'पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात' / जयप्रकाश चौकसे

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'पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात'
प्रकाशन तिथि :18 अप्रैल 2017


यह जानना मनोरंजक हो सकता है कि क्या लंदन में विजय माल्या, ललित मोदी और संगीतकार नदीम (श्रवण के साथी) एक-दूसरे से मिलते हैं और वतन की याद उन्हें सताती है। पाकिस्तान में कुछ लोग अपनी जन्मभूमि की याद में लता मंगेशकर के गाने सुनते हुए टेसुए बहाते हैं जैसे भारत में कुछ लोग हाथ में जाम लिए नूरजहां के गीत सुनते हैं गोयाकि यादों का क्लोरोफॉर्म लिए दर्द की सेज पर कोई प्यार के नगमे गुनगुनाए। आजकल ललित मोदी लंदन के अपने घर में टेलीविजन पर आईपीएल के मैच देखते होंगे और उन्हें लगता होगा मानो उनका पुत्र किसी और का दत्तक हो गया है। क्रिकेट के नाम पर रचा यह तमाशा उन्हीं का आकल्पन था। इसी की वजह से कुछ खिलाड़ी करोड़पति हो गए हैं, अनेक लोग लाभान्वित हुए हैं। सबसे अधिक लाभ शीतल पेय बनानी वाली कंपनियों को हो रहा है।

आईपीएल में करोड़ों रुपए का सट्‌टा प्रतिदिन होता है और बुकी के दर्जनों नौकर सैकड़ों फोन पर बेट लेते हैं। कई बुकी हिल स्टेशन पर रहते हैं, क्योंकि महानगरों में पुलिस को कभी-कभी रस्मी रेड डालनी होती है। सट्‌टे की सारी संरचना अत्यंत चतुराई से रची गई है। टेक्नोलॉजी ने इस उद्योग की बड़ी सहायता की है। मगर सरकार अपने पवित्रता के मुखौटे को उतार फेंके और क्रिकेट जुए को कानूनी मान्यता प्रदान करे तो लाइसेंस देने से अकल्पनीय धन मिल सकता है। वार्षिक आयकर से कहीं अधिक राशि इस स्रोत से मिल सकती है। अधिकतर देशों में खेलकूद पर बाजी लगाना जायज है। हमारे यहां तो द्युतक्रीड़ा का विरोध इसलिए भी है कि युधिष्ठिर इसी तरह के खेल में द्रौपदी को हार गए थे, जो अकेले उनकी पत्नी नहीं थीं। बहरहाल, इससे यह तो सिद्ध होता है कि हजारों वर्ष पुरानी इस महान संस्कृति का ही छोटा-सा हिस्सा रहा है सट्‌टा। मान्यता तो यह है कि सबसे बड़े जुआरी चीनी लोग रहे हैं और इसलिए अंग्रेजी भाषा में मुहावरा है, 'यू डोन्ट हैव इवन ए चाइनामैन्स चांस' अर्थात जीतने की संभावना शून्य है फिर भी जुआरी खेलता है। इस खेल का मेरूदंड जीतना नहीं, वरन हार झलने की क्षमता है। इस तरह क्रिकेट में बाएं हाथ के गेंदबाज की विपरीत दिशा में जाने वाली गेंद को चाइनामैन कहते हैं परंतु इसका आंखों देखा हाल सुनाने वाले इसे गलत परिभाषित करते हैं। इस समय ऐसी ही जमात अपने अल्पज्ञान पर खूब इतरा रही है। राजनीति में राइटिस्ट चाइनमैन डाल रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प राइटिस्ट के प्रतीक पुरुष हैं और अपने अगले चुनाव के लिए उन्होंने चंदा जमा करना शुरू कर दिया है और अमेरिका की राजनीति में सबसे अधिक चंदा एकत्रित करने का रिकॉर्ड उन्होंने पहले पखवाड़े में ही बना लिया है। चंदे की रकम आम आदमियों ने छोटी राशि द्वारा दी है अर्थात उनकी लोकप्रियता आम आदमियों के बीच है। अवाम का मन पढ़ लेने के सारे दावे निरंतर गलत सिद्ध हो रहे हैं। तर्कहीनता एवं बौनापन इस कालखंड की प्रवृत्तियां हैं और लेफ्ट की असफलता और अकर्मण्यता निरंतर रेखांकित हो रही है।

आईपीएल तमाशा अनेक मैदानों पर खेला जा रहा है और उन मैदानों को हरा रखने के लिए जाने कितने करोड़ लीटर पानी का अपव्यय हो रहा है और वह भी उस दौर में जब ग्रामीण क्षेत्र में मीलों दूर से सिर पर मटका रखे महिलाएं पानी ला रही हैं। एक दौर में महाराष्ट्र की अदालत ने पानी के मु‌द्‌दे पर ही विचार करके महाराष्ट्र में यह खेल रोकने का आदेश जारी किया था, जो बाद में जाने कैसे दबाव में बदल दिया गया। जाहिर है कि प्रभावशाली लोग ही इस तमाशे को संचालित कर रहे हैं। क्या सटोरियों की लॉबी इतनी मजबूत है कि पानी के मुद्‌दे को भी निरस्त कर दिया गया है। संवेदनशील लोगों को खामोश रहना चाहिए, अदालत जारी है। यह पहली बार हो रहा है कि किसी भी विरोध का कहीं कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है और मदांध सत्ता मनमानी कर रही है। वर्ष 1946 में चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' मैक्सिम गोर्की की रचना 'लोअर डैम्प' से प्रेरित होकर बनी थी, जिसमें पानी की टंकी पहाड़ी पर है, जिस पर एक धनाढ्य व्यक्ति का कब्जा है। नीचे बसे लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। वह सनकी धनाढ्य गंदगी मिलाकर कुछ पानी बहाता है और उसे पीकर बीमार पड़ने की बात जानते हुए भी अवाम वह पानी पीता है। भूख और प्यास मनुष्य से कुछ भी करा सकती है।

राज कपूर की 'जागते रहो' में भी काम की तलाश में महानगर आया ग्रामीण व्यक्ति पानी पीने े लिए एक बहुमंजिला के अहाते में घुसता है। पूरे घटनाक्रम में वह पानी नहीं पी पाता है। इसी कालखंड में गुरुदत्त की 'प्यासा' का प्रदर्शन हुआ और दोनोें ही फिल्में सांस्कृतिक बीहड़ को प्रस्तुत करती हैं। विगत दो दशकों से चेतन आनंद की बहन के सुपुत्र शेखर कपूर 'पानी' नामक फिल्म बनाना चाहते हैं। कई पूंजी निवेशक आगे आए परंतु फिल्म नहीं बनी। कुछ लोगों का कहना है कि शेखर कपूर के पास केंद्रीय विचार है परंतु पटकथा नहीं है, क्योंकि अभी तक उन्होंने यह किसी को सुनाई नहीं है। क्या यह संभव है कि वे अपने मामा चेतन आनंद की 'नीचा नगर' का ही नया संस्करण बनाना चाहते हैं? मामा पर भांजे का हक तो बनता है।

विशेषज्ञों को भय है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा और वक्त ऐसा भी आएगा कि कहीं पानी नहीं होगा। उस भयावह दौर में पानी केवल मजबूर की आंख में आंसू के रूप में मौजूद होगा और पूंजीपति उस पर भी झपट्‌टा मारेंगे। इस तरह अंधेयुग का सूत्रपात्र संभव है।