'मोहे शाम रंग दई दे' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 मई 2017
भारत के कलाकार और सितारा खिलाड़ी वस्तुओं के विज्ञापन से बहुत धन कमाते हैं। वे जिन वस्तुओं का विज्ञापन करते हैं, उनकी गुणवत्ता की जांच नहीं करते। उनका कहना है कि अभिनय उनका व्यवसाय है और विज्ञापित वस्तु के असर, लाभ और हानि को जानना उनका काम नहीं है। वे केवल पटकथा के अनुरूप काम करते हैं, फिर वह कथा फिल्म हो या विज्ञापन फिल्म। इंग्लैंड के सर्वकालिक महान अभिनेता सर ऑलिवर लारेंस ने उस चुरुट के विज्ञापन से भी इनकार कर दिया, जिसे वे स्वयं पीते थे। वे जानते थे कि तम्बाकू सेहत के लिए हानिकारक है। लोकप्रियता के साथ सामाजिक उत्तरदायित्व का वहन आवश्यक है। दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद ने कभी विज्ञापन फिल्मों में काम नहीं किया यद्यपि उन्हें आकर्षक प्रस्ताव मिले थे।
एक दौर में शम्मी कपूर एक पान मसाले का विज्ञापन करते थे तो बड़े भाई राज कपूर ने उनकी जमकर खबर ली। शम्मी कपूर ने अपना बचाव करते हुए कहा कि उनके एक परिचित को इलाज के लिए मोटी रकम की आवश्यकता थी और उसी समय विज्ञापन का प्रस्ताव मिला तो उन्होंने विज्ञापन किया। बड़े भाई ने और लताड़ा कि अपने धन से बीमार की मदद कर सकते थे परंतु पान मसाला के विज्ञापन द्वारा उन्होंने रोगियों की संख्या को अपरोक्ष रूप से बढ़ावा दिया है। आज राज कपूर अपने ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर को प्रताड़ित करते कि उन्होंने एक पान मसाला विज्ञापन फिल्म में काम किया है।
भारत में फिल्म और खेल संसार के सितारों को अपने सामाजिक दायित्व का अहसास नहीं है। शाहरुख खान ने तो बयान भी दिया था कि वे अपने फिल्म अभिनय से प्राप्त धन को अपनी बचत मानते हैं और सारा घर खर्च विज्ञापन द्वारा अर्जित करते हैं। सलमान खान की संस्था बिइंग ह्यूमन भी सहायता का कार्य करती है। शाहरुख खान ने नानावटी अस्पताल में एक वार्ड बनवाया है। दक्षिण भारत के रजनीकांत व्यवस्थित रूप से जन-कल्याण के कार्य करते हैं और उनके प्रशंसकों की संस्था भी जन-कल्याण कार्य में संलग्न रहती है। यह बात सितारों को जान लेनी चाहिए कि चैरिटी के कार्य से वे अपनी लोकप्रियता के क्षेत्र का विस्तार कर सकते हैं और जिसका असर उनकी अभिनीत फिल्मों के व्यवसाय को बढ़ा सकता है। यह एक चक्र है, जिसके घूमते रहने से सबका जीवन सुचारू रूप से चल सकता है।
इस युग में विज्ञापन का मुर्गा बांग नहीं दे तो सूर्य उदय नहीं होगा। एक व्यक्ति ने कैलिफोर्निया की एक दुकान से दस डॉलर में धूप का डिब्बा खरीदा, जिसमें कुछ नहीं था। दुकानदार ने कहा बाहर जाकर देखों इसमें तुम्हें सनशाइन मिलेगा। बेचने की कला का यह स्वर्णयुग है। आजकल भारत में आयुर्वेद के नाम पर बहुत चीजें बेची जा रही हैं और बाबा लोग औद्योगिक घराना खड़ा कर रहे हैं। परंतु यह कोई नहीं जानना चाहता कि जब हमने जंगलों को नष्ट कर दिया है, पहाड़ों को वृक्षहीन कर दिया है, नदियों को प्रदूषित कर दिया है तो जड़ी-बूटी कहां से ला रहे हैं? जितना शहद मधुमक्खियां नहीं बना पाती हैं, उससे अधिक बाजार में बेचा जा रहा है। जादूगर मैनड्रेक का रचा मायाजाल है। इन सबका सरताज ब्रेंड इंडिया बेच रहा है। देश की महानता सामूहिक गीतों में बयान हो रही है, जबकि भूख और लाचारी सर्वत्र व्याप्त है। विकास के सपने ओढ़े, बिछाए और खाए जा रहे हैं। किसी दौर में फिल्म बनाने वालों को ड्रीम मर्चेंट कहा जाता था, आज अवाम ड्रीम ईटर्स हो चुका है, स्वप्न भोगी समाज।
इस बार के आईपीएल तमाशे में उन सभी सितारा खिलाड़ियों ने निराश किया, जो विज्ञापन फिल्मों में अभिनय करते हैं और गैर-सितारा खिलाड़ियों ने दमदार प्रदर्शन किया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि विज्ञापन फिल्में खिलाड़ियों के अवचेतन में बैठ गई हैं और गैर-जवाबदार शॉट खेलते हुए आउट होने पर उन्हें लगता है कि कैमरे के सामने री-टेक किया जा सकता है। मेकअप सामग्री में थोड़ा-सा अंश चूने का होता है, जो त्वचा के महीन छिद्रों से गुजरकर सीधा विचार शैली में पैठ जाता है। चूना पोतने से दीवार पर लगे धब्बे मिट जाते हैं परंतु विचार प्रक्रिया में प्रवेश करने पर सोच की चदरिया दागदार हो जाती है। स्मरण आता है मन्नाडे का गीत, 'लागा चुनरी में दाग, छिपाऊं कैसे, घर जाऊं कैसे।' सूफी परम्परा में चुनरी के प्रतीक बहुत इस्तेमाल हुआ है और फिल्मी गीतों में भी वहीं से आया है। जोकर का गीत था, 'कहीं दाग न लग जाए, कहीं आग न लग जाए।'
आजल संदिग्ध क्रीम के सेवन से रंग गोरा करने का मामला तूल पकड़ रहा है। भारत में गोरे रंग के प्रति आग्रह गहरा है। नीरद चौधरी ने अपनी किताब 'कंटीनेंट ऑफ सिरसे' में लिखा है कि गोरा रंग, नदियां और मेले-तमाशे भारत में बहुत पसंद किए जाते हैं। बेचारी सांवली कन्याओं के विवाह में बहुत दहेज देना पड़ता है। दरअसल, चारित्रिक गुणों को हाशिये में धकेलकर त्वचा के रंग पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हमने यह भी विस्मृत कर दिया कि श्रीकृष्ण सांवले सलोने थे। इस बात पर भी गौर कर सकते हैं कि गौर वर्ण भारत के पहले आक्रामक लोगों का रंग है। भारत श्याम वर्ण ही है। आजकल अनावश्यक मुद्दे उछाले जा रहे हैं ताकि अपनी अकर्मण्यता और असफलता को छिपाया जा सके।