'व्यवस्था हिलती नहीं, बंदूकें चलती नहीं' / जयप्रकाश चौकसे

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'व्यवस्था हिलती नहीं, बंदूकें चलती नहीं'
प्रकाशन तिथि : 24 अगस्त 2019


बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के दाह संस्कार पर उनके सम्मान में नियमानुसार इक्कीस बंदूकों की सलामी दी जानी थी परंतु वे बदूकें चली ही नहीं। संबंधित अधिकारी निलंबित कर दिए गए हैं। प्राय: पुलिसथानों पर बंदूकें रखी होती हैं और भीड़-तंत्र में व्यवस्था भंग होने पर बंदूकों की आवश्यकता होती है परंतु वे भी नहीं चलती हैं। पूरी व्यवस्था ही इन बंदूकों की तरह हो गई है। उस अंतिम संस्कार के समय मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुतमइन हैं कि उन्होंने शराब बंदी लागू कर दी है गोयाकि सुशासन कर रहे हैं। अवैध शराब धड़ल्ले से बिक रही है परंतु उनका खयाल है कि इन बोतलों में जल है।

फिल्म की शूटिंग में उपयोग की गई लकड़ी की बंदूकें गरजती हैं। यह फिल्म के ध्वनि रिकॉर्ड करने वाले का कमाल है। फिल्म उद्योग में ध्वनि का गोदाम होता है, जहां से आवश्यकतानुसार ध्वनि ले ली जाती है। फिल्म बनाते समय जिस पात्र को गोली लगती है, उसके पहने हुए वस्त्र के नीचे लाल रंग से भरा गुब्बारा होता है, जिसे पिन लगाते ही लाल रंग वस्त्र पर फैल जाता है।

दक्षिण भारत के फिल्मकार शंकर अपनी फिल्मों में अतिरेक के लिए जाने जाते हैं। उनके नायक का पूरा शरीर अनगिनत बंदूकों से लैस होता है और जहां एक गोली से काम चल जाता, वहां सैकड़ों गोलियां दागी जाती हैं। फिल्मकार आईएस जौहर अपनी फिल्मों में फिल्म निर्माण प्रक्रिया का मखौल उड़ाते थे। उनकी फिल्म 'पांच राइफल' में नारी पात्र गोलियां दागते हैं। उन सुंदर कन्याओं के आंख मारने से भी आशिक मिजाज व्यक्ति मर सकता था परंतु टाइटल को न्यायसंगत ठहराने के लिए पात्रों के हाथ में बंदूक देना जरूरी था।

एक बार वे 'सन एंड सैंड' नामक होटल में शराबनोशी कर रहे थे। उस समय एक स्टूडियो में उनकी फिल्म की शूटिंग जारी थी। पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण की किसी किताब में यह नहीं लिखा है कि शूटिंग के समय फिल्मकार का स्टूडियो में मौजूद होना आवश्यक है। उनके सहायक उनके निर्देशानुसार शूटिंग कर लेते हैं। सहायक निर्देशक भी पुलिस थानों में रखी बंदूकों की तरह होता है।

अपनी पहली फिल्म 'आग' से लेकर आखिरी फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' तक राज कपूर के सहायक निर्देशक रहे व्यक्ति के बारे में उनसे पूछा गया कि इस व्यक्ति को निर्देशन का अवसर क्यों नहीं दिया जाता तो उन्होंने जवाब दिया कि यह सबसे सक्षम प्रमुख सहायक है परंतु स्वतंत्र अवसर प्राप्त होने पर यह फिल्म नहीं बना पाएगा। राज कपूर के सहायकों में केवल राहुल रवैल, अनीस बज्मी और रवींद्र पीपट ही सफल निर्देशक बन पाए। अनीज़ बज़्मी निर्देशित ताज़ा फिल्म 'पागलपंती' 21 नवंबर को प्रदर्शित होने जा रही है।

कमल हासन की फिल्म 'हे राम' के एक दृश्य में एक बंदूक को नारी में बदलते हुए दिखने का एक दृश्य था। यह फिल्म महात्मा गांधी की हत्या को कमल हासन के नज़रिये से प्रस्तुत करने का एक फैनेटिक प्रयास था। एकाधिक विवाह के पश्चात भी कमल हासन नारी को समझ नहीं पाए।

हर फिल्मकार का नारी और बंदूक पर अपना स्वतंत्र नज़रिया होता है। दस्यु समस्या को अहिंसा के मार्ग से सुलझाने के विषय पर बनी फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' के एक दृश्य में दस्यु कन्या प्रेमल स्वभाव के नायक को बंदूक चलाना सिखाती है। बहुत असुविधा से नायक बंदूक पकड़ना सीख रहा है। नायिका ने उसे दूर रखी खाली बोतल पर निशाना साधने को कहा तो उसके कंधे पर रखी बंदूक तनिक ऊपर की ओर उठ गई। नायिका पूछती है कि उसे बोतल नज़र आ रही है? वह कहता है कि उसे तो निशाना साधने की दूरबीन से फूल ही फूल नज़र आ रहे हैं। बिना लाइसेन्स के बंदूकों की संख्या सरहद पर तैनात फौजियों की बंदूकों की संख्या के बराबर होने जा रही है।