'भाभीजी घर में हैं' शालीन हास्य / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :27 जुलाई 2015
विगत कुछ माह से एंड टी.वी. पर हास्य सीरियल 'भाभीजी घर पर हैं' सफलता से दिखाया जा रहा है। इसके हास्य में अभद्रता व अश्लीलता नहीं है और न ही यह कपिल शर्मा के नारी अपमान पर आधारित है। इसमें लम्पटता के संकेत भी बड़े सूक्ष्म हैं। यह दरअसल मध्यम वर्ग के मोहल्लों के रोजमर्रा के जीवन में सदियों से प्रचलित भाभीवाद पर आधारित है। इन मोहल्लों में प्राय: लोगों का दृष्टिकोण सहानुभूति का होता है और लोग बड़ी चुतराई से 'पड़ोसी की बीबी बहुत संुदर लगती है' और 'गरीब की जोरू सबकी भाभी' जैसी कहावतों को अपने अवचेतन की निचली सतह में ही दफ्न रहने देते हैं।
लक्ष्मण का वह दौर गया जब अपहृत सीता के गले का हार राम उसे दिखाते हैं तो वह कहता है कि उसने तो सीता मां के चरण ही देखें हैं, वह कैसे कहे कि यह हार उनके गले का है। विगत कुछ सदियों से तो 'पड़ोस की बीबी' और 'गरीब की जोरू' वाला ही दृष्टिकोण इस कुंठित समाज में अविरल धारा की तरह प्रवाहित है। मध्यम वर्ग में काम भावना प्रच्छन्न रूप से हमेशा प्रवाहित रही है और हमारे अवचेतन के साझे तंदूर में बहुत नीचे की सतह पर धीमी आंच की तरह सुलगती रहती है। यही है मोहल्लों के भाभीवाद का आधार तत्व परंतु अब तो पहले की तरह मोहल्ले नहीं रहे, हर घर के बीच अपरिचय के विंध्याचल खड़े हैं। छोटे शहरों में जहां समय की बर्फ अत्यंत धीमे पिघलती है वहां आज भी भाभीवाद मचलता है और सच तो यह है कि यह गुदगुदी की तरह निरापद है।
बहरहाल, मौजूदा सीरियल में चार प्रमुख पात्र है और आधा दर्जन सहायक भूमिकाएं हैं परंतु सारे के सारे कमाल के अभिनेता हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है। इनमें अंगूरी का पात्र अभिनीत करने वाली कलाकार इस सीरियल की जान है, उसका अवधी और खड़ी बोली का मेल अत्यंत लुभावना है। इसमें इंस्पेक्टर की भूमिका वाला कलाकार परदे पर आता है तो ठहाका लग जाता है। इसके दोनों पड़ोसी हमेशा एक-दूसरे को कठिनाई में डालने की चेष्टा करते हैं और एक-दूसरे की पत्नियों का दिल जीतने की कोशिश करते हैं। इस तरह के प्लॉट में अभद्रता व अश्लीलता की पतली गलियां हैं परंतु बनाने वालों ने इसे शालीन, मासूम और गुदगुदी करने वाले सीरियल के तौर पर बनाया है। यह शरद जोशी के लिखे 'ये जो है जिंदगी' की श्रेणी का है और उसका 'गरीब पड़ोसी' मान सकते हैं, क्योंकि शरद जोशी जैसी प्रतिभा का धनी कोई नहीं है।
इसके संवादों में बोलचाल के अनेक ऐसे चटपटे शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिनका लगभग लोप हो चुका है। बाजार और विज्ञापन संसार ने आतंकवादी अंग्रेजी की राह सुलभ कर दी है। दरअसल, भाषाएं आक्रमक नहीं होती परंतु लोभ की शक्तियां उन्हें भी हथियार बना देती हैं। ये ही वे शक्तियां हैं, जो ईश्वर के विभिन्न रूपों की वे तस्वीरें जारी करते हैं, जिनमें हर अवतार के हाथ में शस्त्र है। ईश्वर दयावान और अहिंसक है, उसके अनेक रूप मनुष्य की कल्पना है परंतु घृणा के आधार पर धन कमाने वाली अपनी पसंद की छवियां ही जारी करते हैं। श्रीकृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र वाली तस्वीरें उनके हाथ में बांसुरी वाली तस्वीरों से अधिक हैं।
बहरहाल, 'भाभीजी' सीरियल नहीं वरन् सिटकॉम है अर्थात एक स्थायी सेट पर वही पात्र हर अंक में एक पूरी कहानी प्रस्तुत करते हैं। इस कथा की संरचना ओ. हेनरी की कहानियों की तरह है, जिसका अनेपक्षित अंत सारे खेल को बदल देता है। ओ. हेनरी ने चार सौ कहानियां लिखी हैं। ज्ञातव्य है कि ओ. हेनरी का असली नाम पोर्टर था और एक बैंक फ्राड में उसे तीन साल की कैद हुई थी। जेल के सुपरिंटेंडेंट का नाम ओ. हेनरी था तो सजायाफ्ता पोर्टर ने अपने लेखन में अपना नाम ओ. हेनरी रख दिया। यह भी किसी अफसाने से कम नहीं है। कुछ समय पूर्व रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा की एक असफल फिल्म में ओ. हेनरी की दो कथाओं को प्रस्तुत किया गया था।