'लय भारी' कहां नुकसान कर सकती है? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2014
साजिद खान के हादसे 'हमशक्लस' में काम करने से मन ही मन पशेमान रितेश देशमुख उस अपराध बोध से मुक्त हो गए 'एक विलेन' में अपने शानदार अभिनय के जरिए आैर कुछ ही दिनों के अंतराल में उनके द्वारा निर्मित तथा अभिनीत मराठी भाषा की फिल्म 'लय भारी' की सफलता ने उन्हें खूब धन आैर सम्मान दिलाया है। आमतौर पर मराठी भाषा की फिल्में लगभग एक करोड़ रुपए की लागत में बन जाती है, कुछ सार्थक फिल्में पचास-साठ लाख में भी बनी हैं। रितेश देशमुख ने मराठी भाषा में बनी फिल्मों के लोगों को हैरानी में डालकर लगभग दस करोड़ रुपए की लागत से 'लय भारी' बनाई है आैर इसके एक्शन तथा नृत्य दृश्यों के लिए हिन्दुस्तानी में अखिल भारतीय प्रदर्शन के लिए बनने वाली बड़े बजट के विशेषज्ञों की सेवा इस फिल्म के लिए ली आैर फिल्म मुख्यधारा की बड़े सितारों वाली फिल्मों की तरह ही भव्य लगती है। फिल्म की तकनीकी गुणवत्ता भी प्रथम श्रेणी की है। फिल्म का पार्श्व संगीत भी भव्य फिल्म के अनुरूप है आैर पूरा ध्वनि पट्ट ही कुशलता से गढ़ा गया है।
पंढरपुर की तीर्थ यात्रा फिल्म की कहानी का केंद्र है आैर पंढरपुर की यात्रा के दृश्य संभवत: यथार्थ की यात्रा से अधिक भव्य दिखाई पड़ते हैं आैर विठोबा का प्रार्थना गीत आसमान तक गूंजता लगता है। फिल्म का प्रारंभ आैर अंत दोनों इसी महान श्रद्धा यात्रा में घटित होते हैं। कथा का सार भी यह ही है कि विवाह के नौ वर्ष तक निसंतान रहने वाली धनाढ्य परिवार की बहु पुत्र कामना के लिए लगभग 80 मील पैदल यात्रा करती है आैर भावावेग में यह वचन भी देती है कि वह पुत्र विठोबा को समर्पित कर देगी।
उसके पति के हृदय में गरीबों के लिए अपार करुणा है परंतु धार्मिक प्रवृित्त का होने के बाद भी उसे यह अविश्वसनीय लगता है कि प्रार्थना से प्राप्त पुत्र प्रसाद के रूप में देव को ही समर्पित किया जाए। बहरहाल वह स्वयं आैर उसका पुत्र उसके खलनायक भाई आैर भतीजे द्वारा कत्ल कर दिए जाते हैं आैर अपमानित की गई पत्नी पंढरपुर जाती है जहां उसे अपना जुड़वां पुत्र मिल जाता है, कथा का यह रहस्य बाद में उजागर किया गया है कि उसे हमशक्ल जुड़वां हुए थे आैर उसने अपने संकल्प के अनुरूप एक देवता को समर्पित किया था आैर यही उपेक्षित पुत्र खलनायकों का नाश करता है। रितेश ने यह डबल रोल किया है। दरअसल निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने इस कथा को सलमान खान के साथ बनाने के लिए दस वर्ष पूर्व लिखा था आैर सलमान ने इसमें एक दृश्य वाली मेहमान भूमिका अभिनीत की हैं। रितेश देशमुख अमेरिका से आर्किटेक्ट बनने की शिक्षा लेकर लौटे परंतु अभिनय क्षेत्र उनकी प्राथमिकता था। अनेक बेढंगी हास्य फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया आैर प्राय: स्त्री रूप भरने वाली फिल्में भी की आैर उस समय यह अनुमान लगाना कठिन था कि केवल वह इतना मंज जाएगा कि 'विलेन' आैर लार्जर देन लाइफ दोनों भूमिकाएं विश्वसनीय ढंग से निभाएगा तथा बतौर निर्माता मराठी भाषा में उसने अपनी दो फिल्में सामाजिक सोद्देश्यता वाली बनाई 'बालक-पालक' आैर 'यलो'।
मराठी भाषा में प्राय: सार्थक फिल्में बनी हैं, साथ ही कोंडके-नुमा फूहड़ फिल्में भी बनी हैं। मुंबई तथा पूना में सार्थक फिल्में अच्छा व्यवसाय करती है आैर मसाला फिल्में शेष महाराष्ट्र में। शोलापुर- कोल्हापुर क्षेत्र में मसाला फिल्में धमाल मचा देती है। बहरहाल रितेश देशमुख एक धनाढ्य व्यक्ति है आैर अपनी मातृ भाषा में उनसे सामाजिक सोद्देश्यता वाली फिल्मों की ही आशा की जाती थी आैर उन्होंने प्रारंभ भी वैसा ही किया था परंतु 'लय भारी' एक विशुद्ध फॉर्मूला फिल्म है जिसमें मुख्यधारा सिनेमा के सारे पैंतरों को आजमाया गया है गोयाकि सफलता को सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। यह संभव है कि वे हिन्दुस्तानी सिनेमा में भी एकल नायक मसाला सितारा बनना चाहते हैं आैर उसी की तैयारी का 'लय भारी' एक हिस्सा है। वह अपने कॅरिअर को एक भवन की तरह गढ़ रहा है।
लार्जर देन लाइफ चरित्र अर्थात ऐसा नायक जिसे अग्नि जला नहीं सकती, जल डुबा नहीं सकता, वायु उड़ा नहीं सकती। वह सौ पचास को अकेला मार सकता है। उसके पेट में चाकू घुसा हो तब भी वह मारता है। यह मसाला सिनेमा का 'स्थायी' भाव हमेशा रहा है। यह आश्चर्य की बात है कि मुख्यधारा का यह पलायनवादी फॉर्मूला तमाम क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों में घुसपैठ कर गया है। सत्यजीत रॉयके बंगाल में पैर पसार चुका है आैर मराठी में अब यह भव्य बजट में बनाया गया है तथा इसकी सफलता मराठी में बनी सार्थक फिल्मों के लिए खतरा है। दरअसल मुख्यधारा सर्वथा सितारा केंद्रित है आैर अपनी बड़ी लागत के कारण इसमें प्रयोग नहीं किए जा सकते, इसलिए क्षेत्रीय सिनेमा के सीमित बजट में प्रयोग संभव रहे हैं आैर बड़े बजट तथा भव्यता के प्रति घोर आग्रह सिनेमा से सार्थकता को खारिज करते हुए माध्यम को भी अर्थहीन कर सकता है। लीक से हटकर साहसी कहानियों को शांताराम मराठी आैर हिन्दी दोनों में इस विश्वास के साथ बनाते थे कि मराठी संस्करण की सफलता हिन्दी की लागत भी निकाल लेगी। लार्जर देन लाइफ चरित्र अवतार अवधारणा का ही सिनेमाई संस्करण है आैर समाज की हताशा का संकेत देता है।