'रमैय्या वस्तावैय्या' डमी बोल का माधुर्य / जयप्रकाश चौकसे

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'रमैय्या वस्तावैय्या' डमी बोल का माधुर्य
प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2013


प्रभु देवा की ताजा फिल्म 'रमैय्या वस्तावैय्या' भी उनकी अन्य फिल्मों की तरह उनके द्वारा ही दक्षिण भारत में बनाई फिल्मों का बंबइया संस्करण है, परंतु यह फिल्म 'वॉन्टेड' या 'राउडी राठौर' की तरह नहीं होकर युवा प्रेम-कथा है और रोमियो-जूलियट के वंश की ही है। कहानियों के मनुष्य की तरह वंश होते हैं, परंतु जातियां मात्र दो हैं- सफल फिल्म और असफल फिल्म। कुमार तोरानी और उनके भाई रमेश टिप्स संगीत कंपनी के मालिक हैं और विगत में जिन फिल्मों के संगीत अधिकार उन्होंने खरीदे थे, उनकी रॉयल्टी ही करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष आती है, क्योंकि आजकल टेलीविजन सीरियल में प्रयुक्त फिल्मी गीत के लिए सीरियल निर्माता को लगभग तीस हजार रुपया देना होता है। एमएमवी कंपनी के पास सबसे बड़ा खजाना है और उनकी आय की कल्पना नहीं की जा सकती।

बहरहाल, कुमार तोरानी के सुपुत्र युवा गिरीश इस फिल्म के द्वारा प्रवेश कर रहे हैं और नायिका कमल हासन और सारिका की पुत्री श्रुति सारिका हासन हैं। इसमें रणधीर कपूर नायक के पिता की भूमिका कर रहे हैं। फिल्म का निर्माण एक संगीत कंपनी कर रही है और उन्होंने अपनी फिल्म का नाम राज कपूर की 'श्री 420' के गीत की प्रथम पंक्ति से लिया है। शंकर-जयकिशन-शैलेंद्र की रचना 'रमैय्या वस्तावैय्या मैंने दिल तुझको दिया... तू और था तेरा दिल और था, तेरे दिल में ये मीठी कटारी न थी, याद आती रही, दिल दुखाती रही, अपने मन को मनाना न आया मुझे...' इस धुन का सृजन शंकरजी ने किया था और गीतकार को धुन समझाने के लिए 'रमैय्या वस्तावैय्या' डमी बोल थे। हर गीत में संगीतकार डमी बोल मन से देता है, जिन्हें गीतकार द्वारा दिए गए शब्द आने पर बदल दिया जाता है। इस गीत के सृजन के समय राज कपूर ने इन डमी शब्दों को बदलने से मना कर दिया, क्योंकि इनकी ध्वनि उन्हें मधुर लगी। इनका अर्थ न शंकर को मालूम था, न शैलेंद्र को, परंतु गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। इसी तरह मेहमूद अभिनीत एक फिल्म में भी डमी शब्दों को कायम रखा गया है, 'मुथु कोड़ी कवाड़ी हड़ा..., दिल झूमे जैसे दारू का घड़ा'। शायद पीएल संतोषी ने भी 'सिनसिनाकी बबला बू, आगे मैं पीछे तू' बदला नहीं वरन् फिल्म का नाम भी 'सिनसिनाकी बबला बू' रखा। इस तरह के अनेक प्रसंग हैं। शंकरजी पढ़े-लिखे नहीं थे, परंतु संगीत शास्त्र में प्रवीण थे। एक बार राज कपूर ने नीरज से कहा कि 'ऐ भाई जरा देखकर चलो' बड़े अक्षरों में लिखकर ले जाना। लंबा गीत होने के कारण कई पृष्ठ भर गए और शंकरजी को लगा कि राज कपूर कोई धार्मिक आख्यान बना रहे हैं। राज कपूर ने उनसे फोन पर कहा कि नीरज की आवाज में गीत सुनो और सुर को पकडऩा है। कभी-कभी शंकरजी को डमी शब्द नहीं सूझते तो वे अपशब्दों को डमी की तरह गाते थे। वे सुरीली गालियां बन जाती थीं।

बहरहाल, प्रभु देवा के सिनेमाई स्कूल में नृत्य फाइट की शैली में और एक्शन में नृत्य की शैली शामिल होती है। अतिरेक उनकी विचारशैली का स्थायी भाव रहता है। बहरहाल, इस फिल्म के द्वारा ही गिरीश तोरानी का भविष्य तय होगा। दरअसल, पहली फिल्म सफल होने से आगे का रास्ता सरल हो जाता है, परंतु यह सफलता की गारंटी नहीं है, क्योंकि कुमार गौरव की पहली फिल्म 'लव स्टोरी' बहुत सफल थी, परंतु राजेंद्र कुमार जैसी 'सिल्वर जुबली कुमार' का बेटा फिर कोई सफल फिल्म नहीं दे पाया। यहां तक कि सलीम खान द्वारा लिखी सफल 'नाम' का लाभ भी संजय दत्त को मिला। दूसरी ओर रणबीर कपूर 'सावरिया' नामक हादसे से उबरकर आज अग्रणी सितारा हैं। अत: गिरीश के आगे इम्तिहान और भी हैं तथा यह दुआ की जा सकती है कि वे सफल हों, क्योंकि उद्योग को अनेक युवा सितारों की जरूरत है और उनके पिता कुमार दरियादिल निर्माता हैं तथा प्रचार पर खूब खर्च करते हैं। फिर इस बार तो मामला अपने युवराज का है। अपने पुत्रों में पूंजी निवेश हमेशा किया जाता रहा है।

श्रुति हासन के लिए भी इस फिल्म का सफल होना जरूरी है, क्योंकि मुंबई में अभी तक उनका सिक्का नहीं जमा है। उनके माता-पिता दोनों ही प्रतिभाशाली हैं, परंतु इस क्षेत्र में वांशिक पक्ष काम नहीं करता। तोरानी ंधु संगीत पारखी लोग हैं, अत: उन्होंने फिल्म के संगीत पक्ष पर ध्यान दिया होगा। फिल्म १९ जुलाई को प्रदर्शित होने जा रही है।

क्या निर्माता ने फिल्म की नामावली में शंकर-जयकिशन-शैलेंद्र को धन्यवाद दिया है? हमारे यहां प्राय: इस तरह का शुकराना अदा नहीं किया जाता। आप किसी भी आधुनिक युवा से उसके दादा, परदादा का नाम पूछकर देखिए तो आपके सामने कई अचरज आएंगे। प्राय: परदादा का नाम लोग नहीं बता पाते। १९४४ में भारतीय फिल्म के जनक दादा फाल्के की मृत्यु हुई और मात्र 31 वर्षों में उद्योग उन्हें भुला चुका था। कोई भी फिल्मवाला उनकी शवयात्रा में शामिल नहीं हुआ था। याद आता है संगीतकार शंकरजी की शवयात्रा में केवल राज कपूर, उनका परिवार और राजेंद्र कुमार ही शामिल थे। उनकी धुनों पर थिरकने वाले पैर शवयात्रा की ओर नहीं गए। हम लोग बारातों में जाते हैं, शवयात्रा से दूर रहते हैं।