'शोखियों में घोला जाए गुलाब का शबाब...' / जयप्रकाश चौकसे

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'शोखियों में घोला जाए गुलाब का शबाब...'
प्रकाशन तिथि :08 फरवरी 2018


राजकपूर की फिल्म 'प्रेम रोग' और यशराज चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' में एम्सटरडम के ट्यूलिप फूलों के विशाल बागों में शूटिंग की गई थी। इन फिल्मों के प्रदर्शन के बाद कश्मीर में इन फूलों के बाग लगाए गए। एशिया के देशों में गुलाब खिलते हैं और यूरोप की आबोहवा ट्यूलिप उगाने के लिए मदद करती है। कुछ समय पूर्व एम्सटरडम में ट्यूलिप की मांग घट जाने पर व्यापारी समूह ने बाजार से सारे फूल हटा लिए और उन्हें हिफाजत से उन गोदामों में रख दिया जहां वे तरोताजा रह सकते हैं। सूने बाजारों का भावुक असर यह हुआ कि अधिक दामों में फूलों की मांग से बाजार चमक गया। मनुष्य की चाहत अनउपलब्ध के लिए बढ़ जाती है। इसीलिए प्रेमिका से विवाह होते ही पति आश्वस्त होकर उसके प्रति लापरवाह हो जाता है। सुखी विवाहित जीवन के लिए यह आवश्यक है कि पत्नी को प्रेमिका की तरह हमेशा मानते रहिए। भारत में कोल्ड स्टोरेज व्यवसाय अपनी शिशु अवस्था में है। कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं बढ़ जाए तो धरती इतनी उर्वरक है कि कोई भूखा नहीं रहेगा परन्तु भूख को बनाए रखना सत्तासीन बने रहने के लिए आवश्यक है। उधर साधनहीन व्यक्ति भूख को बड़े प्यार से पालता है गोयाकि एक वर्ग भूख को लालच के लिए पालता है और दूसरा अभाव को प्रेम से सहता है।

पूरे विश्व में वेलेन्टाइन दिवस मनाया जाता है और उसके महत्व को प्रतिपादित करने वाली कई कहानियां हैं। एक कथा इस तरह है कि एक जेलर रोम की जेल में बंद निरपराध क्रिश्चियन लोगों को जेल से भागने में मदद करता था और पकड़े जाने पर उसे चौदह फरवरी 269 में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। आगे की कथा में जेलर की सुपुत्री को भगाकर एक युवक ले गया और उसने जेलर को पत्र भेजा जिसके अंत में लिखा था विनीत 'वेलेन्टाइन'। रोम के सम्राट का आदेश था कि फौजी विवाह नहीं करें क्योंकि विवाह से शरीर की शक्ति घटती है। इस तर्कहीनता के खिलाफ विद्रोह को भी वेलेन्टाइन से जोड़ा जाता है। बहरहाल यह मान्यता है कि वेलेन्टाइन वह पादरी था जिसने राजा की आज्ञा के विरुद्ध शादियां कराई थीं और उसकी शहादत के दिन 14 फरवरी को पूरे विश्व में वेलेन्टाइन दिवस मनाया जाता है। बहरहाल कहानियों की भूल भुलैया में नहीं उलझकर हम प्रेम करें।

बहरहाल खाप पंचायतें भी प्रेम विरोधी रही हैं और सत्ता बनाम प्रेम सतत जारी रहने वाली जंग है। प्रेम का विरोध इसलिए भी होता है कि प्रेम मनुष्य को अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में उजागर होने का अवसर देता है। जीवन के बंद, अंधेरे और सीलन भरे कमरे में प्रेम एक खिड़की है जिससे रोशनी और प्रकाश भीतर आता है। अंधेर और अंधेरों के हुक्मरान प्रकाश से डरते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि शकील बदायूंनी का 'मुगले आज़म' का गीत 'प्यार किया तो डरना क्या' इतना अधिक लोकप्रिय रहा है।

इस वर्ष वेलेन्टाइन सप्ताह में गुलाब के फूलों की कीतम इतनी बढ़ सकती है कि एक गुलाब पचास रुपए में मिले। अत: गरीब प्रेमी को चाहिए कि वह गुलाब की एक तस्वीर फेसबुक इत्यादि के माध्यम से प्रेमिका को प्रेषित कर दे। दरअसल महंगाई के दौर में भी प्रेम सस्ते में अभिव्यक्त किया जा सकता है। कड़की के आलम में कल्पनाशक्ति में इजाफा हो जाता है। प्रेम सच्चा हो तो नितांत एकाकीपन की अवस्था में भी आलिंगन का अनुभव महसूस किया जा सकता है और पूरा कक्ष गुलाब की सुगंध से भर जाता है। हुकूमत तो चाहती है कि लोग काल्पनिक रोटी खाएं और काल्पनिक आलिंगन में मदहोश होकर सारी कमियों को भूल जाएं। फाकाकशी प्रेमियों की गिज़ा होती है।

के. आसिफ की 'मुगले आज़म' में शहजादे सलीम के जंग से लौटने की खुशी में एक जलसा किया जाता है जिसमें उनसे मन ही मन प्रेम करने वाली दो महिलाएं कव्वाली द्वंद्व में हिस्सा लेती हैं। शहजादा सलीम एक विदुषी को गुलाब का फूल भेंट करता है और दूसरी को कांटा देता है। कांटा पाने वाली खुश है कि कांटा कभी मुरझाता नहीं जबकि फूल मुरझा जाता है। यह अजब दौर है कि गेहूं, चावल या ज्वार की खेती से अधिक गुलाब उगाने पर जोर दिया जा रहा है। केश क्रॉप के फेर में असल आवश्यक फसलों की खेती कम होती जा रही है।

गुलाब की पंखड़ियों से गुलकंद बनता है जिसे खाने से शरीर स्वस्थ बना रहता है। ग्रीष्म ऋतु में गुलकंद खाने से शरीर में ठंडक आ जाती है। क्या यह संभव है कि इस वेलेन्टाइन पर प्रेमी अपनी प्रेमिका को गुलाब के बदले गुलकंद भेंट करे। बाजार और विज्ञापन की ताकतों ने वेलेन्टाइन कार्ड्स की बिक्री बढ़ा दी है। कार्ड्स पर भांति भांति के प्रेम संदेश लिखे होते हैं। ग्रीटिंग कार्ड्स का व्यापार फल फूल रहा है। अब प्रेम-पत्र लिखने की कला का विलोप हो चुका है। नए त्यौहार मनाए जा रहे हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं है परन्तु पारम्परिक उत्सवों की चमक घर कर गई है जो चिन्तनीय माना जाना चाहिए। हृदय में उमंग हो तो सारे दिन ही उत्सव की तरह बन सकते हैं।

विगत किसी लेख में चार्टर्ड अकाउन्टेंट के विषय में लिखे एक वाक्य से यह बिरादरी आहत हुई है जिसका मुझे खेद है। आशा करता हूं कि इस त्रुटि को वे मेरी बैलेन्स शीट से हटा देंगे। हर व्यवसाय में अच्छे-बुरे लोग होते हैं। पत्रकारिता में भी गिरावट आई है। मूलभूत मुद्दों से हम भटक जाते हैं। तुलसीदास ने 'मानस' में लिखा 'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी'। अब एक वाक्य के कारण 'मानस' का तिरस्कार नहीं किया जा सकता।