'द सायलेंसेस आफ द पेलेस' महल की खामोश सिसकियाँ / राकेश मित्तल

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सरहद पार सिनेमा: 'द सायलेंसेस आफ द पेलेस' महल की खामोश सिसकियाँ
प्रकाशन तिथि : 14 दिसम्बर 2013


ट्यूनीशिया उत्तरी अफ्रीका के अंतिम सिरे पर स्थित एक छोटा सा देश है जो कई दशकों से अनेक प्रकार की आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक चुनौतियों से जूझ रहा है. हाल ही में सम्पन्न अरब क्रांति की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. फिल्म निर्माण यहाँ दूर की कौड़ी है. उस पर किसी महिला फ़िल्मकार द्वारा फिल्म बनाना असंभव सी बात लगती है. किन्तु यह संभव कर दिखाया ट्यूनीशिया की चर्चित एवं प्रतिभाशाली फ़िल्म निर्देशिका मोफिदा लाटली ने. पेरिस में फिल्म संपादन एवं पटकथा लेखन की बारीकियां सीखने के बाद मोफिदा ने लगभग बीस वर्ष विभिन्न अरब फिल्मकारों के साथ कई महत्वपूर्ण फिल्मों में सहायक के रूप में काम किया. वर्ष १९९३ में उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म " द सायलेंसेस आफ द पेलेस " का निर्देशन किया. इस पहली ही फिल्म ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कर दिया. १९९४ के कान्स फिल्म समारोह में इसे ' डाईरेक्टर्स फोर्टनाईट ' खंड के लिए चुना गया जहाँ इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का क्रिटिक्स अवार्ड प्राप्त हुआ. इसके बाद अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे ढेरों पुरस्कार मिले.

यह ट्यूनीशिया की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से है. कई वर्षों तक ट्यूनीशिया फ़्रांस का औपनिवेशिक हिस्सा रहा है. फिल्म का समय पचास के दशक का है जब वहां फ़्रांस समर्थित राजशाही ख़त्म होने के कगार पर थी और स्वतंत्रता आंदोलनों की शुरुआत हो चुकी थी. यह वहां राजा के महल में काम करने वाली नौकरानी और उसकी लड़की की कहानी है जिसके माध्यम से निर्देशिका ने उस समय की राजनैतिक - सामजिक परिस्थितियों के साथ साथ महिलाओं की विषम स्थिति का बेहद प्रभावशाली तरीके से चित्रण किया है. यह फिल्म हिंसा के विरुद्ध एक सशक्त बयान है. यह हिंसा के विभिन्न रूपों से हमारा परिचय कराती है जिनमें गरीबी, मजबूरी, औपनिवेशिक मानसिकता एवं पुरुष सत्तात्मकता जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है.

फिल्म की नायिका २५ वर्षीया आलिया (घलिया लेक्रोक्स) शादी समारोहों में गीत गाकर अपना जीवन यापन करती है. वह अपने जीवन से निराश हो चुकी है क्योंकि उसका प्रेमी लोफ्टी (सामी बोजिला) जो पिछले दस सालों से उसके साथ रह रहा है, अनेक बार उसका गर्भपात करवा चुका है. वह नहीं चाहता की आलिया उसके बच्चे को जन्म दे. आलिया को सूचना मिलती है की प्रिंस सिदी अली की मृत्यु हो गयी है, जो संभवतः उसका पिता था. प्रिंस के निधन पर संवेदना प्रकट करने वह उसके महल यानि अपने जन्म स्थान पर वर्षों बाद लौटी है. महल में पहुंचते ही बचपन की पुरानीं यादें उसे घेर लेती है. रसोईघर, कमरों, दालानों से गुजरते हुए वह अतीत की गिरफ्त में खो जाती है. उसकी माँ ख़दीजा (आमिल हैदिली) यहाँ की अनेक नौकरानियों में से एक थी जो रसोई में खाना बनाने का काम करती थी. फिल्म अनेक फ़्लैश बैक से गुज़रती हुई के बचपन के दिनों को हमारे सामने लाती है. महल के मर्दों द्वारा उसकी माँ का दैहिक एवं मानसिक शोषण, कमसिन उम्र में स्वयं आलिया का अनेक बार यौन शोषण, बार बार कुरेदने के बावजूद माँ द्वारा पिता के बारे में जिक्र ना करना, महल की वैध-अवैध संतानों के आपसी संबंध आदि कई द्रश्य आलिया की आँखों में तैरने लगते हैं. आलिया के माध्यम से फिल्म एक कंगाल देश में राजाओं के वैभव, विलासिता और शोषण की कहानी कहती है.

फिल्म की हर चीज़ लाज़वाब है. उम्दा कहानी, कसी हुई पटकथा, बेहतरीन प्रस्तुतीकरण, सामयिक वातावरण, सेट्स, कास्ट्यूम, संगीत आदि सभी एक अदभुत सामूहिक प्रभाव उत्पन्न करते हैं. यह फिल्म उस समय के असहिष्णु पुरुष सत्तात्मक अरब समाज में महिलाओं की विवश एवं दयनीय स्थिति का मार्मिक चित्रण करती है. आलिया एक आम स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है और उसका व्यक्तित्व परत दर परत स्त्री स्वाभिमान के खंडित होने की दास्तान है. हालांकि आलिया अब उसकी माँ की तरह गुलाम नहीं है. उसका अपना स्वतंत्र कार्यक्षेत्र एवं कमाई का ज़रिया है. किन्तु एक स्त्री के रूप में वह उसी तरह का जीवन जीने को अभिशप्त है जो उसकी माँ ने जिया था. उसके सामने सिर्फ चेहरे और भूमिकाएं बदली हैं, परिस्थितियां नहीं !!!

फिल्म कई स्तर पर हमें उद्वैलित करती है और ख़त्म होने पर ढेरों सवाल छोड़ जाती है.