'बैकेट','नमकहराम' और 'सिनेमा का संकट' / जयप्रकाश चौकसे

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'बैकेट','नमकहराम' और 'सिनेमा का संकट'
प्रकाशन तिथि :14 जून 2017


ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'नमकहराम' में मिल मालिक अपने परम मित्र को मजदूर संगठन से जुड़ने और उनका नेता बनाने की योजना पर अमल करता है परंतु मित्र मजदूरों के बीच रहकर उनके दु:ख-दर्द को समझने के बाद अपने मित्र से किए गए करार को तोड़कर जी जान से आंदोलन से जुड़ जाता है। ये भूमिकाएं अमिताभ बच्चन (मिल मालिक) एवं राजेश खन्ना ने अभिनीत की थी। मुखर्जी मोशाय को इस फिल्म की प्रेरणा अंग्रेजी फिल्म 'बैकेट' से मिली थी। बैकेट में राजा की भूमिका रिचर्ड बर्टन व चर्च प्रमुख की भूमिका पीटर ओ टूल ने की थी। हिंदुस्तानी फिल्म में राजा की भूमिका करने वाले अमिताभ बच्चन भारी पड़े थे परंतु 'बैकेट' में चर्च प्रमुख की भूमिका में पीटर ओ टूल भारी पड़े थे।

नोबेल पुरस्कार विजेता टीएस एलियट ने इसी घटना से प्रेरित काव्य नाटक लिखा था 'मर्डर इन द कैथेड्रल' जिसका टेम्परर दृश्य बहुत ही प्रशंसित है। दृश्य में राजा का विरोध करने वाले चर्च नुमाइंदा के पास तीन टेम्परर अथाह धन, ख्याति व सारे ऐशो आराम के प्रलोभन देते हैं कि वह राजा का पक्ष छोड़ दे। बैकेट सारे प्रलोभन ठुकरा देता है और कहता है कि ईश्वर का चाकर बनते ही वह राजा का मित्र नहीं रहा। इस अभूतपूर्व दृश्य में चौथा प्रलोभन देने वाला मंच पर आता है और कहता है कि सारे प्रलोभन ठुकराने का दंभ खोखला है। बैकेट जानता है कि राजा उसकी हत्या कर देगा और शहादत के प्रलोभन से वह मुक्त नहीं है। वह जानता है कि शहीद होने के बाद अनेक वर्षों तक उसकी महानता के चर्चे होंगे, वह पूजा जाएगा, उसके जन्म दिन और निर्वाण दिवस पर लोग मौन रखेंगे। लगभग ऐसी ही बात दार्शनिक सुकरात के साथ हुई कि उसे जहर का प्याला पीने का आदेश देने वाले किसी न्यायाधीश का नाम भी कोई नहीं जानता परंतु सुकरात अमर हो गए हैं गोयाकि प्रलोभन से मुक्ति एक भ्रम है।

भारत का व्यापारी वर्ग अपने असंतोष को उजागर करने के लिए एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करने जा रहा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के सिनेमाघर भी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल 14 जून को करने जा रहे हैं। ये हड़तालें प्रस्तावित जीएसटी करों के खिलाफ हैंं। अनेक राज्यों ने सौ रुपए या उससे कम दर के टिकट पर मनोरंजन कर से मुक्ति दी है परंतु जीएसटी का सौ रुपए तक के टिकट के दाम पर 18 प्रतिशत कर तथा अधिक दाम वाले टिकट पर 28 प्रतिशत कर लगाने से पूर्व में दी गई मुक्ति का कोई अर्थ नहीं रह जाता। इसके साथ ही चार पृष्ठ का एक फार्म सिनेमा मालिक को प्रतिदिन अंतिम शो के बाद भरना है। सारे प्रकरण का सार यह है कि कागजी कार्यवाही बढ़ा दी गई है और प्रधानमंत्री के गुड गवर्नेंस के तथाकथित आदर्श को समाप्त किया जा रहा है। बाएं हाथ से देकर सीधे हाथ से वसूल करने में सरकार ने महारत हासिल की है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं, छात्र वर्ग कम सीटों से परेशान हैं। आज कठिनतम परीक्षा में 93 फीसदी लाने वाले छात्र को भी नहीं मालूम कि उसे कहां दाखिला मिलेगा। सारांश यह है कि मौजूदा व्यवस्था योजनाबद्ध ढंग से प्रतिभा और परिश्रम के मूल्यों को खारिज करती जा रही है और तर्कहीनता के महोत्सव को राष्ट्रीय त्योहार बनाना चाहती है।

कई दशक पूर्व एक सरकारी दल मनोरंजन कर नियमों के अध्ययन के लिए विदेश यात्रा पर गया और हर देश में लोग अचंभित हो गए कि भारत महान में मनोरंजन पर भी कर लगाया जाता है, जो हवा, पानी और भोजन की तरह आवश्यक है। किसी तरह कई प्रांतों ने मनोरंजन कर से मुक्ति दी तो अब जीएसटी में उस पर कर प्रस्तावित है।

यह अपनी जगह सत्य है कि प्राय: फिल्में फूहड़ बनती हैं परंतु हर वर्ष कुछ सार्थक फिल्में भी बनती हैं। आम आदमी के मनोरंजन का प्रिय माध्यम आज भी सिनेमा ही है। महंगाई, अभाव, असमानता व अन्याय भोगता हुआ आम आदमी सिनेमाघर में पलायनवादी फिल्म देखते हुए अपने दर्द को भुलाना चाहता है। अब उसके इस शौक को महंगा बनाकर उसे हम आक्रोश की मुद्रा में सड़क पर लाना चाहते हैं। क्या कोई वैचारिक क्रांति सिनेमा ला सकता है? संभवत: नहीं, परंतु सरकार द्वारा उस पर करारोपण अवश्य भारी हलचल मचा देगा।

चलिए थोड़ी देर के लिए हम सरकार की तरह सोचना प्रारंभ करें जो असंभव है परंतु प्रयास करने पर पाते हैं कि सरकार अपने खजाने को भरना चाहती है ताकि वह अपने प्रचार पर असीमित धन खर्च कर सके। प्रचार उद्योग केअच्छे दिन आ गए हैं। प्रचार ने विचार को नष्ट कर दिया है। इस मन्तव्य में सरकार सफल है। बैकेट के सामने आए चौथे प्रलोभनकर्ता पर गौर करें। हुक्मरान अमर अजर होना चाहता है।

बंगाल की मुख्यमंत्री ने निर्णय लिया है कि बंगाल के सिनेमाघरों का जीएसटी वहां की सरकार चुकाएगी ताकि सिनेमा मालिकों पर अतिरिक्त भार न लगे और सिनेेमाघर बंद होने से बच जाएं। क्या इस बात से अन्य मुख्यमंत्री प्रेरणा ग्रहण करेंगे।