'रईस' और 'काबिल' के आणविक विकिरण / जयप्रकाश चौकसे

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'रईस' और 'काबिल' के आणविक विकिरण
प्रकाशन तिथि :23 जनवरी 2017


अनेक वर्ष पूर्व राकेश रोशन शाहरुख खान और सलमान खान अभिनीत 'करण अर्जुन' फिल्म बना रहे थे और उनके सुपुत्र ऋतिक रोशन सहायक निर्देशक थे। प्राय: निर्देशक शॉट लेने के पहले प्रकाश व्यवस्था देखने के लिए नायक की जगह किसी सहायक निर्देशक को खड़ा करते हैं, क्योंकि टेक्नीकल पक्ष के लिए सितारे को कष्ट नहीं दे सकते। उस दौर में सहायक निर्देशक ऋतिक रोशन शाहरुख खान के स्थान पर खड़े रहकर प्रकाश व्यवस्था के आकलन को अंजाम देते थे । यह कार्य कैमरामैन की सहूलियत के लिए किया जाता है। उस समय ऋतिक रोशन और शाहरुख खान ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनकी अभिनीत फिल्मों का प्रदर्शन एक साथ होगा और वे एक-दूसरे के विपरीत खड़े होंगे। अत: 'रईस' बनाम 'काबिल' विवाद के पीछे का यह इतिहास उन दोनों के ही अवचेतन में मौजूद होगा।

ज्ञातव्य है कि 'करण अर्जुन' के निर्माण के समय शाहरुख खान और सलमान खान शिखर पद की यात्रा प्रारंभ कर रहे थे। आज तो दोनों को लेकर फिल्म बनाई ही नहीं जा सकती। सितारों का यह अहंकार और असहनशीलता केवल भारत में ही देखी जाती है। हॉलीवुड में शिखर सितारों ने अनेक फिल्मों में साथ-साथ काम किया है। हॉलीवुड में 'मैकेनाज़ गोल्ड' जैसी फिल्म में आधा दर्जन शिखर सितारों ने अभिनय किया है। 'बेनहर' 'टेन कमांडमेंट्स' में सितारों की भीड़ मौजूद थी। हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि वेदव्यास की महान रचना 'महाभारत' से प्रेरित फिल्म में शाहरुख और सलमान कर्ण तथा अर्जुन की भूमिका का निर्वाह करेंगे और युवा रणवीर कपूर अभिमन्यु के पात्र में नज़र आएं और दीपिका पादुकोण या प्रियंका चोपड़ा द्रोपदी की भूमिका निभाएं।

फिल्म उद्योग में चतुर फिल्मकार सूर्योदय के समय ही सितारे को साथ लेते हैं जैसे मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा करते थे। सितारे के कॅरिअर की दोपहर में उसके साथ काम करना अत्यंत कठिन हो जाता है और उसके कॅरिअर की संध्या में कोई उसके साथ काम ही नहीं करना चाहता। इसी बॉक्स ऑफिस व्यावहारिकता से फिल्म उद्योग संचालित रहता है।

'रईस' की पृष्ठभूमि गुजरात में शराबबंदी के दौर की है, जब अवैध शराब के दो व्यापारी अपनी व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता को धर्म क्षेत्र में ले गए थे। आजकल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने प्रशासन की पूरी ताकत शराबबंदी अभियान में लगा रहे हैं, जबकि सार्थक शिक्षा द्वारा ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है। शराबबंदी केवल अवैध शराब के व्यापारियों को ही लाभ पहुंचाती है। भारत के राजनेता लाक्षणिक इलाज के स्वांग में ही देश की ऊर्जा का नाश करते हैं। नोट परिवर्तन भी ऐसी ही कवायद थी, जिसने विकास दर को नीचे गिरा दिया है। अगर 'रईस' शराबबंदी के कारण मजबूत हुए अपराध सरगना की कहानी है तो 'काबिल' के दृष्टिहीन पात्र अपनी ईश्वरीय कमतरी के बावजूद सामान्य जीवन जीने की ललक रखते हैं। आज के नेताओं ने इस कालखंड को अंधा युग बना दिया है। अत: इस तरह दोनों ही फिल्में वर्तमान को ही प्रस्तुत करने का प्रयास प्रतीकात्मक ढंग से कर रही हैं।

इस कालखंड की सबसे बड़ी उलटबासी यह है कि समाजवाद का आदर्श सभी देशों में समाप्त हो रहा है और पूंजीवाद की स्थापना हो रही है। राजनीति में 'राइटीस्ट' सत्तासीन है और 'लेफ्ट' हाशिये में ढकेल दिया गया है। अमेरिका के प्रेसीडेंट ने संकीर्णता के युग का शंखनाद किया है। उनका आह्वान है कि अमेरिका में अमेरिकी लोगों द्वारा बनाए गए माल का ही इस्तेमाल हो। यह संकीर्णता अमेरिकी स्पिरिट के ही खिलाफ है। अनेक देशों के प्रतिभाशाली लोगों ने अमेरिका की रचना की है। उनकी प्रयोगशालाओं में यूरोप और भारत के वैज्ञानिक शोध कार्य कर रहे हैं।

अब ट्रम्प महोदय अमेरिका के विकास चक्र को उलटा घुमाने का प्रयास कर रहे हैं। अत: अमेरिका अन-अमेरिकन हो जाए जैसे भारत को गैर-भारतीय बनाने के प्रयास हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को यह ज्ञान ही नहीं कि नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार अमेरिका की एक संस्था ने किया था और संभवत: ट्रम्प का भी उनकी सहोदर कंपनी ने किया है। ट्रम्प के आईने में मोदी और मोदी की कार्यशैली में ट्रम्प को खोज जा रहा है, जबकि दोनों ही बर्बर पूंजीवाद के प्रोडक्ट हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंधा युग रचा जा रहा है। ट्र्प रईस हैं तो मोदीजी भी अंधेयुग का शंखनाद कर रहे हैं। अत: 'रईस' और 'काबिल' फिल्मों के माध्यम से हम बहुत कुछ देख सकते हैं।