'बनाए न बने,लगाए न लगे' / जयप्रकाश चौकसे

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'बनाए न बने,लगाए न लगे'
प्रकाशन तिथि :26 अप्रैल 2018


अभिनय कितना कठिन काम होता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अनुपम खेर 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' नामक फिल्म में भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका कर रहे हैं, जबकि उनकी व्यक्तिगत आस्था नरेन्द्र मोदी में है। कहते हैं कि मैथड स्कूल के अभिनेता भूमिका की त्वचा में प्रवेश करते हैं गोयाकि जो पात्र अभिनीत करते हैं, उसी की विचार प्रक्रिया को आत्मसात करते हैं। उस पात्र की विचार प्रक्रिया उनके जिस्म और मस्तिष्क की मिक्सी में घूमती रहती है। क्या इस भूमिका को अभिनीत करते हुए अनुपम खेर को अहसास होगा कि उनकी राजनीतिक आस्था गलत खूंटे पर टंगी है?

अनुपम खेर 'मैंने महात्मा गांधी को नहीं मारा' भी अभिनीत कर चुके हैं परंतु उनके राजनीतिक विश्वास गांधीवाद के खिलाफ रहे हैं। उस फिल्म में उनकी सुपुत्री की भूमिका में उर्मिला मातोंडकर ने कमाल का अभिनय किया था। पिता-पुत्रों की तुलना में पिता-पुत्री रिश्ते पर कम फिल्में बनी हैं, क्योंकि हमारे समाज में पुत्र पिता के हाथ में खंजर और पुत्री उसके सिर पर लटकती तलवार की तरह मानी गई है। महिला के प्रति हमारे रवैये का एक हिस्सा यह भी है।

हाल ही में अनुपम खेर अमेरिकन फिल्म 'सिंह इन द रेन' में अपना काम पूरा कर चुके हैं। इस तरह वे डॉलर अभिनेता बनते जा रहे हैं। अब 8 मई से अनुपम खेर 'मिसेज विल्सन' नामक फिल्म में अभिनय करने जा रहे हैं। यह प्रथम विश्वयुद्ध के दौर में एक जासूस और उनकी पत्नी की कहानी है। वह जासूस भी कुछ समय के लिए भारत में गुप्त प्रवास कर चुका है और उसी भाग की शूटिंग की जाएगी। क्या अपने गुप्त प्रवास के लिए लोग भारत को ही इसलिए चुनते हैं, क्योंकि इस देश की भीड़ में व्यक्ति गुमनाम जीवन जी सकता है?

दूसरे विश्वयुद्ध के समय माताहारी नामक महिला जासूस पर भी किताब लिखी जा चुकी है और फिल्म भी बन चुकी है। अगाथा क्रिस्टी जासूसी साहित्य लेखन की महारानी मानी गई हैं। उनके कुछ उपन्यासों में एक उम्रदराज जासूस महिला का पात्र रचा गया है। पात्र का नाम है मिसेज मारपल। उनके अन्य उपन्यासों में जासूस पात्र का नाम हरकुली पायरो है। जब 'जग्गा जासूस' बनाई जा रही थी तब मुझे लगता था कि यह हरकुली पायरो और मिस मारपल पात्रों से प्रेरित है परंतु वह निहायत ही फूहड़ फिल्म साबित हुई। इसी तरह विद्या बालन अभिनीत 'बॉबी जासूस' भी उबाऊ फिल्म बनी थी। राजेन्द्र कुमार के भाई निर्माता नरेश ने राज कपूर और राजेन्द्र कुमार अभिनीत 'दो जासूस' बनाई थी। एक दौर में इब्ने सफी की उपन्यास शृंखला में दो जासूस पात्र थे। एक संजीदा कैप्टन विनोद और दूसरा हंसोड़ हमीद। उस दौर में यह शृंखला अत्यंत लोकप्रिय थी परंतु बाद में पुन: प्रकाशन उतना सफल नहीं हुआ। एक दौर में बाबू देवकीनंदन खत्री को भूतनाथ और चंद्रकांता में जासूस को अय्यार कहा गया था और वे लखलखा सूंघाकर बेहोश करते थे। आज के लखलखे को क्लोरोफॉर्म कह सकते हैं।

इस विधा को पूरी तरह बदलकर रख दिया इयान फ्लेमिंग की जेम्स बांड शृंखला ने। जेम्स बांड अतिआधुनिक उपकरणों का प्रयोग करता है। प्रारंभिक जेम्स बांड फिल्मों में नायक रहे शॉन कॉनेरी, जिन्होंने अपनी अभिनय कला के विस्तार के लिए जेम्स बांड फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था। दूसरे विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद दोनों खेमों के बीच शीतयुद्ध प्रारंभ हुआ। इसी शीतयुद्ध से प्रेरित पात्र है जेम्स बांड जो दुश्मन खेमे को हानि पहुंचाता है, उनके षड्यंत्र विफल करता है परंतु उनकी स्त्रियों के साथ रोमांस करता है। किसी भी प्रकार का युद्ध हो, महिलाएं अवश्य शिकार होती हैं। प्राय: कलाकार आंसू बहाने के दृश्य में शॉट लेने के पहले आंख में ग्लीसरीन डालते हैं। परदे पर दर्शक बहते हुए आंसू देखता है, जो दरअसल ग्लीसरीन है। मीना कुमारी एकमात्र अदाकारा थीं जिसने कभी ग्लीसरीन का उपयोग नहीं किया। निर्देशक शॉट लेता तो वे असली आंसू बहाने लगती थीं। जाने कौन-सी घनीभूत पीड़ा थी उनके हृदय में कि कैमरा प्रारंभ होते ही वे आंसू बहाती थीं। उन्हें आंसू बहाने के लिए दुर्दिन का इंतजार नहीं करना पड़ता था। मीना कुमारी से भी बेहतर अभिनय नीरो ने किया कि रोम जल रहा था और वह अपने आंसू एक पात्र में संचित कर रहा था। कहते हैं कि नीरो बांसुरी बजा रहा था।

अनुपम खेर ने तो अपनी पहली ही फिल्म महेश भट्‌ट की 'सारांश' में एक उम्रदराज पात्र की भूमिका अभिनीत की थी। दूसरी फिल्म 'डैडी' में भी पिता की भूमिका अभिनीत की थी। कुछ वर्ष पूर्व अनुपम खेर ने मुंबई में अभिनय प्रशिक्षण केन्द्र खोला है। इस केन्द्र में तीन महीने का कोर्स है और तीन सप्ताह का भी। जिसके पास जितना धन हो, वह उसमें प्रवेश ले सकता है। आश्चर्य है कि इस गुरु द्रोणाचार्य की संस्था से प्रशिक्षित होकर अभी तक कोई सितारा नहीं बना। एक महान फिल्म चिंतक का कथन है कि अभिनय सीखा नहीं जा सकता परंतु सिखाया जा सकता है। 'मकतबे अभिनय का ढंग निराला है, सबक जिसको याद हुआ, उसे छुट्‌टी न मिली'।