटा है और विदेशों में इसका वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है - एक शोध का नाम है 'द अर्थ बी प्लंडर्ड'। बड़े बांध के निर्माण की हानि देखिए हॉलीवुड फिल्म 'एमराल्ड आयलैंड' में। बहरहाल, कुणाल शर्मा के वृत्तचित्र का नाम है ' मैंगो गर्ल'। ज्ञातव्य है कि धरहरा में औरतों के खिलाफ अपराध नहीं होते, क्योंकि वहां औरतों के पास आर्थिक सुरक्षा है।