'शोले' सिप्पी की 'भरवां मिर्च' / जयप्रकाश चौकसे

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'शोले' सिप्पी की 'भरवां मिर्च'
प्रकाशन तिथि : 06 जनवरी 2020


रमेश सिप्पी की ताजा फिल्म 'शिमला मिर्च' के प्रति दर्शकों ने उत्साह नहीं दिखाया। दरअसल हेमा मालिनी अभिनीत यह फिल्म कुछ वर्ष पूर्व ही पूरी बन चुकी थी, परंतु कोई वितरक प्रदर्शन का जोखिम नहीं उठाना चाहता था। हिंदुस्तानी सिनेमा में 'शोले' इतनी सफल रही थी कि फिल्म इतिहास 'शोले के पहले' और 'शोले के बाद' के खंड में विभाजित करके देखा जाने लगा था। रमेश सिप्पी ने वर्तमान के कुछ कलाकारों को फिल्म में जोड़ने के लिए कुछ दिन शूटिंग की। इस तरह पुरानी कड़ी को पुनः उबाला गया। बाजार में इस तरह के माल का खपाना कठिन होता है। एक दौर था कि फिल्म उद्योग के लोकप्रिय सितारे रमेश सिप्पी के पीछे भागते थे, परंतु आज रमेश सिप्पी के साथ काम नहीं करना चाहते।

गुरु दत्त की 'कागज के फूल' के नायक की तरह रमेश सिप्पी उपेक्षा के शिकार हैं, परंतु गुरु दत्त के नायक की तरह वे कंगाल नहीं हैं। रमेश के पिता पी सिप्पी ने मुंबई में बहुमंजिला बनाने का काम किया और फिल्म निर्माण भी करने लगे। उनकी फिल्म कंपनी के अच्छे दिन शम्मी कपूर अभिनीत 'ब्रह्मचारी' से आए। रमेश सिप्पी ने अमेरिकन उपन्यास से प्रेरित शम्मी कपूर, हेमा मालिनी अभिनीत 'अंदाज' बनाई। 'ब्रह्मचारी' के निर्माण के समय रमेश सिप्पी को यह काम दिया गया था कि वे अपने नायक से दोस्ताना बढ़ाएं। रमेश सिप्पी शम्मी कपूर के बार में मेहमानों के लिए जाम बनाने लगे। बहरहाल 'अंदाज' के निर्माण के समय शम्मी कपूर और हेमा मालिनी को रमेश सिप्पी की प्रतिभा पर विश्वास होने लगा और राहुल देव बर्मन भी रमेश सिप्पी से बहुत प्रभावित हुए। ज्ञातव्य कि उस दौर में जी.पी. सिप्पी राजेंद्र सिंह बेदी के पुत्र नरेंद्र से बहुत प्रभावित थे। उनका एक कथा विभाग होता था जिसमें पटकथा के लिए विषय चुने जाते थे। नरेंद्र बेदी को तत्कालीन विदेशी सिनेमा की अच्छी खासी जानकारी थी। उसने अपने कथा विभाग में जापान के फिल्मकार अकीरा कुरोसावा की 'सेवन समुराई' से प्रेरित फिल्म बनाने की पहल की और 'खोटे सिक्के' नामक फिल्म बनाई। सलीम-जावेद ने 'सेवन समुराई' को बड़े सितारों के साथ भव्य फिल्म के रूप में बनाने की पहल की और 'शोले' की पटकथा लिखी। संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और हेमा मालिनी के साथ भव्य फिल्म की योजना बनी। रमेश सिप्पी ने इस फिल्म के एक्शन दृश्यों की शूटिंग के लिए विदेश से विशेषज्ञों को आमंत्रित किया। रमेश सिप्पी ने अपने कैमरामैन द्वारका द्विवेचा को पूरी पटकथा सुनाई और सच यह है कि 'शोले' की विराट सफलता में द्वारका द्विवेचा का बहुत योगदान है। कुछ अमर दृश्य मजबूरी के कारण बन जाते हैं। ज्ञातव्य है कि बेंगलुरु से कुछ दूरी पर शोले के लिए लोकेशन चुना गया था जहां गांव का सेट लगाया गया था। थोड़ी दूर पर गब्बर का अड्डा भी बनाया गया था। उन दिनों धर्मेंद्र शिखर सितारे थे और अत्यंत व्यस्त भी। धर्मेंद्र का इंतजार किया जा रहा था। इसी समय का उपयोग करके द्वारका द्विवेचा ने इस दृश्य का आकल्पन किया कि ठाकुर की कोठी में एक-एक करके सब कमरों की बत्ती बंद की जा रही है और एक रोशन कमरे की खिड़की के निकट ठाकुर की युवा विधवा बहू जया बच्चन ऐसे खड़ी है मानो खिड़की की फ्रेम में एक स्थिर चित्र जड़ा हो। दूर अमिताभ बच्चन माउथ ऑर्गन बजा रहे हैं। दोनों की निगाहें टकराती हैं और निगाह का एक सेतु बन जाता है। खामोश संवाद उस सेतु से यात्रियों की तरह गुजर रहे हैं। प्रेम अभिव्यक्ति का यह एक विलक्षण दृश्य था। यह पूरा आकलन द्वारका द्विवेचा का था। कोई आश्चर्य नहीं कि द्वारका द्विवेचा की मृत्यु के बाद रमेश सिप्पी किसी महान फिल्म की रचना नहीं कर पाए।

बहरहाल गब्बर की भूमिका के लिए डैनी से बात की गई, परंतु उन दिनों वे फिरोज खान की फिल्म 'धर्मात्मा' की शूटिंग अफगानिस्तान में कर रहे थे। सलीम साहब अमजद खान को एक नाटक में देख चुके थे। उनकी सिफारिश पर अमजद खान को लिया गया और यह पात्र सामूहिक अवचेतन में चिरकाल के लिए दर्ज हो गया।

यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि बेंगलुरु के निकट 'शोले' के फिल्मांकन का स्थान कालांतर में टूरिस्ट स्पॉट बन गया। उसे 'सिप्पी नगर' नाम दिया गया। गौरतलब है कि जापान में अकीरा कुरोसावा की 'सेवन समुराई' से प्रेरित फिल्में अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में भी बनी हैं, परंतु किसी भी फिल्मकार में फिल्म की सबसे गहरी बात को रेखांकित नहीं किया। फिल्म का गांव सभ्यता और डाकू असभ्यता के प्रतीक है। जब 'सभ्यता' पर संकट आता है और आत्मरक्षा के लिए सभ्यता किराए पर वीर समुराई समुदाय की सेवा लेती है, तब समुराई के साथ प्रेमपूर्ण संबंध बनाए जाते हैं। संकट समाप्त होते ही आवाम अपने स्वाभाविक टुच्चेपन पर लौट आता है। समुराई की विदाई के समय उसकी गांव वाली प्रेमिका उसका हाथ छुड़ाकर अपने खेत की ओर दौड़ती है। वर्षा हो रही है और बुआई का मौसम है। आम आदमी का व्यवहार संकट के समय प्रेममय होता है, परंतु सामान्य काल में वह अपनी संकीर्णता पर लौट आता है। हुक्मरान की प्रचार बीन पर नृत्य करने लगता है।