'राहों के दिए आंखों में लिए चलता चल' / जयप्रकाश चौकसे

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'राहों के दिए आंखों में लिए चलता चल'
प्रकाशन तिथि : 27 सितम्बर 2019


फिल्म 'छिछोरे' इतने अधिक दर्शकों को आकर्षित कर रही है कि 'जोया फैक्टर' जैसी रोचक फिल्म को दर्शक नहीं मिल पा रहे हैं। टाइटल से आभास होता है मानो यह हास्य फिल्म है या युवा वर्ग की मौज मस्ती की फिल्म है परंतु फिल्म में एक सामाजिक कमतरी का खुलासा किया गया है। वर्तमान समाज किसी भी कीमत पर सफलता साधना चाहता है। उसे साधनों की पवित्रता का ध्यान ही नहीं है। बस येन केन प्रकारेण सफलता प्राप्त करना है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए अगर लोगों के सिरों पर पैर रखकर चलना पड़े तो यह हिंसा भी जायज है। समाज को दो वर्गों में बांट दिया गया है- सफल वर्ग एवं असफल वर्ग। जाति प्रथा से बंटा हुआ समाज अब और अधिक बंट चुका है। अंग्रेजों ने भारत को बांटकर दो सौ वर्ष तक राज किया। वर्तमान में भी उसी राह पर चला जा रहा है। 'छिछोरे' फिल्म संदेश देती है कि सफलता और विफलता जीवन के अनिवार्य अंग है। असफलता से हतोत्साहित होना कतई जरूरी नहीं है। हमारी शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली से जीवन के आदर्श मूल्यों को खारिज कर दिया गया है और गला-काट प्रतिद्वंद्विता को धर्मयुद्ध की तरह बना दिया गया है।

फिल्म 'लव आज और कल' के प्रारंभिक दृश्य में ही नायक दावत के सामान के लिए मित्रों से मिलता है। मित्र जानना चाहते हैं कि उत्सव किस कारण मनाया जा रहा है। वह जवाब देता है कि उसने अपनी पत्नी को तलाक दिया है। पत्नी का कोई दोष नहीं था। वह कर्तव्यपरायण, सुंदर और नेक महिला रही परंतु ऊब के कारण पति ने तलाक दे दिया। कल यह भी संभव है कि कोई व्यक्ति ऊब से मुक्त होने के लिए कत्ल कर दे। समाज सनसनीखेज कार्यों का लतियल हो गया है। क्या सामान्य जीवन बिताना अब एक अपराध है? हर काम में थ्रिल खोजना मनुष्य के भीतरी खोखलेपन को उजागर करता है।

पाठक को चौंकाने के लिए कह सकते हैं कि यह समय खोखली गहराइयों का समय है। विरोधाभासी शब्दों के साथ में इस्तेमाल करने से पाठक को चौंकाया जा सकता है परंतु उसकी स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को तीव्र नहीं किया जा सकता है। 'छिछोरे' का कुछ साम्य राजकुमार हिरानी की 'थ्री इडियट्स' से है परंतु यह प्रकरण नकल का नहीं है। 'छिछोरे' एक मौलिक रचना है। एक प्रतिभाशाली हॉकी खिलाड़ी रेफरी के एक निर्णय से खफा था। खेल के अगले चरण में वह सभी खिलाड़ियों को चकमा देते हुए गोलपोस्ट तक पहुंचता है। गोलकीपर को भी थका देता है परंतु गोल नहीं मारता। उस रेफरी की ओर देखते हुए वह गेंद को मैदान के बाहर की ओर धकेल देता है। 'छिछोरे' के पात्र भी जीत को सुनिश्चित करने के बाद भी जानबूझकर हार जाते हैं।

एअन रैंड के उपन्यास 'फाउंडेनहेड' में सर्वत्र व्याप्त निम्नस्तरीय मीडियोक्रिटी से नाराज नायिका डोमनिक अपने दौर के सबसे घटिया व्यक्ति से विवाह कर लेती है। उस घटिया व्यक्ति से विवाह करके वह स्वयं को दंडित कर रही है, क्योंकि घटियापन के 'स्वर्णकाल' में जन्म लेने का दंड उसे भोगना ही चाहिए। कुछ समय बाद सनसनीखेज परंतु समाज के नैतिक उत्थान के खिलाफ खड़े एक मीडिया बादशाह को डोमनिक अच्छी लगती है। वह उसके पति को खूब धन कमाने का अवसर देकर उसी की रजामंदी से उसकी पत्नी से विवाह कर लेता है। डोमनिक का अपना तरीका है घटियापन के प्रतिवाद का। यह उपन्यास कहता है कि जीवन में केवल तीन सद्‌गुण है-योग्यता, कार्य के प्रति समर्पण और मौलिकता। एक मायने में यह उपन्यास अवाम विरोधी रचना है। क्या उन साधारण लोगों को जीने का अधिकार नहीं, जिनके पास विशेष योग्यताएं नहीं हैं? सफलता के मंत्र का जाप करने वाले कालखंड में 'छिछोरे' एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। गौरतलब है कि पूजा व आरती शेट्‌टी की 'जोया फैक्टर' भी परिश्रम और प्रतिभा को आदर देते हुए लकी मस्केट नामक भ्रम को ध्वस्त करती है।