'पानी से पानी तेरा रंग कैसा'? / जयप्रकाश चौकसे

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'पानी से पानी तेरा रंग कैसा'?
प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2018


'कौन बनेगा करोड़पति' के 9 नवंबर को प्रसारित कार्यक्रम में राजेन्द्र सिंह मेहमान प्रतियोगी की तरह प्रस्तुत हुए थे। उन्हें 'वॉटरमैन' के नाम से भी पुकारा जाता है। उन्होंने लगभग एक हजार गांवों को पानी संचयन सिखाया है। उन्होंने बताया कि किस तरह गांव वालों को संगठित करके पानी संग्रहित किया जाता है। सूर्य की किरणों से पानी को बचाना आसान नहीं होता। राजेन्द्र सिंह ने हास्य-व्यंग्य के लहजे में कहा कि नेताओं के सिर के ऊपर पानी संचयन करें तो यह संभव है कि संचयन किए पानी के कारण ही सही परंतु साधनहीन वर्ग के लिए उनकी आंख से आंसू तो बहेंगे। राजेन्द्र सिंह के आशावाद को नमन परंतु ये पत्थर पिघल नहीं सकते, हम भले ही 'बेकरार हों, आवाज में असर के लिए।'

उन्होंने यह आशंका व्यक्त की कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। दूसरे विश्व युद्ध में यहूदी लोगों को हिटलर ने बहुत कष्ट दिए। परिणाम स्वरूप दूसरे विश्वयुद्ध के समाप्त होते ही यहूदियों ने अपने लिए एक राष्ट्र की मांग की और पश्चिम के देशों ने इजरायल की स्थापना की। एक अन्याय को दूर करते हुए दूसरा अन्याय यह कर बैठे की उस जमीन पर सैकड़ों वर्षों से फिलिस्तीनी लोग रह रहे थे। विस्थापित लोगों ने इजरायल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा और इस तरह आधुनिक कालखंड में आतंकवाद का प्रारंभ हुआ, जिसका भयावह परिणाम पूरा विश्व भुगत रहा है। प्रचार द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद की गंगोत्री करार दिया जा रहा है परंतु अमेरिका इसका जनक है। अन्याय को अन्याय द्वारा मिटाना ऐसा ही है जैसे आंख के बदले आंख लेते हुए अंधों का विश्व बनाना हो सकता है और अमेरिका अंधों के इस विश्व में आईने बेचने में सफल होगा।

ज्ञातव्य है कि विगत दो दशकों से फिल्मकार शेखर कपूर 'पानी' नामक पटकथा के लिए पूंजी निवेशक खोज रहे हैं परंतु आज तक उन्होंने अपनी पटकथा किसी को सुनाई नहीं। बानगी स्वरूप वे कुछ दृश्य सुनाते हैं, जिनका आपस में कोई संबंध नहीं है। ज्ञातव्य है कि शेखर कपूर आनंद बंधुओं की बहन के सुपुत्र हैं। उनके मामा चेतन आनंद ने 1946 में 'नीचा नगर' नामक फिल्म बनाई थी, जिसका प्रदर्शन पंडित जवाहरलाल नेहरू के सहयोग से संभव हो पाया। इस तथ्य का विवरण श्रीमती उमा चेतन आनंद ने अपनी किताब 'चेतन आनंद द पोएटिक्स ऑफ फिल्म' नामक किताब में किया है। उस किताब में चेतन आनंद व नेहरू के बीच हुए पत्र-व्यवहार को भी प्रकाशित किया गया है। कथासार कुछ इस तरह है कि पानी की टंकी पहाड़ पर है जहां समृद्ध वर्ग की रिहाइश है। नीचे के क्षेत्र में साधनहीन लोग रहते हैं, जिनका शोषण किया जाता है और जब वे विद्रोह करते हैं तो पानी देना बंद कर दिया जाता है। अमीर आदमी की सुपुत्री मजदूर बस्ती के युवा से प्रेम करती है। सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म में भी प्रेम-प्रसंग का होना जरूरी माना जाता है। विशाल वनमानुष को जंगल से पकड़कर शहर में प्रदर्शन करने की थीम पर बनी फिल्म में प्रेम-प्रसंग का अभाव था तो सहायक निर्देशक ने सुझाव दिया कि वनमानुष को शिकारी दल की कन्या से प्रेम हो जाता है। वनमानुष को पकड़कर पानी के जहाज द्वारा लंदन लाया जा रहा है। वह तल मंजिल में कैद है। प्रेमिका का लाल रंग का स्कार्फ हवा में उड़ता है और कैदी वनमानुष के कक्ष में जा पहुंचता है। उसकी चिंघाड़ हृदयद्रावक थी।

बहरहाल, इजरायल ने समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाने की विधा खोज ली है परंतु इस प्रक्रिया में बहुत धन खर्च होता है। पीने के पानी का भंडार इजरायल के पास है। गरीब देश या गरीबी से उभरते हुए देश इस विधा का प्रयोग कभी नहीं कर पाएंगे। युद्ध जर, जोरू या जमीन के लिए नहीं लड़ा जाएगा वरन तेल (पेट्रोल) और पानी के लिए लड़ा जा सकता है। हमारे घुमक्कड़ हुक्मरान भिक्षा पात्र लिए संसार का भ्रमण कर रहे हैं और 'वॉटर मैन' राजेन्द्र सिंह की गुहार उन तक नहीं पहुंच रही है। पानी के प्रबंधन के इस पुरोधा को मंत्री पद देकर काम करने की स्वतंत्रता देना चाहिए। कार्यक्रम में गंगा प्रदूषण की बात भी की गई और राजेन्द्र सिंह ने आशंका व्यक्त की कि भारत के सांस्कृतिक महत्व की प्रतीक गंगा विलुप्त हो सकती है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए फंड में बहुत घपले हुए हैं। आभास होता है मानो भारत की कुंडली में ही गुरु के स्थान पर घपला विराजमान है।